SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aracha r www.kobatirth.org Acharya Shetlashsagarsuri Gyanmandir प्याख्यामासिक ॥९०९॥ उद्देशक ५ 1१०शक्षके तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे गुणसिलए चेइए जाच परिसा पडिगया, तेणं कालेणं तेणं उदेशा५ समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स पहवे अंतेवासी थेरा भगवंतो जाइसंपन्ना जहा अट्टमे सए सत्तमुद्देसए GU९०९॥ जाव विहरति । तए ण ते थेरा भगवंतो जायसड्ढा जाव संसया जहा गोमयसामी जाव पज्जुवासमाणा एवं पचासी-चमरस्स णं भंते! असुरिंदस्स असुरकुमाररन्नो कति अग्गमाहिसीओ पन्नत्ताओ?, अजो! पंच अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-काली रायी रयणी विज्जु मेहा, तत्ध णं एगमेगाए देवीए अट्ठट्ट देवीसहस्सा परिवारो पन्नत्तो, ते काले-ते समये राजगृह नामे नगर हाँ, अने त्यां गुणसिल नामे चैत्य हतु. [श्रमण भगवान महावीर समोसर्या. ] यावत् समा[धर्मश्रवण करीने ] पाछी गइ. ते काले-ते समये श्रमण भगवान् महावीरना घणा शिष्यो पूज्य स्थविरो जातिसंपन्न-इत्यादि जेम आठमां शतकना सातमा उद्देशकमां कझुछ तेम यावत् विहरे छे. त्यारपछी ते स्थविर भगवंतो जाणवानी श्रद्धावाळा यावद संशयवाला थईने गौतमस्वामीनी पेठे पर्युपासना करता आ प्रमाणे चोल्या. [प्र०] हे भगवन् ! असुरेंद्र असुरकुमारना राजा चमरने केटली अग्रमहिपीओ (पट्टराणीओ) कही है। [उ.] हे आर्यो! चमरेन्द्रने पांच पट्टराणीओ कही छे. ते आ प्रमाणे-काली रायी, रजनी, विद्युत् अने मेघा. तेमांनी एक एक देवीने आठ आठ हजार देवीओनो परिवार कहो हे. CA For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy