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१.
उछार ॥४९॥
त्तमसए पढमोद्देसए जाव से णं उस्सुत्तमेद रीयति, सें तेणटेणं जाव संपराइया किरिया कजइ । संखुडस्स णं व्याख्या भंते ! अणगारस्स अबीयपंथे ठिचा पुरओ रूवाई निज्झायमाणस्स जाव तस्स गंभंते! किं ईरियावहिया किरिया
कज , पुच्छा, गोयमा! संवुड० जाव तस्स णं ईरियावहिया किरिया कजइ नो संपराइया किरिया कजइ, से ८९३॥ केण?णं भंते! एवं वुच्चइ जहा सत्तमे सए पढमोद्देसए जाव से णं अहासुत्तमेच रीयति से तेणद्वेणं जाब नो
संपराइया किरिया कजह ।। ( सूत्रं० ३९६)॥
[प्र.] राजगृह नगरमां यावत् (गौतम) ए प्रमाणे बोल्या-हे भगवन् ! वीचिमार्गमा-कषायभावमा-रहीने आगळ रहेला रूपोने जोता, पाछळना रूपोने देखता, पढखेना रूपोने अवलोकता,ऊंचेना रूपोने आलोकता अने नीचेना रूपोने अबलोकता संवृत (संवरयुक्त) अनगारने शुं ऐर्यापथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी क्रिया लागे! [उ.] हे गौतम! वीचिमार्गमां (कषायभावमां) रहीने यावत् रूपोने जोता संकृत अनगारने ऐपिथिकी क्रिया न लागे, पण सांपरायिकी क्रिया लागे. [प्र०] हे भगवन् ! ए प्रमाणे आप शा हेतुथी कहो छो के संघृत अनगारने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे ? [उ०] हे गौतम ! जेना क्रोध, मान, माया अने लोभ श्रीण थया होय तेने ऐपिथिकी क्रिया लागे-इत्यादि सप्तम शतकना प्रथम उद्देशकमां कह्या प्रमाणे यावर 'ते संवृत अनगार सूत्र विरुद्ध वर्ते छे' त्यांसुघी कहेवू. माटे हे गौतम । ते हेतुथी तेने यावत् सांपरायिकी क्रिया लागे छे. [प्र०] हे भगवन् ! अचीचिमा
मां-अकषायभावमां-रहीने आगळना रूपोने जोता, यावत् अबलोकता संवृत अनगारने शुं ऐर्यापथिकी क्रिया लागे के सांपरायिकी लक्रिया लागे । [उ०] हे गौतम ! यावत् अकषायभावमा रहीने आगळ रूपोने जोता यावत् ते संवृत अनगारने ऐर्यापथिकी क्रिया में
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