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व्याख्या
प्रज्ञप्तिः १८७८ ॥
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कम्मादासुदेव किव्वसियत्ताए उववत्तारो भवंति !, गोयमा ! जे इमे जीवा आयरियपडिणीया उवज्झायपडिणीया कुलपडिणीया गणप डिणीया संघपडिणीया आयरियउवज्झायाणं अपसकरा अवन्नकरा अकित्तिकरा बहूहि असम्भावुभावणाहि मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं च ३ युग्गामाणा बुप्पाएमाणा बहूई वासाई सामन्नपरियागं पाउणंति पा० तस्म ठाणस्त्र अगालोइयपडिते कालमासे कालं किच्चा अन्नघरेस देवकिव्विसिएस देवकिन्वसित्ता उच्चत्तरो भवति, जहा - तिपलिओवमहितीएस वा तिसागरोवमट्टितीएस वा तेरससारोमट्टितीएस वा ।
[प्र० ] हे भगवन् ! किल्बिपिक देवो केटला प्रकारन। कक्षा १ [अ०] हे गौतम! ऋण प्रकारमा किल्बिषक देवो का छे. ते आ प्रमाणे त्रण पत्योपमनी स्थितिवाळा, त्रण सागरोपमनी स्थितियाळा अने तेर सागरोपमनी स्थितिवाळा. [प्र० ] हे भगवन् ! त्रण पल्यपनी स्थितिवाका किल्बिपिक देवो कये ठेकाणे रहे थे ? [30] हे गौतम ! ज्योतिष्कदयोनी उपर अने ईशान देवलोकनी | नीचे त्रण पल्योपमनी स्थितिवाळा किल्मिपिक देवो रहे हे. (प्र.] हे भगवन् ! त्रण सागरोपमनी स्थितिवाळा किंल्लिपिक देवो क्या रहे छे? [अ०] हे गौतम! सौधर्म अने ईशानदेवलोकनी उपर तथा सनत्कुमार अने माहेन्द्र देवलोकनी नीचे त्रण सागरोपमनी स्थि| तिवाळा किल्मिपिक देवो रहे छे. [प्र०] हे भगवन् । तेर सागरोपमनी स्थितियाळा किल्लपिक देवो क्यों रहे छे ? [उ० ] हे गौतम! ब्रह्मणलोकनी उपर अने लांतक कल्पनी नीचे तेर सागरोपमनी स्थितिवाळा किल्बिषक देवो रहे छे. [प्र० ] हे भगवन् ! किल्चिपिक | देवो क्या कर्मना निमित्ते किल्विपिकदेवपणे उत्पन्न थाय छे ? [अ०] हे गौतम! जे जीवो आचार्यना प्रत्यनीक (द्वेपी), उपाध्यायना
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९ शतके
उद्देशः६
८७८॥