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व्याख्या
१९शतके
उद्देशा११ ॥९७८॥
९७८॥
काल ए केटला प्रकारे छ ? [उ.] अद्धाकाल अनेक प्रकारको करो छै; समयरूपे, आवलिकारूपे, अने यावद् उत्सर्पिणीरूपे. हे। सुदर्शन ! कालना वे भाग करया छतां ज्यारे तेना के भाग न ज यह शके ते काल समयरूपे समय कहेवाय छे. असंख्येय समयोनो समुदाय मळवाथी एक आवलिका थाय छे. संख्यात आवलिकानो (एक उच्छ्वास) थाय छे-इत्यादि बधुं शालि उद्देशकमां कया
प्रमाणे यावत् सागरोपमना प्रमाण सुधी जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! ए पल्योपम अने सागरोपमरूपर्नु शुं प्रयोजन के ? [उ०] हे 81 सुदर्शन ! ए पल्मोपम अने सागरोपम घडे नैरयिक, तिर्यंचयोनिक, मनुष्य तथा देवोनां आयुषोनुं माप करवामां आवे छे. ॥४२६॥
__नेरइयाणं भंते ! केवइयं काल ठिई पन्नत्ता, एवं ठिहपदं निरवसेस भाणियब्वं जाव अजहन्नमणुक्कोसेणं तेतीसं सागरोवपाई ठिती पन्नत्ता ।। (सूत्र ४२५) ।
[प्र०] हे भगवन् ! नैरयिकोनी स्थिति (आयुष) केटला काल सुधीनी कही छे । [उ०] अहीं संपूर्ण स्थितिपद कहे, यावद् &ा(पर्याप्त सर्वार्थसिद्ध देवोनी) उत्कृष्ट नहि अने जघन्य नहि एवी तेत्रीश सागरोपमनी स्थिति कही त्यां मधी जाणवू. ॥४२॥
अस्थि भंते ! पएर्सि पलिओवमसागरोवमाण स्वपति वा अवचयेति चा?, हंता अस्थि, से केणटेणं भंते ! एवं बुचड़ अस्थि ण एएसि णं पलिओवममागरोबमाण जाच अवचयेति वा ?। एवं खलु सुदंमणा! तेणं कालेणं तेणं समएणं हथिणागपुरे नाम नगरे होत्था वन्नओ, सहसंबवणे उजाणे वन्नओ, तत्थ णं हथिणागपुरे नगरे बले नाम राया होत्था बन्नओ, तस्स णं बलस्स रन्नो पभावई नाम देवी होत्था सुकुमाल. वन्नओ जाव विहरह। ताणं सा पभावई देवी अनया कयाई तसि तारिसगसि वासघरंमि अभितरओ सचित्तकम्मे वाहि
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