________________
Shri Mahavir Jain Aradh
व्याख्या
प्रशासिः
॥९२३ ॥
www.kobatirth.org
Achary Slashsagarsuri Gyanmandir
गोयमा ! महिडीए जाव महसोक्खे, से णं तत्थ बत्तीसार विमाणावास समसहस्साणंजाब विहरति केमहसोक्खे, एवं महट्टिए जाव एवं महासोक्खे सके देविंदे देवराया । सेवं भंते ! सेवं भंतेति ॥ (सूत्रं ४०७ ) ।। १०६ ।। [प्र० ] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्रनी सुधर्मा नामे सभा क्यां कही है ? [30] हे गौतम! जंबूद्वीप नामे द्वीपमां मेरु पर्वतनी दक्षिणे आ रत्नप्रभा पृथिवीना (बहु सम अने रमणीय भूमिभागनी उंचे घणा कोटाकोटि योजन दूर सौधर्म नामे देवलोकने विषे) इत्यादि 'रायपसेणीय' सूत्रमां का प्रमाणे यावत् पांच अवतंसक विमानो कथा छे, ते आ प्रमाणे- अशोकावतंसक, यावत् चे सौ छे. ते सौधर्मावतंसक नामे महा विमाननी लंबाई अने पहोळाई साडा बार लाख योजन के. शक्रनुं प्रमाण, उपपात (उपजर्बु), अभिषेक, अलंकार अने अर्चनिका (पूजा) - इत्यादि यावत् आत्मरक्षको सूर्याभ देवनी पेठे जाणवा, तेनी स्थिति (आयुष) वे सागरोपमनी के. [प्र०] हे भगवन् ! देवेन्द्र देवराज शक्र केवी महाऋद्धिवाको छे. केवा महासुखवाली छे १ [ उ० ] हे गौतम ! ते मझऋद्धिवाको यावत् महासुखवालो वत्रीश लाख विमानोनो स्वामी थहने यावद् विहरे छे, ए प्रमाणे महाऋद्धिवाळो | अने महासुखवाळो ते देवेन्द्र देवराज शक्र छे. हे भगवन् ! ते एमज छे, हे भगवन् ! ते एमज के. ( एम कही भगवान् गौतम यावद् विहरे छे.) ॥ ४०५ ॥
भगवत् सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवती सूत्रना १० मा शतकमां छट्टा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो.
For Private And Personal
१० शतके उद्देशः
- ९२३५