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________________ Shri Mahavir Jain Ar e ndra www.kobatirth.org Kailashsagarsuri Gyanmandir व्याख्या- प्रालि N८६९॥ ९ शतके उदेश 1८६९॥ 4ऊन काले अने तें समये चंपा नामे नगरी हती, वर्णन. पूर्णभद्र चैत्य हतुं. वर्णन. यावत् पृथिवीशिलापट्ट हतो. हवे अन्य कोइ दिवसे ते जमालि अनगार पांचसो साधुओना परिवारनी साथे अनुक्रमे विहार करता, एक गामथी बीजे गाम जता ज्यां श्रावस्ती नामे नगरी छे, अने ज्या कोष्ठक चैत्य छे त्यां आवे छे. त्या आधीने यथायोग्य अवग्रहने ग्रहण करीने संयम अने तपवहे आत्माने भावित करता विहरे छे. त्यारवाद अन्य कोई दिवसे श्रमण भगवान महावीर अनुक्रमे विचरता यावत् मुखपूर्वक विहार करता ज्यां चंपानगरी छे, अने ज्यां पूर्णभद्र चैत्य के त्यां आवे छे आवीने यथायोग्य अपग्रहने ग्रहण करी संयम अने तपनडे आत्माने भावित | करता विचरे छे. तए णं तस्स जमालिस्म अणगारस्स तेहिं अरसेहि य विरसेहि य अंतेहि य पंतेहि य लूहेहि य तुच्छेहि य कालाइकंतेहि य पमाणाइतेहि य सीतएहि य पाणभोयणेहिं अन्नया कयावि सरीरगंसि |विउले रोगातके पाउम्भूए उज्जले विउले पगाढे ककसे कडुए चंडे दुक्खे दुग्गे दु रहियासे पित्तज्जरपरिगतसरीरे दाइवतिए यादि विहरइ । तए णं से जमाली अणगारे वेयणाए अभिभूए समाणे समणे णिग्गंथे सहावेइ सहावेत्ता एवं वयासी-तुझे णं देवाणुप्पिया! मम सेवासंथारग संथरेह, तए णं ते समणा णिग्गंथा | जमालिस्स अणगारस्स एयमट्ट विणएणं पडिसुणेति पडिमणेत्ताजमालिस्स अणगारस्स सेवासंथारगं संथरेंति, तए णं से जमाली अण्णगारे पलियतरं वेदणाए अभिभूए समाणे दोचंपि समणे निग्गंथेसहावेह २ सा दोबंपि एवं वयासी-ममन्नं देवाणुप्यिासेज्जासंथारए किं कडे काही,एवं बुत्ते समाणे समणा निग्गंथा विति-भो सामी! कीरइ, For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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