________________
Shri Mahavir Jain Arad Teldra
www.kobatirth.org
Acha
a
lashsagarsur Gyanmandir
है|११शतके
उद्देशा११ ॥१००९॥
त्यार बाद हे सुदर्शन ! बालपणाने वीतावी विज्ञ अने मोटो थइ, यौवनने प्राप्त थइ ते तेवा प्रकारना स्थविरोनी पासे केवलिए व्याख्या
कहेलो धर्म सांभळ्यो, अने ते धर्म पण तने इच्छित अने स्वीकृत थयो, तथा तेना उपर तने अभिरुचि थइ. हे सुदर्शन! हाल तुं जे १०.९४ करे ? ते सारं करे छे. तेमाटे हे सुदर्शन ! एम कहेवाय छे के ए पल्योपम अने सागरोपमनो क्षय अने अपचय थाय छे. त्यार बाद
श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी ते सुदर्शन शेठने शुभ अध्यवसायवडे, शुभ परिणामवडे अने विशुद्ध
लेश्याओथी तदावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम थवाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषणा करतां संज्ञिरूप पूर्व जन्मनु स्मरण उत्पन्न हाथयुं अने तेथी भगवंते कहेला आ अर्थने सारी रीते जाणे छे. त्यार बाद ते सुदर्शन शेठने श्रमण भगवंत महावीरे पूर्वभव संभारेलो
होवाथी वेवडी श्रद्धा अने संवेग उत्पन्न थयो, तेनां लोचन आनंदाश्रुथी परिपूर्ण थया, अने तेणे श्रमण भगवंत महावीरने त्रण बार
आदक्षिण प्रदक्षिणा करी, वांदी अने नमीने आ प्रमाणे कधु-'हे भगवन् ! तमे जे कहो छो ते एज प्रमाणे ठे-यावत् एम कही ते सामुदशन शेठ उत्तरपूर्व (ईशान ) दिशा तरफ गया. बाकी वर्षा ऋषभदत्तनी पेठे जाणवु, यावत् ते सुदर्शन शेठ सर्व दुःखथी रहित
थया. परन्तु विशेष ए छे के ते पूरां चौद पूर्वो भणे छे, अने संपूर्ण चार वरस सुधी श्रमणपर्यायने पाळे छे. बाकी बर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे के. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे -एम कही यावद् विहरे छे. ॥ ४३२।।
भगवत सुधर्मस्वामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीस्त्रना ११ मा शतकमां अगीयारमा उद्देशानो मूलार्थ मंपूर्ण थयो.
SEKCARKAHASACीर
RERS
For Private And Personal