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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir 4 + ११शतके उद्देशः९ ॥९४४॥ दिसापोक्खियतावसत्ताए पवइत्तए, पन्नाइएवि यणं ममाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामि-कप्पइ मे जावज्जीवाप उर्दुछट्टेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचकवालेणं तवोकम्मेणं उड़े बाहाओ पगिझिय २ जाव विहरित्तव्याख्या एत्तिकद्द एवं संपेहेति ।। प्रज्ञप्तिः धि हवे कोई एक दिवसे शिवराजाने पूर्वरात्रिना पाछला भागमा राज्यकारभारनो विचार करता आ आवो अध्यवसाय-संकल्प 16 उत्पन्न थयो के मारा पूर्व पुण्यकर्मोनो प्रभाव छे, इत्यादि तामलि तापमनी पेठे कहेg,जे यात्रत् हुं पुत्रोवडे, पशुओवडे, राज्यवडे, राष्ठ | वडे बलवडे, वाहनवडे, कोशवडे कोष्ठागारवडे, पुरवडे अने अन्तःपुरवडे वृद्धि पामु छु. वळी पुष्फळ धन, कनक, रल यावत् सारभूत द्रव्यवडे अतिशय अत्यंत वृद्धि पामु छु तो हवे हुँ मारा पूर्व पुण्यकर्मोना फलरूप एकान्त मुखने भोगवतो ज विहरु ? ते मारे ज्यांसुधी हु हिरण्यधी वृद्धि पामु छु, यावत् पूर्वे कया प्रमाणे वृद्धि पाएँ छु ज्यांसुधी सामंत राजाओ मारे तावे छे, त्यांसुधी मारे काले प्रातःकाळे सूर्य देदीप्यमान थये छते घणी रोढीओ, लोहना कडायां कडछा अने त्रांबाना बीना तापसना उपकरणोने घडावीने शिवभद्र कुमारने राज्यमा स्थापीने घणी लोढीओ, लोहना कडायां, कडछा अने त्रांबाना तापसना उपकरणो लइने, जे आ गंगाने * कोठे वानप्रस्थ तापसो रहे छे, ते आ प्रकारे-अग्रिहोत्री, पोतिक-वस्त्र धारण करनारा-इत्यादि 'उववाह' सूत्रमा कया प्रमाणे यावत्| जेओ काष्ठथी शरीरने तपावता विचरे छे, ते तापसोगांजे तापसो दिशाप्रोक्षक (पाणी वडे दिशाने पूजी फल पुष्पादि ग्रहण करनारा) छे, तेओनी पासे मारे मुंड थइने दिक्प्रोक्षकतापसपणे प्रवज्या अंगीकार करवी श्रेय छे, प्रत्रज्या ग्रहण करीने हु आ आवा प्रकालानो अभिग्रह ग्रहण करीश. ते आ प्रकारे-यावजीव निरंतर छट्ठ छ? करवायी दिक्चक्रवाल तपकर्म वडे उंचा हाथ राखीने रहे, मने कल्पे-ए प्रमाणे ते शिवराजा विचारे छे. SNISHORE For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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