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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsun Gyanmandir प्रतिः उदेश ॥८६॥ परिकमियच्वं जाया अस्सि प णं हे'को पमायेतध्वंतिक जमालिस्स खत्तियकुमारस्सं अम्मापियरो समण व्याख्या-1 भगवं महावीरं दहणमंसह पंक्त्तिा णमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्मूथा तामेव दिसि पडिगया।सए णं से ज मालिखत्तियए सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेति २ जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उपागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता एवं जहा उसमदत्तो तहेव पव्वइओ नवरं पंचहिं पुरिससएहिं सद्धिं तहेव जाव सव्वं सामाइयमाझ्याई द्रा एक्कारस अंगाई अहिबह सामाइयमा० अहिलेत्ता यहूहिं नउत्थछट्टमजावमासमासखमणेहिं विचित्तोहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ (सूत्रं ३८५)॥ त्यारे श्रमण भगवंत महावीरे ते जमालि क्षत्रियकुमारने आ प्रमाणे का के-'हे देवानुप्रिय ! जेम सुख उपजे तेम करो, प्रति-12 पन्ध न करो'. न्यारे श्रमण भगवान महावीरे जमालि क्षत्रियकुमारने ए प्रमाणे कधु स्पारे ते हर्षित बह, तुष्ट थइ, यावत् श्रमण भगवंत महावीरने त्रण चार प्रदक्षिणा करी यावद् नमस्कार करी, उत्तरपूर्व दिशा तरफ जाय के. जइने पोतानी मेळे आभरण, माला अने अलंकार उतारे छ. पछी ते जमालि क्षत्रियकुमारनी माता हंसना चिहवाळां पटशाटकथी आभरण, माला अने अलंकारोने ग्रहण करे छे. ग्रहण करीने हार अने पाणीनी धारा जेवा आंसु पाडती २ तेणे पोताना पुत्र जमालिने आ प्रमाणे कयु के-'हे पुत्र ! संय| मने विवे प्रयत्न करजे, हे पुत्र ! यस करजे, हे पुत्र ! पराक्रम करजे, संयम पाळवामां प्रमाद न करीश. ए प्रमाणे (कहीने) ते जमालि क्षत्रियकुमारना माता-पिता श्रमण भगवंत महावीरने वादे के, नमे के बांदी अने नमीने जे दिशाथी तेओ आव्या हता ते दिशाए| पाछा गया. त्यारपछी ते जमालि क्षत्रियकुमार पोवानी मेळे पंच मुष्टिक लोच करे छे, करीने ज्यां श्रमण भगवान महावीर हे त्यां का स्यारे ते हनि सुख उपजे तेम करो 433 र करी, उत्तरपूर्वी For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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