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________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalashsagarsun Gyanmandir व्याख्या प्रजाप्ति ॥१०३६॥ |१२शतके उद्देशा १०३ | धम्मजागरियाए अप्पाणं जागरहत्तारो भवंति, एएसि णं जीवाणं जागरिपत्तं साहू, से तेणद्वेण जयंती! एवं वुच्चइ अत्थेगइयाणं जीवाणं सुत्तत्तं साहू अत्थेगइयाणं जीवाणं जागरियत्तं साहू ।। ०] हे भगवन् ! सुतेलापणु सारं के जागरितत्त्व-जागेलापणु सारूं ? [उ०] हे जयंती केटलाक जीवोनुं सूनेलापणु सारु, अने केटलाक जीवोर्नु जागेलाषणु सारं. [प्र०] हे भवगन् ! शा हेतुथी तमे एम कहो छो के 'केटलाक जीवोनु मूतेलापणु सारं अने केटलाक जीवोन जागेलापणु सावं! [उ.] हे जयंती ! जे आ जीवो अधार्मिक, अधर्मने अनुसरनारा जेने अधर्म प्रिय छ पवा, अधर्म कहेनारा, अधर्मने ज जोनारा, अधर्ममा आसक्त, अधर्माचरण करनारा अने अधर्मवीज आजीविकाने करता विहरे छे, ए जीबोर्नु सूतेलापणु सारं हे. जो ए जीवो सूतेला होय तो बहु प्राणोना, भूतोना, जीवोना तथा सञ्चोना दुःख माटे, शोक माटे, यावत्-परिताप माटे थता नथी, बळी जो ए जीवो मतेला होय तो पोताने, वीजाने के बनने घणी अधार्मिक संयोजना बडे जोडनारा होता नी, माटे ए जीवोनु मृतेलापणु सारुं छे. तथा हे जयंती! जे आ जीवो धार्मिक अने धर्मानुसारी छे, यावत्-धर्मवडे आजीविका करता विहरे छे, ए जीवोनुं जागेलापणु सारुं छे; जो ए जीवो जागता होय तो ते घणा प्राणीओना यावत्-सच्चो ना अदुःख ( सुख ) माटे यावत्-अपरिताप (शान्ति ) माटे बर्ते छ, वळी ते जीवो जागता होय तो पोताने, परने अने वनेने घणी धार्मिक संयोजना (क्रिया) साधे जोडनारा थाय के, तथा ए जीवो जागता होय तो धर्मजागरिकावडे पोताने जागृत राखे , माटे ए जीवोन जागेलापणु सारुं छे, ते हेतुथी हे जयंती! एम कहेवाय छे के, केटलाक जीवोन स्तेलापणु सारुं अने केटलाक जीवान जागेलापणु सारं छे'. ARRAKASARAKAR For Private And Personal
SR No.020109
Book TitleBhagvati Sutram Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
PublisherHiralal Hansraj
Publication Year1939
Total Pages235
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size6 MB
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