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उदेकार ॥९५८॥
जाणवू, यावत् ते दिशाप्रोक्षक तापसोनी पासे दीक्षित थइ दिशाप्रोक्षकतापसरूपे पत्रज्या ग्रहण करा प्रवाजत थइन त आ प्रकारना |
अभिग्रह धारण करे छ-'मारे यावजीच निरंतर छड छदुनो तप करवो कल्पे-इत्यादि पूर्ववत् अभिग्रह ग्रहण करीने प्रथम छट्ट म्यारूपातपनो खोकार करी विहरे छे. अवाप्तिः ॥९४८॥ IPL तए णं से सिवेरायरिसी पढमढक्शवमणपारणगसि आयावणभूमीओ पच्चोरुहइ आयावणभूमिओ पञ्चोकहिता
वागलवथनियस्थे जेणेव मग उडए तेणेव उवागच्छद तेणेव उवागच्छित्ता किढिणसंकाइयगं गिण्हा गिण्हित्ता ट्र पुरच्छिमं दिस पोक्खेड पुरच्छिमाए दिसाए सोमे महाराया पत्याणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं रायरिसिं अभि. * २, जाणि य तत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि य पुप्फाणि य फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य
ताणि अणुजाणउत्ति कट्टपुरच्छिमंदिसंपसरति पुर०२ जाणि य तत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि च ताई गेण्डाइ २ किढिणसंकाइयं भरेइ कढि०९ दन्भे य कुसे यममिहाओ य पत्तामोडं च गेण्हेइ २जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ २ किदिणसंकाइयगं ठवेइ किढि०२ वेदि बड्डेड २ उवलेवणसंमजणं करेइ उ०२ दम्भसगम्भकलसाह
त्यगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छद गंगामहानदी ओगाहेति २ जलमजणं करेइ २ जलकीड करेइहा६ जलाभिसेयं करेति २ आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवयपितिकयकले दम्भसगम्भकलसाइत्वगए गंगाओम २
नईओ पच्चुत्तरइ २ जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छह तेणेव उवागच्छित्ता दम्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि |य वेति रएति वेति रएत्ता सरएणं अरणिं महेति सर० २ अग्गि पाडेति २ अग्गि संधुमेह र समिहाकठ्ठाई
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