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व्याख्या
॥९४९॥
पक्विवइ समिहाकट्ठाई पक्खिवित्ता अग्गि उजालेइ अग्गि उजालेत्ता-'अग्गिस्स वाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे । तं.-सकहं बक्कलं ठाणे, सिजाभंडं कमंडलं ॥ ७० ॥ दंडदारुं तहा पाणं, अहे ताई समादहे ॥ महुणा य धरण य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, अग्गि हुणित्ता चळं साहेह, चरुं साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ बलिं वइ. उद्देशा स्स हदेवं करेत्ता अतिहिपूर्य करेह अतिहिपूर्य करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति,
ला॥९४९॥ ___ त्यारवाद प्रथम छट्ठ तपना पारणाना दिवसे ते शिव राजर्षि आतापना भूमिथी नीचे आवे छे, नीचे आवीने बाल्कलना वस्त्र पहेरी ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे छे, त्यां आवी किढिन (वांसनुं पात्र) अने कावडने ग्रहण करे छे, ग्रहण करी पूर्व दिशाने 31 प्रोक्षितकरी 'पूर्व दिशाना सोम महाराजा धर्मसाधनमा प्रवृत्त थएला शिव राजर्षिर्नु रक्षण करो, अने पूर्व दिशमा रहेला कंद, मूल, छाल, पांदडा, पुष्प, फळ, बीज अने हरित-लीली वनस्पतिने लेवानी अनुज्ञा आपो-एम कही ते शिव राजर्षि पूर्व दिशा तरफ जाय छे, जइने त्यां रहेला कंद, यावत्-लीली वनस्पतिने ग्रहण करीने पोतानी कावड भरे छे. त्यार पछी. दर्भ, कुश, समिध-काष्ठ अने झाडनी शाखाने मरडी पांदडाओने ले छे; लेईने ज्यां पोतानी झुपडी छे त्यां आवे के, आत्रीने कावडने नीचे के छे, मूकीने वेदिकाने प्रमार्जित करे छेपछी वेदिकाने (छाण पाणीवडे) लींपी शुद्ध करे छे. त्यारबाद डाभ भने कलशने हाथमां लइ ज्यां गंगा महानदी छे, त्यां आवीने गंगा महानदीमा प्रवेश करे छे, प्रवेश करी डुबकी मारे छे, जलक्रीडा करे छे, अने स्नान करे छ, पछी आचमन करी चोक्खा थइ-परम पवित्र थइ देवता अने पिन कार्य करी हाम अने पाणीनो कलश हाथमा लइ गंगा महानदीथी बहार नीकळीने ज्या पोतानी झुपडी छे, त्यां आवे छे आवीन डाम, कुल अने वालुका वडे वेदिने बनाये छे, बनावी मथनकाष्ठवडे
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