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व्याख्याप्राप्ति ॥९१७॥
१०शतके उद्देशा५ ॥९१७॥
-*-CASSASSACREAK
सुरुवस्स ण भंते! भूहंदस्स रन्नो पुच्छा, अनोचत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-रूववती बहुरूवा सुरूवा सुभगा, तत्थ ण एगमेगाए सेसं जहा कालस्स,एवं पडिरूवस्सवि। पुन्नभद्दस्स णं भंतेजिक्खिदस्स पुच्छा अलो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-पुन्ना बहुपुत्तिया उत्तमा तारया, तत्थ णं एगगेगाए सेसं जहा कालस्स, एवं माणिभद्दस्सवि । भीमस्म ण भंते! रक्खसिंदस्स पुच्छा, अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नताओ, तंजहा-पउमा पउमावती कणगा रयणप्पभा. तत्य णं एगमेगा सेसं जहा कालस्स । एवं महाभीमस्सवि।
[प्र०] हे भगवन् ! भूतना इन्द्र अने भूतना राजा सुरूपने केटली पट्टराणीओ कही छे १ [उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे-रूपवती, बहुरूपा, मुरूपा, अने मुभगा. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे कालेन्द्रनी पेठे जाणवू, अने | एज प्रमणे प्रतिरूपेन्द्र संबंधे पण जाणवू. [प्र०] हे भगवान् ! यक्षना इन्द्र पूर्णभद्रने केटली पट्टराणीओ कही छे ? [उ०] हे आर्य! तेने चार पट्टराणीओ कही छ, ते आ प्रमाणे-पूर्णा, बहुपुत्रिका, उत्तमा अने तारका. तेमां एक एक देवीनो परिवार वगेरे कालेन्द्रनी पेठे जाणवू, अने ए प्रमाणे माणिभद्र संबन्धे पण जाणवू. [प्र.] हे भगवन् ! राक्षसना इंद्र भीमने केटली पट्टराणीओ कही छे ? उ०] हे आर्य ! तेने चार पट्टराणीओ कही छे, ते आ प्रमाणे- पद्मा, पद्मावती, कनका अने रत्नप्रभा. तेमा एक एक देवीनो परिवार
वगेरे सर्व कालेन्द्रनी पेठे जाणवू. ए प्रमाणे महाभीमेन्द्रसंबन्धे पण जाणवं. द किन्नरस्स णं भंते! पुच्छा अजो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तंजहा-वडेंसा केतुमती रतिसेणा रइ-|
प्पियातत्थ णं सेसं तं चेव, एवं किंपुरिसस्सवि। सप्पुरिसस्स णं पुच्छा अज्जो! चत्तारि अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ,
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