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Shri Mahavir Jain Aradhana Keppra
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माख्याप्राप्तिः
११शतके का उद्देशा
॥९५१॥
Acharya
f इत्यादि बधु प्रथम पारणानी पेठे जाणवू. परन्तु विशेष ए वे के वीजा पारणा वखते दक्षिण दिशाने प्रोक्षित करे-पूजे, तेम करीने एम कहे के दक्षिण दिशाना (लोकपाल) यम महाराजा प्रस्थान-परलोकसाधन-मां प्रवृत्त थएला शिवराजर्षिर्नु रक्षण करों' इत्यादि | सर्व पूर्ववत् कहे, यावत् पोते आहार कर के. पछी ते शिवराजर्षि त्रीजा छट्ठ तपने स्वीकारी विहरे , तेना पारणानी वधी हकीकत पूर्वनी पेठे जाणवी, परंतु विशेष ए ले के, पश्चिम दिशानुं प्रोक्षण-पूजन-करे, अने एम कहे के पश्चिम दिशाना (लोकपाल) वरुण महाराजा प्रस्थान-परलोक साधनमा प्रवृत्त थयेला शिव राजर्षिनु रक्षण करो, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत् त्यार पछी ते आहार करे. पछी ते शिवराजर्षि चोथा छट्टना तपने स्वीकारी विहरे के-इत्यादि पूर्ववत् जाणवू. परन्तु (चोथे पारणे) उत्तर दिशाने पूजे के, अने एम कहे छ के 'उत्तर दिशाना (लोकपाल) वैश्रमण महाराजा धर्मसाधनमा प्रवृत्त थयेला शिवराजर्षितुं रक्षण करो, बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे जाणवं, यावत् त्यार पछी पोते आहार करे छे. ।। ४१७॥ .
तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेण अनिक्खित्तणं दिसाचक्कवालेणं जाव आयावेमाणस्स पगहमदयाए जाव विणीययाए अन्नयो कयावि तयावरणिज्जाणं कम्माण खओवसमेणं ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्म विभंगे नाम अन्नाणे समुप्पन्ने, से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासह अस्मि लोग सत्त दीवे सत्त समुद्दे तेण परं न जाणति न पासति, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारूवे अभत्थिए जाव समुप्पज्जित्थाअस्थि णं ममं अइसेसे नाणदसणे समुप्पन्ने, एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा सत्त समुदा, तेण परं वोच्छिन्ना दीवा य समुद्दा य, एवं मपेहेह एवं.२ आयावणभूमीओ पच्चोरहह आ०२ बागलपत्थनियत्थे जेणेव सए उडए
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