Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 12
________________ 1 March-2002 तोहइ तुझ गुण वर्णवू, मूझ मती सारू माय / नख मुख वेणी शीर लगइं, कवी ताहारा गुण गाय // 11 / / ढाल // 2 // (1) दि(दे)सी-एक दीन सार्थपती भणइ रे० / राग गोडी० // नखह नीरुपन(म) नीरमला रे, चलकइ यम रवी चंद / रेखा सुदर साथीआ रे, देखत होय आनंदो रे / 12 / तूझ गुण गाईइ, कविजन कीरितु मायु रे, सार्द ध्याईइ 0 आचली // पदपंकजनुं जोडलु रे, नेवरनो झमकार / गजगत्य-गमनी गुणभरी रे, सीह हराव्युं रे लंक / ते लाजीनि वनी गयुं रे, हुतो सो य सुसंको रे ॥१४॥तु० // . ऊदर पोयणर्नु पनडु रे, नाभीकमल रे गंभीर / कंचुकचर्णा चुनडी रे, चंपकवणुं ते चीरो रे ॥१५|तुं०॥ रीदइकमल वन दीपतु रे, कुंभ पयुधर दोय / / प्रेमविलुधा पंखीआ रे, भमर भमंत ते जोयो रे ॥१६॥तु०॥ कमलनाल जसी बांहुडी रे, करि कंकणनी रे माल / बाजुबंधन बइहइरखा रे, विणानाद वीसालो रे // 17 // तु० // करतल जासु-फूलडां रे, रेखा रंग अनेक / उंगल सरली सोभती रे, वर्णव करूंअ वसेको रे // 18 // तु०॥ नख गुजानी ओपमा रे, झलकइ यम आरीस / नाशा शमइ यम दाम्यनी रे, त्यम चलके नशदीसो रे // 19 // तुझ०।। ढाल 3 // (2) देसी / भोजन द्यो वरभामनि रे // राग० केदार गोडी / / ऊर मुगताफल कनकनो रे, कुशमतणो वली हार | कोकीलकंठि काम्यनी रे, वदती जइ जइकार // 20 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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