Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 23
________________ 23 अनुसंधान-१९ असर्ण भावना नर एम भावइ, नही मुझ कोय सखाई / मात-पिता कंता नि भगनी, को नवी राखइ भाई // 10 // गुण० // ध्यान धरो तो ऋषभदेव, अवर सहु जंजालो / जिनना सर्ण विनां नवी छुटइ, सूरपति को(के) भुपालो // 11 // गुण० / / संसारनी ते भावइ भावना, जगि दीसइ जंजालो / एक नीर्धन नि एक धनवंता, चाकर नि भुपालो // 12 // गुण० / / एक मंदिर बहु बालीक दीसइ, एक घरि नही संतांनो / एक मंदिर बहु रदन करंता, एक मंदिर बहु गांनो // 13 // गुण० // एकत्व भावना मुनी एम भावइ, नही मुझ कोय संघांतो / आव्यो एकलो जाईश एकलो, ए जगमाहां वीख्यातो // 14 // गुण० // अनत्व भावना कहीइ पांचमी, तेहनो एह वीचारो / जीव अनि ए काया जुजूई, कांई नवी दीसइ सारो // 15 // गुण० / / जीव मुकी जाशइ कायानि, काया केड्य न जायु / तुस्युनी गणी नि सहु पोषो, फोकट भारे थायु // 16 // गुण० // अस्युच भावना भेद कहु छु, सुणयो सहुअ सुजाणो / देही सदा ए छइ दूरगंधी, म करो कोय वखांणो // 17 // गुण० / / आश्रव भावना भेद भणीजइ, जेणइ आवइ बहु पापो / माहामुनी वरते वेगी नीवारइ, न करइ आप संतापो // 18 // गुण० // संवर भावना भली वखार्पु, पातीग जेणइ रुधाइ / पांचइ अंद्री मुनी वश राखइ, तो घट नीर्मल थाइ // 19 // गुण० // नोमी भावना कहु नीर्जरा, जे एव-इ त हु- थाइ / कर्मु खपइ नर कईअ कालनां, वइहइलो मुगति जाइ / / 20 / / गुण० // लोक भावना चऊद राजनी, भावइ आपसरूपो / ए जीविं ते सहुइ फरस्यु, कीधां नव नव रूपो // 21 // गुण० // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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