Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 63
________________ अनुसंधान-१९ 63 पांच अतीचार एहना जाणि, नर ऊत्तम तुं अग्य म आंणि / वाटि वसि रीसिं घा कयु, गाढइ बंधन पसुंआं धर्यु // 25 // जे अतिजाझो भार ज भरइ, कर्ण कंबल जे छेद ज करई / भात पांणीनो करइ वछेद, तेनि ऊपजइ अदीको खेद // 26|| दुहा० // खेद न ऊपाईइ बली, मुख्य न कहीइ मार्य / पहइलुं व्रत एम पालीइ, बीजइ मृषा निवार्य // 27 // ढाल 50 (49) चोपई // व्रत बीजइ मरिषा परीहरो, पंच जुठांनी अगड ज करो / कन्याली भोमाली गाय, जुठु बोलि दुर्गति जाय // 28 // थांपणिमोसो कुडी साख्य, अलीअ वचन मुख्यथी म म भाष्य / कुडु बोलि सुख किम होय, ..... जइ नवि पांमइ कोय // 29|| जुठु बोलतां जाइ लाज, जुठु बोलतां वणसइ काज / जुठु बोलतां मुर्यख थाय, जुठु बोलतां दूरगति जाय // 30 // जुठु बोलतां च्योहोगति भमइ, दूरगति नारी साथि रमइ / काल अनंतो एणी परि गमइ, पोताना प्रांणिनि दमइ // 31 // मृषातणुं छई मोटु पाप, फोकट आप करइ संताप / दांन सील तपस्यु जगी जाप, मृषा न छंडइ मुख्यथी आप // 32 // मृषा थकी मुख्य थाइ रोग, दूलहो अंद्रीनो संयोग / लुलो टुंटो नि पांगलो, मृषा थकी थाइ आंधलो // 33 // सतवादीनु लीजइ नाम, कालिकाचारय गुण अभीरांम / स्युध वचन भुपतिनं कहइ, जिगनतणु फल नर्ग ज कहइ // 34 // सति सीता सति रांम, राय युधीष्टार] राख्यु नाम / परशान(शासन)मांहा हरीचंद का, ते तो त(ते)हनि बोलिं रघु // 35 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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