Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
View full book text
________________
76
सील समु नही को पचखांण, जोयु ज्युध विमासी जांण । लाछलदे सुत ते पण ग्रह्यु, थुलिभद्रनुं नांम ज रह्यु ॥६२॥
दूहा० ॥ थुलिभद्र मुनीवर वडो, सिर वही जिनवर आण । हवइ सुणयु व्रत पांचमुं, जे परिग्रहइ - परिमाण ॥६३॥
March-2002
ढाल ५९ ॥ चोपई ॥
पांचमइ वरतिं चोखुं ध्यान, सकल वस्तनुं कीजइ मान । अतित्रिणा मनि वारो लोभ, एह थकी बहु पांम्या खोभ ||६४||
नवइ नंद ते क्यरपी हुआ, मुमण सेठि धन मेली मुंआ । सागर सेठि सागरमाहा गयो, जो जगी सबलो लोभी थयु ||६५ ॥
धन संच्यानुं मोटु पाप, उपरि थाईश फणधर साप । ऊदर घसंतो हीडश आप, ऊद्यरनिं करतो संताप ||६६ ॥
ते धन ऊपरि मुरछा कसी, खाओ खरचो मनि उहोलसी । धन यौवन यम पीपल पांन, चेतो चंचल गजनो कांन ॥६७॥
ते माटइ मुर्छा म म मंड्या, अतित्रीस्णा आतमथी छंड्या । आगइ अनरथ हुओ घणो, ते महीमा छइ परिग्रहइ तणो ॥ ६८॥
भरत बाहुबल झगडो कर्यु, तो तेहनो अपजस वीस्तर्यु । कनकरथिं नीज मार्वु पूत्र, जाण्यु लेसइ मुझ घरसूत्र ॥६९॥
लोभ लगिं सुर पूरी कुंमार, हण्यु पिता तेणइ नीरधार । रत्न तणो वली लीधो हार, न कर्यो बीजो कस्यु वीचार ॥७०॥
श्रेणिक सरीखो राजा जेह, परिग्रहइथी दूख पाम्यु तेह | कोणी राजा लोभी थयु, पीता हणीनिं नरगिंग ॥ ७१ ॥ सुभमराय चक्री आठमो, ते नर सबलो लोभी हवो । त्रीणानो नवि आण्यु छेह, तो दूख पाम्यु नगिं तेह ||७२ ||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112