Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान - १९
ढाल ६२ ॥
देसी० ए तीर्थ जांणी पूर्व नवाणुं वार० ॥
एना पाच अतीचार टालो जिम धरि खेमो, धन धांन नि खेत्रु, वस्त्र रूप निं हो ( है ) मो ॥ ९२ ॥
कासुं निं त्रांबुं सपतधातनी जात्य दूपद निं चोपद नदविधि परीग्रहइ भात्य ||१३||
मुरछा मन्य अणी, परीग्रहइ व्रर्त प्रमांणो लेई नवी पढीउं, वीसरतां ज अयाणो ॥ ९४ ॥
अल्लीदु मेल्युं, नीम वीसार्या जेहो, पांचमहं पणि वरतिं मीछादूकड तेहो ॥ ९५ ॥
वरि वोषधर वदने जीभ दीइ ते सारो पणि व्रत नवि खंड ऊतम ए आचारो || ९६ ||
दूहा० ॥
खंडि पातिग होय ।
लघु व्रत नवी खंडीड़, छठु व्रत सहु संभलो, नीम म छंडो कोय ||९७||
ढाल ६३ ॥
देसि० कहइणी कर्ण तुझ वीण साचो० || राग - ध्यन्यासी ॥
दीगवेरमण वरत वखाणुं, राखी चोखु ध्यांनजी | जलिवटि जावा केरूं भाई, सहुं करज्यो वली मानजी ॥ दीगवेरमण वरत वखाणुं, राखी चोखुं ध्यानजी० | आंचली ॥९८॥
पगवटि चालता तु चंते, मनमा नीम संभारेजी । ऊतर दष्यण पूर्व पछिम, ए दसि कहीइ च्यारेजी ॥९९॥ दीग० ॥
च्यार वदशनि ऊर्ध अधोदसि, दसइ दसी मांन संभारोजी । अगड आखडी चोखां पालु, लीधो नीम महारो जी || ७०० |l
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दीग वेरमण० ॥
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