Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 101
________________ अनुसंधान - १९ १६० १६२ १६२ १६२ १६३ १६३ १६६ १६९ १७० १७२ १७४ १७५ १७६ १७६ १७६ १७६ १७६ १७६ १७७ १७७ १८० १८१ १८३ १८४ १८४ १८६ १८६ २ Jain Education International घर्णी मन्य श्रीषा दांन अदिता कर्णसीत्यरी चर्णसीत्यरी आग्यना भष्य शरइ स्युकीत कुप्य आलि टीबडीब आक षांब षासर सीप क्यरपी क्रोध सकार पुर्ष जगसंघा ख्यन अतबंग लंग ईव सरजाडसइ घरणी - घरवाली (शियालण) मनमां मृषा-असत्य अदत्तादान- चोरी करणसित्तरी चरण सित्तरी आज्ञा भक्ष्य शिरे सुकृत कुपि - कूवामां जूठा टबकुं- टपकुं आकडो- अर्क खाबोचिया खासडुं छीप कृपण क्रोध श्रीकार - भलीवार पुरुष जग-संहारण क्षण अडबंग लिंग शैव सर्जन करशे 101 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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