Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________ कवि ऋषभदास कृत व्रतविचारास सं. विजयशीलचन्द्रसूरि 'कवि ऋषभदास'ए मध्यकालीन जैन कविओमां प्रतिष्ठित श्रेष्ठ गृहस्थ कवितुं नाम छे. तेमणे पोते ज निर्देश्युं छे ते प्रमाणे, चोंत्रीस रास अने 58 स्तवननी रचना करी छे. (हीरविजयसूरि रास, अंतिम ढाल-कडी 32, जै.गू.क.३, पृ. 68). १६-१७मा शतकमां थई गयेला आ कविनी केटलीक कृतिओ ज प्रगट छे; मोटा भागनी तो अद्यावधि अप्रगट ज रही छे. केटलीक रचनाओनी तो हस्तप्रतिओ पण अप्राप्य छे (गु.सा.कोश, पृ. 37). कविनी प्राप्य परंतु अप्रगट एक दीर्घ रास-कृति "व्रतविचार रास"- संपादन यथामति अत्रे प्रगट करवामां आवे छे. कविनी स्वहस्त-लिखित प्रति उपरथी ज आ वाचना तैयार करवामां आवी छे, छतां पण, क्यांक क्यांक पानां फाटी गयेल होई तथा एकाद बे स्थळे अक्षरो पर बीजां पानांना अंश चोंटी गयेला होई, तेमज आ रासनी बीजी प्रति प्राप्त करवानुं अशक्यप्राय होईने केटलेक स्थाने जराजरा पाठ त्रुटित रही गयो छे. 81 ढाळो अने 863 कडीओमां पथरायेला आ रासनो स्थूल परिचय आ प्रमाणे छे : दुहा : 144 चौपाई : 272 कडी : 443 कवितः 4 समस्यागीत : 2 श्लोक : 1 प्रस्तुत कृतिनो विषय जैन श्रावक-श्राविकाए पालन करवा लायक 12 व्रतोतुं स्वरूपदर्शन छे. सम्यक्त्व अने 12 व्रतो ते ज श्रावक-धर्म, अने प्रत्येक जैनधर्मी गृहस्थे आ श्रावकधर्मनुं ग्रहण अने आचरण करवू ज जोईए एवो बोध आपवानो कर्तानो प्रधान आशय छे. रासनो आंतरिक अछडतो परिचय मेळववा माटे आपणे ढाळ-क्रमे अवलोकन करीए. रासनो प्रारंभ मंगलाचरणना दूहाथी थाय छे. इष्टदेव श्रीपार्श्वनाथने तथा पांच परमेष्ठीने स्मर्या पछी कवि सरस्वती देवी, स्तवन अने वर्णन लंबाणथी करे छे. पांचथी अग्यार एम 7 दूहा अने पछी बे आखी ढाळ
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 कविए सरस्वती-वर्णनमा रोकी छे, (कडी क्र. 12-28) जे तेमनी शारदा प्रत्येनी अनुपम आस्थानो संकेत आपी जाय छे. विख्यात इतिहासलेखक श्री मोहनलाल दलीचंद देशाईए नोंध्यु छे के "सरस्वती देवी प्रत्ये संपूर्ण भक्ति होई तेमनी हमेशां स्तुति करी पोतानी कृतिओनो प्रारंभ करेल छे. अने जनश्रुति प्रमाणे तेमणे ते देवीने आराधन करी प्रसन्न करी हती अने देवीनो प्रसाद मेळव्यो हतो. (जैगूक 3, पृ. 24)" विशेष रसप्रद वात ए छे के प्रस्तुत रासनी प्रति कविए जाते लखेली छे, अने तेना प्रथम पत्र पर कविए स्वहस्ते ज वीणा-पुस्तकधारिणी अमृतपूर्णकमण्डलुहारिणी जपमालिकाविलसितहस्ता मयूरवाहिनी सरस्वती देवी, चित्र पण आलेखेलुं छे. चित्रकलानी दृष्टिए स्हेज पण आकर्षकता के विशेषता न होवा छतां, एक चोपड़ा चीतरनार वृद्ध वाणियाए पोतानी ऊर्मिओने जे भावसभर रीते अभिव्यक्त करी छे, ते ज आ चित्रनी अने तेना आलेखकनी ध्यानार्ह विशेषता छे. आ चित्र आ अंकमां अन्यत्र (टाईटल-१ पर) मूकवामां आव्युं पण छे. कर्ता दूहाओने प्रथम अंश गणतां हशे. तेथी तेमणे प्रथम ढाळने सीधो (2) क्रमांक ज आप्यो छे. अहीं मूल क्रमांकनी जोडे, सुगमता खातर, 1 थी क्रमांक लखी उमेर्या छे. एक महत्त्वनी वात अहीं स्पष्ट थवी जोईए. कर्ता जैनधर्मी छे. तेमणे निरूपण करवा धारेलो विषय प्रणालिकागत रीते जैन धर्म अने शास्त्रो साथे संबद्ध छे. तेथी स्वाभाविक रीते ज तेमां जैन आचारशास्त्रीय परिभाषाना शब्दो-शब्दजूथ वारंवार आववाना ज. ते तमामर्नु अर्थविवरण आपवानो अर्थ कृतिनुं (गुजराती) विवेचन ज थाय, जे अप्रस्तुत छे. आ माटे तो जिज्ञासुओए पद्धतिसर जैन परिभाषा शीखवी रहे, कां तेना जाणकारो पासेथी ते शब्दो-अर्थोनी जाणकारी मेंळवी लेवी पडे. ___ ढाल ४(३)मां दशविध-दश प्रकारना यतिधर्मनो अने तेना अनुषंगे बार भेदे तपश्चर्यानो अछडतो निर्देश थयो छे. तो ढाल ५(४)मां धर्मरत्नने माटे योग्य बनावनारा श्रावकोचित 21 गुणोनां नाम आप्यां छे. ढाल ६(५)मां व्रतो लेवा माटे उत्सुक गृहस्थने थोडीक पूर्वभूमिकारूप शिखामणो आपीने अढार दोषोनां नामो लेवापूर्वक जिनेश्वर-अरिहंत ते 18 दोषरहित एवा देव होवानुं जणावे छे. ढाल मां अरिहंतना 34 अतिशयोनो परिचय मळे छे,
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ ढाल ८(७)मां जिनवरे जीतेला आठ मदनां अने ढाल 9(8) मां तेमणे क्षय पमाडेलां 8 कर्मोनां नाम दर्शाव्यां छे. ढाल १०(९)मां जिनेश्वरे पूर्वभवमा आराधेला वीसस्थानक पदोनां नाम आप्यां छे. ते पछीना दहाओमां जिनना चार निक्षेप (86-87) दर्शावीने प्रतिमानी तथा मंदिरनी पण आशातना (अवमानना) करवानो निषेध (88) कह्यो छे. ढाल ११(१०)मां तेवी 10 मुख्य आशातनाओ बतावी छे. अहीं 'देव'तत्त्व- वर्णन आटोपाय छे. ९२मी कडीथी 'गुरु' तत्त्वतुं वर्णन चालु थाय छे. गुरु ते आचार्य, तेमना गुण 36 छे, तेनुं स्वरूप ९३-९५मा प्ररूप्युं छे. ढाल 12-13-14 (११-१२-१३)मां शास्त्र वणित 'प्रतिरूपता' आदि 36 गुणो, तेना अनुषंगे बार भावना अने 22 परिषहोनु स्वरूप वर्णवायुं छे. पछी ढाल १५(१४)मां परीषह समभावे सहन करनार महान मुनिराजोनां नाम-वर्णन छे. ढाल १६(१५)मा आचार्यनी पछी आवनारा 'मुनि'रूप गुरुतत्त्वना 27 गुणो गणाव्या छे. १६६मा दहामां 'धर्म' तत्त्वतुं स्वरूप खुब ट्रॅकाणमां पण स्पष्ट शब्दोमां दर्शावेल छे. ढाल १७(१६)थी मिथ्या देव (कुदेव)ना स्वरूपनी ओळखाण शरु थाय छे. ते ढाळ, दूहा, कवितनो सार एटलो ज छे के जेमां राग-द्वेष-मोहकाम-क्रोध वगैरे प्रत्यक्ष देखाता-अनुभवाता होय ते 'कुदेव' छे; तेवाने 'देव' लेखे स्वीकारवा ते मिथ्यात्व गणाय. क्र.७८ थी 85 सुधी (ढाल 18(17) सहित)मां ते ते देवोने इष्टदेव माननार प्रतिपक्षीनी 'जैन' सामे दलीलो आपवामां आवी छे. ढाल १९(१८)मां जैन द्वारा अपातो तेनो प्रतिवाद छे. तेमां जैनो ईश्वरना कर्तृत्वनो परिहार करीने बधुंज कर्मकृत होवानो सिद्धांत स्थापे छे. ९३मुं कवित्त, दूहो अने ढाल २०(१९)मां कर्मनी अदम्य ताकातनुं बयान थयुं छे. छेल्ले निष्कर्षरूपे देव-कुदेवनो विवेक निरूप्यो छे. २०४मा दूहाथी कुगुरुनो त्याग करी सद्गुरुने अपनाववानुं अने पछी (208) मिथ्याधर्मने त्यागवानुं शीखवे छे. ढाल २१(२०)मां पांच प्रकारनां मिथ्यात्व- वर्णन अने तेना सेवनथी भवभ्रमण दर्शावायुं छे. ढाल २२(२१)मां "सम्यक्त्व व्रत"ना चार आगार अने छ छीडी (छूटछाट) समजावेल छे. अने ते पछी विनोदात्मक शैलीमां कविए 'मूर्ख'नां केटलांक लक्षणो बताव्यां छे.
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 'छप्पय' छंद कविने केवो सिद्ध हशे ते आवां कवित्त वांचतां समजी शकाय छे. याद रहे के कवि, प्रेमानंद, शामळभट्ट अने अखाना पूर्वकालीन छे. ढाल २३(२२)थी समकित प्राप्त करनार श्रावकनी नित्यकरणीनुं विस्तृत वर्णन प्रारंभाय छे. छ आवश्यकनां नाम बाद रात्रिभोजन त्यजवा अंगे वेद, पुराण, आगम, गीताना तथा मार्कडेय ऋषिना हवाला आपवापूर्वक रात्रिभोजनथी थतां दोषो-रोगो विशे वात समजावे छे. प्रसंगोपात्त, सात वखत क्यारे/क्यां पाणी न पीयूँ तेनी शीख लखी छे (234-37). त्यारबाद जिनपूजा आदि कृत्यो करवानां कहे छे. ज्ञान अंगे पुस्तकलेखन उपर भार आपीने सात क्षेत्रे धन वापरवानुं सूचन आपे छे. तेना प्रसंगे धन संचय करी राखनार कृपण थवाने बदले दान आफ्वानो आग्रह करतां कवि दाननो महिमा अने कृपणतानी लघुता पण वर्णवे छे (ढाल 24(23)- तथा तेना दूहा). 260 क्र.नो दूहो "ल्यख्यमी मंदिरमाहां छतां, मागण गया नीरास / तेहनी जनुनी भारि मुई, ऊदरी वा दस मास // " वांचतां ज, सौराष्ट्रना लोकसाहित्यमां बोलातो दूहो "जेनो वेरी घाथी पाछो गयो, अने मागण गयो नीराश, एनी जननी भारे मरी, एने उपाड्यो नव मास" याद आवी जाय छे. क्र. 261 मांनी 'गाहा' अशुद्धप्राय छे. ढाल २५(२४)मां सम्यक्त्वनी आवश्यकता अने महिमा वर्णवी क्षायिकसम्यक्त्वनुं स्वरूप समजाव्यु छे. ढाल २६-२७(२५-२६)मां जीवे संसारमा करेली रझळपाटनुं वर्णन अने तेमां महाभाग्योदये मनुष्यजन्म तेमज सम्यक्त्व मळ्यां होई तेने वेडफी न देवानी शीख अपाई छे. ढाल २८(२७)थी ढाल 35(34) सुधी सम्यक्त्वना पांच अतिचारो विस्तृत स्वरूप दर्शावेल छे. अहीं प्रसंगतः प्रतिमानिषेधक मतनो उल्लेख करीने तेमनी समक्ष प्रतिमानी सिद्धि करी आपनारां आगम-ग्रंथोना संदर्भ पेश करवामां आव्या छे (ढाल 28(27)). बन्ने पक्षे सामसामे करेली दलीलो-खंडनमंडन पण विस्तारथी जोवा मळे छे. तेमां एक तबक्के "मूर्ति पथ्थररूप जड होवाथी
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ फल देवा समर्थ नहि बने" (कडी 324) एव प्रतिपक्षनी दलीलनो छेद एवा ज धारदार तर्क वडे उडाडतां कवि कहे छे के "सरकारी नाणांनो सिक्को निर्जीव होवा छतां ते देखाडीए के आपीए तो धारी वस्तु फलरूपे मेळवी शकाय छे, जे बतावे छे के जड पदार्थ पण सर्वदा निष्फल नथी होतो" (क्र.३२७). आवी अन्य दलीलो पण रसप्रद छे. ढाल २९(२८)मां "आजे साधु नथी, अथवा छे ते शुद्ध-निर्दोष नथी" एवो मत अने तेनुं निराकरण छे. ढाल ३०(२९)मां मुहपत्तिनो त्याग करनार (प्राय: तो आंचलिको)नो, चोथने त्यजी पांचमना पजूषण तथा चौदशने त्यजी पूनमनी पाखी करनारा मतनो, षट्कल्याणकवादी (खरतरो)ना मतनो उल्लेख थयो छे, अने जरा कडक बानीमां ते मतोना कविए लीधेला ऊधडा पण वांचवा मळे छे. ढाल ३५(३४)मां अयोग्यनी संगतिथी थती हानिनां घणां उदाहरणो आप्यां छे, अने ए द्वारा मिथ्यासंगनो परिहार करवानुं सूचव्युं छे. ढाल ३६(३५)मा पहेला अणुव्रत 'स्थूल प्राणातिपात-विरमण व्रत'नुं स्वरूप शरु थाय छे. तेनो प्रधान सूर जीवदयानो छे. दया विना, दुर्लभ आ मानवजन्म हारी जवानी दहेशत बतावीने कवि प्रसंगत: दश दृष्टांतो ते अंगेनां विगते वर्णवे छे. ढाल ३७(३६)मां दयारहित धर्मनी अनेक वस्तुओ साथे तुलना करीने ते बघांनी जेम दयाविहीन धर्मनो पण त्याग करवानुं कवि कही दे छे. ढाल ३८-४१(३७-४०)मां पण विविध प्रकारथी दयाधर्मनो ज महिमा गवायो छे. ढाल ४२(४१)मां गृहस्थे दयापालन अर्थे बांधवाना दश चंदरवानी विगत आपी छे. ढाल ४३(४२)मां पाणी गळवानो विधि दर्शाव्यो छे, एमां गलणांनुं माप पण वर्णवेल छे. ढाल ४५-४९(४४-४८)मां, जीवहिंसा करनारा मनुष्योनी रीत, तेमने मळनारां कटु फल प्रत्ये ध्यानाकर्षण अने हिंसा नहि करवानी शीख, दया पाळीने मेघकुमार बनेला हाथीनी कथा, हिंसानां फल पामनार मृगापुत्र लोढियानो प्रसंग, अने रोजिंदा जीवन-व्यवहारमां आवनारा हिंसाना अवसरो तरफ ध्यान दोरी ने तेथी बचवानो उपदेश - आ बधी वातो थई छे.
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________ March 2002 ढाल ५०(४९)मां बीजा 'मृषावाद-विरमण'नामना अणुव्रतनो अधिकार छे, तेमां पांच मोटां जूठनो आ व्रत लेनार माटे सदंतर निषेध कह्यो छे. ते उपरांत जूलु बोलवानां नुकसान तथा सत्य बोलनाराना सदृष्टांत अवदातनुं पण रोचक वर्णन थयुं छे. ढाल ५१(५०)मां आ व्रतना पांच अतिचारो तथा तेने टाळवानो उपदेश अपायो छे. ढाल ५२(५१)मां त्रीजा 'अदत्तादान-विरमण' अणुव्रतनो संबंध छे. चोरी के, महापाप छे, अने ते करवाथी केवी हानि थाय तेनुं वर्णन आमां मळे छे. चोरी द्वारा मेळवेला धनथी अत्यारे भले लहेर वर्तती होय, पण कालांतरे-भवांतरे पाडो के गधेडो थईने तेनुं देणुं चूकवq ज पडशे (दूहा-क्र.५६९) ते वात वेधक शब्दोमां कविए मूकी आपी छे. कवित (५७१)मां देवादारनी स्थिति केवी माठी थाय तेनं बयान सुभाषितछप्पारूपे आप्युं छे, ढाल ५३(५२)मां त्रीजा व्रतना पांच अतिचारो समजावेल अने हवे आवे छे चोथा व्रतनी वात. ढाल ५४(५३)मां चतुर्थ अणुव्रत 'स्वदारा-संतोष-परस्त्रीगमन-विरमण व्रत'नो महान महिमा कविए गायो छे. आ ब्रह्मचर्य व्रत छे. तेना पालनना लाभ अपार छे. ढाल ५५(५४)मां केवा केवा महान गणाता लोको पण आ व्रत चूकीने परनारीमा तथा विषयवासनामां अटवाया तेनी वात घणा विस्तारथी वर्णवाई छे. एज वातने फरीथी 4 कडीओ (चौपईओ)मां 'समस्या' नामक काव्यप्रकारमा पण कही छे. ढाल 55, 57(56), 57 मां शीलनो महिमा गायो छे अने शीलवंत महात्माओनां नामो तथा गुणगान गायां छे. ढाल ५८मां आ व्रतना पांच अतिचारो समजाव्या छे. ___ ढाल ५९मां पांचमा 'परिग्रहपरिमाण' नामे अणुव्रतनुं स्वरूप छे. परिग्रह केवो अनर्थकारी छे ते, अने लोभवश थईने परिग्रह-काजे केवा केवा लोको केवां भयंकर काम करी गया तेनां दृष्टांतो वर्णवायां छे. पछी आवे छे समस्याकाव्य. तेमां परिग्रह भेगो करनारा पण छेवटे तो बधुं छोडीने चाल्या ज जाय छे ते वात पर भार मूकी परिग्रहनी व्यर्थता बतावी छे. ढाल 60 तथा ६१मां एवी महान विभूतिओनां नाम गणाव्यां छे के तेमना जेवाने पण आखरे तो परिग्रह पड्यो मूकीने जर्बु ज पड्युं छे. अर्थात् आवा महान
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ लोकोनी पण आ स्थिति होय, तो आपणे शा माटे 'मारु मारूं' एम करतां वळगी रहे, ? एम कवि सूचवे छे. ढाल ६२मां ते व्रतना पांच अतिचारनी वात छे. ढाल ६३मां छा 'दिशापरिमाण' नामे गुणवतनुं तथा तेना पांच अतिचारोनुं स्वरूप वर्णव्युं छे. ढाल 64 मां सातमा 'भोगोपभोगपरिमाण' नामे गुणव्रतनी वात आवे छे. दिशापरिमाण एटले रोज, महिनामां, वरसमां के आखा जीवनमां, कई कई दिशामा केटला विस्तार सुधी जवू के न जqते अंगेनी मर्यादा आंकवानी छे. ज्यारे सातमा व्रतमां पोते आहार वगेरे तमाम बाबतोमा केटला पदार्थो भोगवी तथा राखी शके तेनी मर्यादा निश्चित करवानी छे. एमां मूळ चौद नियमो नित्य लेवाना-पाळवाना होय छे, तेनी वात ढाल ६४मां छे. ते पछीनी छ ढालो (६५-७०)मां आ व्रतना पांच अतिचारोनुं विस्तृत अने बारीक वर्णन थयुं छे. ढाल ६५मां सचित्त (सजीव)भक्षण अने सचित्त-प्रतिबद्ध-भक्षणरूप अतिचारना प्रकारो तथा तेनो निषेध बताव्यो छे. ढाल ६६मा 22 प्रकारना अभक्ष्य पदार्थोनी तथा ढाल ६७मा 32 जातना अनंतकायनी गणतरी आपी छे, जे त्याज्य छे. ढाल ६८७०मां पंदर कर्मादानो (घोर पापमय-हिंसामय कार्यो)- विगते स्वरूप आप्यु आठमा 'अनर्थदंड विरमण' नामना गुणव्रतनुं विगतवार स्वरूप ढाल ७१मां छे. वगर कारणे अने वगर लेवा देवाए मनुष्य जे पापाचरण करे ते अनर्थदंड. तेनाथी बचावनार आ व्रत छे. ढाल पछीना दूहाओमां आ व्रतना पांच अतिचार दर्शावेल छे. ढाल ७२मां नवमा 'सामायिक' नामे शिक्षाव्रतनी वात छे; ते पछीना दुहाओमां पांच अतिचारो, चार प्रकारनां सामायिक, तथा आ व्रतना आराधकोनुं वर्णन थयुं छे. ते पछी ढाल ७३मां दशमा व्रत 'देशावकाशिक' नामे बीजा शिक्षाव्रतनी वात आवे छे. शेष तमाम व्रतोना नियमोनो संक्षेप-संकोच आ व्रतमा करवानो होय छे. तेमां पाळवानी मर्यादा वर्णवीने साथे ज तेना पांच अतिचारो पण देखाड्या छे. ढाल ७४मां अग्यारमा ‘पौषधोपवास' नामे शिक्षाव्रतनुं वर्णन थयु छे. 'पौषध' ए जैन श्रावकनी 12 के 24 कलाक सळंग करवानी एक
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 धर्मक्रिया छे, जेमां श्रावक महदंशे साधुतुल्य जीवन जीवे छे. पौषधमां करवानी करणी अंगेना विधि-निषेधो तथा ते व्रतना पांच अतिचार आमां बताव्या छे. ढाल ७५मां बारमा ‘अतिथिसंविभाग' नामना शिक्षाव्रतनुं स्वरूप आलेखायुं छे. पौषधोपवास करनारो श्रावक साधु आदिकने दान दीधा विना भोजन न करे-एवी आ व्रत लेनारानी प्रतिज्ञा होय. साथे ज व्रतना पांच अतिचारो पण कही दीधा छे. ढाल ७६मां सुपात्रदान, सार्मिकभक्ति, दीनोना उद्धार वगेरे कार्यो, मळेला धन थकी, करवानो उपदेश अपायो छे. ढाल ७७मां दानादि वडे पुण्य करनार अने न करनार मनुष्योनी सुख-दुःखादि स्थितिनो तफावत समजाव्यो छे, जे खूब मनन करवा लायक छे. अने हवे कवि उपसंहार करवा भणी वळे छे. ७३३मी कडी (दूहो) थी ते शरु थाय छे. कवि कहे छे के में बार व्रत गायां तेमां क्यांय भूल रही होय तो ते माटे कविने-मने दोष न आपशो; केम के हुं तो छु ज मूढ अने गमार ! में तो माता-पिता समक्ष बालक बोले ते प्रकारे अहीं मनमां ऊग्युं ते बोली दीधुं छे. सांखी लेजो अने भूल होय तो सुधारजो. आ पछी, ढाल ७८मां कवि गुणदेखा अने दोषदेखा एम बे जातना पुरुषोनं स्वरूप जरा निरांते वर्णवे छे, अने पछीना दहाओमा दोषदर्शीने दुःख अने गुणदर्शीने सुख-एवो निष्कर्ष पण आपी दे छे. ढाल ७९मां कवि, बार व्रत लेनार अने पाळनारने केवां श्रेष्ठ सुख सांपडे छे तेनुं लोभामणुं वर्णन करे छे, अने छेल्ले कडी ८५२मां जिनधर्म अने पास एटले पार्श्वनाथना पसायथी पोतानां सर्व कार्य सिद्ध थयां होवानो परितोष कवि दर्शावे छे. ढाल ८०मां कवि पोताना धर्मगुरु विजयसेनसूरि महाराजनो तथा तेमना विशिष्ट प्रभावनो उल्लेख करीने, अकबर बादशाह द्वारा तेमने 'सवाई'नुं बिरुद मळेलु ते ऐतिहासिक घटनानो निर्देश करे छे. तेमना शिष्य विजयदेवसूरिनो नामोल्लेख वगेरे करीने कवि एम सूचवे छे के अमना धर्मसाम्राज्यमां आ रास पोते रच्यो छे. ढाल ८१मां कवि 'कलश' समान गीत गाय छे. तेमां 1666
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ वि.सं.ना कार्तक वदी अमास (गुजराती आसो वदी अमास)ना दिवसे त्रंबावतीखंभात मध्ये आ रास रच्यो होवानुं जणावे छे. कार्तकी अमासे दीपकदाढो होवानुं जणावीने, ते समये गुजरातमां पण राजस्थाननी जेम दिन-मासव्यवस्था हती तेम सूचवी दे छे. आ पछी पोतानो परिचय आपतां कवि कथे छे के जंबूद्वीप, भरतक्षेत्र, गुजरात देश, तेमां वीसल चावडाए वसावेल वीसलपुर नगर (वीसनगर). त्यांनी निवासी वीशा पोरवाड ज्ञातीय महीराज हतो. तेना पुत्र संघवी सांगण खंभातमां आवी रहेला. तेमना पुत्र ऋषभदासे त्रंबावतीमां आ रास रच्यो. प्रांते पुष्पिका छे, ते उपरथी जणाय छे के १६६६मां रचेला आ रासने कविए छेक १६७९मां एटले के 14-15 वर्ष पछी लिपिबद्ध कर्यो हतो. ८१मी ढाल-कलशगीत स्वरूप छे. आश्चर्यजनक रीते थोडाक शाब्दिक फेरफारने बाद करतां, आ गीत अने कविए रचेल 'कुमारपाल रास'नुं कलशगीत बिल्कुल समान छे. आनी रचना १६६६मा छ, कुमारपाल रासनी रचना १६७०मां छ- ए मुख्य फेर. (जुओ जैगुक. 3 पृ. 36-37). आ अंतिम ढालमां बे स्थाने [-]मां मूकेलो पाठ ते जैगूक 3, पृ. २९मां छपायेला पाठने आधारे छे, तेनी नोंध लेवी. कवि ऋषभदास स्वयं व्यापारी वणिक होईने तेमनी भाषा तथा लखावट अने जोडणी लगभग बोलचालनी शैलीमां छे. आ संपादनमां ते बधुं जेमनुं तेम रहेवा दीधुं छे. आनी बीजी प्रतिओ क्यांक हशे ज, अने तेनी साथे मेळवतां जोडणीनी दृष्टिए मोटा फेरफारो पण जोवा मळे खरा. अथवा आपणे पण तेवा फेरफार करी शकीए. परंतु अहीं तेम करवान नथी स्वीकार्यु. कविनी अने ते समयनी बोलचाल, लखावट तथा जोडणी केवी हशे तेनो अणसार तथा अंदाज आमांथी अवश्य मळी शके, जे संशोधननी दृष्टिए बहु उपयोगी बने. कविए, आपणे आजे ज्यां 'ज' नो प्रयोग करीए छीए, त्यां घणे भागे 'य' ज वापरेलो छे. दा.त. 'यम' - जेम, 'यगनाथ' जगनाथ, 'काय'- काज इत्यादि. तो ज्यां शब्दमध्ये 'र' आवे त्यां कवि 'र;' उमेरीने ते शब्द मूके छे. जेमके .. मुरख - 'मुर्यख', कारमी - 'कार्यमी'
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________ 10 March-2002 - वगेरे. रथ, 'रर्थ', घृत, 'घ्यर्त', कारणY 'कार्य', व्रतनुं (क्यांक) 'वर्त' आवा आवा अनेक प्रयोगो भाषाविदो अने ध्वनिविदो माटे अत्यंत उपयोगी गणाय. आवा विषयमां ऊंडो अने व्यापक अभ्यास तथा रस धरावता बे मूर्धन्य विद्वानो, डो. भायाणी अने प्रा. कोठारी, जो हयात होत तो आपणने घणाबधां संशोधनो पण मळत अने अभ्यासलेखो पण मळत. केटलाक शब्दोना अर्थ पाछळ आपवामां आव्या छे. ते अंगे फरीथी स्पष्टता करवानी के पारिभाषिक शब्दोनो आ रासमां एटलो मोटो समूह छे के तेनी सूचि ने अर्थ आपवा करतां तो रासनुं विवेचन करवू ज वधु सुगम पडे. एटले ते शब्दोना अर्थ आपेल नथी. केटलाक शब्दोना अर्थ-संदर्भो मेळववामां प्रा. कान्तिभाई शाहे सहाय करी छे. प्रांते एक पारंपारिक जनश्रुति उमेरुं के ऋषभदास खंभातमां माणेक चोकमा रहेता हता ते मकान तथा तेमां- लाकडानुं कलाखचित घरदेरासर आजे पण त्यां विद्यमान छे. ते मंदिरने ते मकानमांथी काढी लईने नजीकमां ज नवनिर्मित शंखेश्वरपार्श्वजिनालयमां सुचारु रीते गोठवेलुं छे. तेमज केटलांक वर्षों पूर्वे, नगरपालिका द्वारा, आ लखनारना प्रयासोथी, ते विभागने "श्रावक कवि ऋषभदास शेठनी पोळ" एवं नाम पण अपायेलुं छे. संपर्कसूत्र : अतुल एच. कापडिया ए/९, जागृति फ्लेट्स महावीर टावर पाछळ, पालडी, अमदावाद-३८०००७
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________ कवि ऋषभदास कृत व्रतविचारास श्रीवितरागाय नम // दूहा // पास जिनेस्वर पूजीइ, ध्याईइ ते जिनधर्म / नवपद धरि आराधीइ, तो कीजइ स्युभ कर्म // 1 // देव अरीहंत नमुं सदा, सीद्ध नमु त्रणी काल / श्रीआचारय तुझ नमुं, शाशननो भुपाल // 2 // पूण्यपदवी ऊवझायनी, सोय नमु नसदीस / साद्ध सवेनि नीत नमुं, धर्म विसायांहा वीस // 3 // क्रोध मांन माया नही, लोभ नही लवलेस / वीषइ वीषथी वेगला, भवीजन दइ ऊपदेस // 4 // उपदेशि जन रंजवइ, महीमा सरसति देव / तेणइ कार्ण्य तुझनि नमुं, सार्द सारू सेव ||5|| समर सरसति भगवती, समर्या कर जे सार / हु मुर्यख मती केलवू, ते माहारो आधार // 6 // पीगल-भेद न ओलखं, विगति नही व्याकर्ण / मुर्यख-मंडण मानवी, हु सेवं तुझ चर्ण // 7 // कवीत छंद गुण गीतनो, जे नवी जाणइ भेद / तु तूठी मुख्य तेहनि, वचन वदइ ते वेद / / 8 // . मुर्यख मोटो टालीओ, कवी कीधो कालदास / जगवीख्याता तेहवो, जो मुख्य कोधो वास ||9|| कीर्ति करु तुझ केटली, मूझ मुख्य रसना एक / कोड्य जिह्वाइं गुण स्तवं, पार न पामुं रेख // 10 //
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________ 1 March-2002 तोहइ तुझ गुण वर्णवू, मूझ मती सारू माय / नख मुख वेणी शीर लगइं, कवी ताहारा गुण गाय // 11 / / ढाल // 2 // (1) दि(दे)सी-एक दीन सार्थपती भणइ रे० / राग गोडी० // नखह नीरुपन(म) नीरमला रे, चलकइ यम रवी चंद / रेखा सुदर साथीआ रे, देखत होय आनंदो रे / 12 / तूझ गुण गाईइ, कविजन कीरितु मायु रे, सार्द ध्याईइ 0 आचली // पदपंकजनुं जोडलु रे, नेवरनो झमकार / गजगत्य-गमनी गुणभरी रे, सीह हराव्युं रे लंक / ते लाजीनि वनी गयुं रे, हुतो सो य सुसंको रे ॥१४॥तु० // . ऊदर पोयणर्नु पनडु रे, नाभीकमल रे गंभीर / कंचुकचर्णा चुनडी रे, चंपकवणुं ते चीरो रे ॥१५|तुं०॥ रीदइकमल वन दीपतु रे, कुंभ पयुधर दोय / / प्रेमविलुधा पंखीआ रे, भमर भमंत ते जोयो रे ॥१६॥तु०॥ कमलनाल जसी बांहुडी रे, करि कंकणनी रे माल / बाजुबंधन बइहइरखा रे, विणानाद वीसालो रे // 17 // तु० // करतल जासु-फूलडां रे, रेखा रंग अनेक / उंगल सरली सोभती रे, वर्णव करूंअ वसेको रे // 18 // तु०॥ नख गुजानी ओपमा रे, झलकइ यम आरीस / नाशा शमइ यम दाम्यनी रे, त्यम चलके नशदीसो रे // 19 // तुझ०।। ढाल 3 // (2) देसी / भोजन द्यो वरभामनि रे // राग० केदार गोडी / / ऊर मुगताफल कनकनो रे, कुशमतणो वली हार | कोकीलकंठि काम्यनी रे, वदती जइ जइकार // 20 //
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ ब्रह्मांणी तुं समयाँ करजे सार, तुझ नामि जइ जइकार, ताहारइ कंठि रयणनो हार, चरणे नेवरनो झमकार, ब्रह्माणी तुं समर्यां करजे सार ॥आंचली०६ चंदमुखी मृगलोयणी रे, कनककचोलां गाल / नाशक ओपम कोर्नी रे, अष्टम ते ससी भाल // 21 // भ्र०॥ जीम अमीनो कंदलो रे, अधु(ध)र प्रवाली रंग / दंत जशा डाडिम-फुल रे, अकल अनोपम अंग // 22 // भ्र०॥ भमरि वंक जिम वेलडी रे, धनुष चढाव्यु बाण / मुर्यख सहि वही चालीआ रे, वेध्या जाण सुजाण // 23 // भ्र०॥ श्रवण ते काम हीडोलड्या रे, नाग नगोदर झालि / वेणी वाशग जीपीओ रे, हंस हराव्यु चालि // 24 // भ्र०॥ फूली सइंथो राखडी रे, षीटली खंति भालि / / ऊपरि सोहइ मोगरो रे, जिम स्युक अंबाडालि // 25 // भ्र०॥ 'मुगताफल भखी जेहनु रे, तेणइ वाहनी चढी माय / कवीजन समरइ सारदा रे, तस मुख्य रमवा जाय // 26 // भ्र|| स्मती रंगि एम भणइ रे, कवी कवयु गुणमाल / एह वचन श्रवणे सुणी रे, नर हा ततकाल ||27|| भ्र०।। हु हो कवीजन कईं रे, ऊत्तम कुल आचार / नरनारी सह संभलु रे, वरत कहुँ जे बार // 28 // भ्र०॥ . दूहा० // एणइ जगी धर्म-युगल कह्या, भाख्या श्रीजिनराय / श्रावक धर्म यती तणो, सुणयु एकचीत लाय // 29 // ढाल०४ (3) चोपई० // लाई चीत सुणयु सहु कोय, दसवीध्य धर्म यतीनो होय / ख्यमावंत नि आर्जवपणुं, मांन न राखइ मनम्हां घणुं // 30 //
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 लोभरहीत मुनी लागुं पाय, जिम आतमदूख सघलां जाय / बारे भेदे जे तप तपइ, अष्ट कर्म ते हेलां खपइ // 31 // बारइ भेद मुनी एम आदरइ, उपवास अणोदर बहु तप करइ / द्रव्यसंखेपण रसनी ताय, कायकलेश करइ मनदाहाझि // 32 // संवरइ अंदी पोतातणां, तो तस कर्म खपइ अतीघणां / गुरु पासइ आलुअणी लीइ, आतम सीख एणी परि दीइ // 33 / / वीनो वा(व)डानो सरावइ जेह, वयावछादीक करतो तेह / वली तप भाख्युं जे सझाय, ध्यान करतां पात्यग जाय // 34 / / काओसर्ग तो एम करवो कह्यु, जिम थीर पासकुंमारह रघु / ते जिनवरनुं नाम ज जपइ, बारे भेदे एम तप तपइ // 35 / / संयम चोखुं पालइ जेह, सत्यभाषा मुख्य भाखइ तेह / नीर्मल आतम राखइ अस्यु, तेहनि दोष न लागइ कस्यु // 36 // कोडी एक न राखइ कनई, ते मुनीवर पणि तारइ तनइं / ब्रह्मचरय नवविध्यस्यु धरइ, ते मुनिवर जगि तारइ तरइ // 37 / / दूहु०॥ दसविधि धर्म यतीतणो, कह्यं ते सुणयु सार / नर ऊत्तम ते सांभलो, श्रावक कुल आचार // 38 // बारइ व्रत श्रावकतणां, श्रावक सो गुणवंत / गुण एकवीसइ तेहना, सहु सुणज्यु एकच्यंत // 39 // ढाल० 5(4) // देसी० नंदनकु त्रीसला हुलरावइ ।राग० असाउरी०|| धर्मरत्ननि युगि कहीजइ, जस गुण ए एकवीसो रे / छिद्ररहीत जे श्रावक होइ, तस चणे मुझ सीसो रे // 40 // धर्मनि युगि कहीजइ० आंचली० //
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________ 15 अनुसंधान-१९ रुपवंत जोईइ गुण बीजइ,सोमप्रगति नर सोहीइ रे / लोक सकलनि होइ नर वलभ, करुर द्रीष्ट नवि जोईइ रे // 41 // धर्म। पापभीर श्रावकपणि होइ, छठो गुण ए जांणो रे / पंडीत नर पभणीजइ, श्रावइ (क?) ए गुण सात वखांणो रे // 42 // 30 // दाख्यण, लज्या अनि दयालु, मध्यशवरती वंदो रे / सोमद्रीष्ट जोईइ श्रावकनी, जिम पून्यमनो चंदो रे // 43 // धर्म०॥ गुणांणरागी नर गुणवंतो, कथा कहइ नरतारू रे / भला पक्षनो जे नर होइ, सो श्रावकपणि वारू रे // 44 // धर्म०॥ दीर्घद्रीष्टी सोलसमो गुण, वसेखतणो वली जाणो रे / / वीनो वडानो राखइ रंगि, श्रावक सोय वखाणो रे // 45 // धर्म०॥ कीधा गुणनो जे जगी जांणो, सो श्रावक नीत्य वंदो रे / पर-ऊपगारी जे नर होसइ, सो पणि सुरतरु कंदो रे ॥४६॥धर्म०॥ लभधिलखी ते श्रावक साचो, रहीइ तेहनि संगिं रे / ए गुण एकविसइ सहु सुणयु, नर धर्यो नीत अंगिं रे // 47 // धर्म०।। दूहा० // एकवीस गुण अंगि धरी, ध्याओ ते जिनधर्म / ग्रही व्रत चोखं पालीइ, पद लहीइ यम पर्म // 48 // बारइ बोल सोहामणा, सुणज्यु सहु गुणवंत / लीधु व्रत नवि खंडीइ, भाखइ श्रीभगवंत // 49 / / ढाल० 6 (5) // देसी० भवीजनो मती मुको जिनध्यानि०॥ राग-शामेरी / / गुरु ग्यरुआ मुनीवर कनि, जे कीधु पचखांणो रे / ते नीसचइ करी जन पालु, जिहा घट धरीइ प्रांणो रे // 50 //
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________ 16 March-2002 कवीजनो गुण गाओ जिनकेरा, आलपंपाल म म ऊचरो, जस म म बोलो अनेरा रे / कवीजनो गुण गाओ जिन केरा, ..... आंचली० // तत्त्व त्रणे आराधीइ, श्रीदेव गुर निं धर्मो रे / समकीत सुधु राखि समझो, जईन धर्मनो मर्मो रे // 51 // क०|| देव श्रीअरीहंत छइ, जस अतीसहइ चोतीसो रे / / दोष अढार जिनथी पणि अलगा, वांणी गुण पांतीसो रे / क० // 52 // दोष अढार जे जिन कह्या, ते नही अरीआ पासइ रे / यु मृगपति दीठइ मदि मातो, मेगल ते पणि नाहासइ रे / क० // 53 / / दांन दीइ जिन अतीघj, को न करइ अंतराइ रे / लाभ घणो जिनवर तुझ जाणुं, बहु प्रतिबोध्या जाइ रे / क० // 54 // अंतराय जिननि नही, वीर्याचार वसेको रे / तप जप तुं संयम जिन पाल[त], आलस नही जस रेखो रे / क०||५५॥ भोग घणो भगवंतनि, अनि वली अवभोगाइ रे / सूर नर कीनर गुण तुझ गाइ, वंदइ प्रभुना पाइ रे / क०॥५६॥ हाशविनोद क्रीडा नही, रती अर्ती नही नामो रे / भय दूगंछा जिन नवी राखइ, शोक अनि नही कामो रे / क० // 57 // मीथ्या मुख्य नवी बोलवू, जिननि नही अज्ञानो रे / नीद्रा नही नीसचइ सहु जाणो, अवर्तीनिं नही मानो रे / क० // 58|| राग द्वेष जिन जीपीआ, लीधो सीवपूरवासो रे / / ते जिनवर पूजंतां पेखो, पोहइचइ मननी आसो रे / क० / / 59 / / दहा० // आशा पोहोचइ [मनत]णी, जपता जिनवर नाम / अतीसहइ चोतीस जिनतणा, ते बोलु गुणग्राम // 6 //
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ [40] ढाल० // [6] // देसी० अंबरपूरथी तिवरी० ॥राग-गोडी।। अतीसहइ चोतीस जिनतणा, प्रथमइ रूप अपारो / रोगरहीत तन नीरमलुं, चंपकगंध सुसारो // त्रुटक० // सार चंपक तन सुगंधी, भमर भंगि तिहां भमइ / सास नि ऊसास सुंदर कमलगंधो मुख्य रमइ // रुधीर मंश गोखीर-धारा, अद्रीष्ट आहार नीहार रे / सहइजना ए च्यार अतीसइ, कर्म-घाति अग्यार रे ||6|| समोवसणि बार परखधा, योयनमांहिं समायु रे / वाणी जोयनगाम्यणी, बूझइ सूर-नररायो / राय बुझ[इ]रवि सरीखु, भामंडल पूठिं सही / जोअण सवासो लग पलाई, रोग नीसचइ ते...(?) || सकल वइर पणि विलइ जाइ, सातइ ईत समंत रे / मारि (म)रगी नही, अना(वृष्टी) अतीव्रीष्टी नवी हंत रे // 62 // अनवृष्टी नही जिन थकई, दुर्भाग्य नहीअ लगारो रे / [निजच]क परचक्र भइ नही, ए गुण जुओ अग्यारो // अग्यार गुण ए केवल पांमि, सुर कीआ ओगणीस रे / धर्मचक आकाश चालइ, चामर दो नशदीस रे // रत्नसीघासण पादपीठह. छत्र वणि सही सीस रे / अंद्रधज आकाश ऊचो, जुओ जिनह जगीस रे // 63 / / परमेस्वर पग जिहा ठवइ, कमल धरइ नव खेवो / रूप-कनक-मणि-रत्नमइ, तीन रचइ गढ देवो // देव गढ त्रणि रचइ रंगि, समोसर्ण्य चोरूप रे / अस्योख तरु तलि वीर बइसइ, जुओ जिनह सरूप रे / / त्रु० त्रु०
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 अधोमुख्य त्याहा कहु कंटीक, सकल विर्ष नमंत रे / दूदभी आकाश वाजइ, शब्द[स]हुअ रचंत रे // 64 // पवन फरुकइ कुअलु, अतिझीणो अनुकुलु / पंखी दइ परदक्षणा, स्युक[न बोलइ] मुख्य मुलु // मुल मुख्यथी स्युकन बोलइ सुगंधव्रीष्ट सोहांमणी / सूर सोभागी सोय वरसइ पूफविष्ट होइ घणी // समोसरणि पंचवर्णां पूफ ते ढीचणसमइ / नख केस रोमह ते न वाधइ सुरकोड्य त्याहां रंगि रमइ // अंद्रीनिं अनुकुल होइ षट सोय रत्ती सोहामणी / चोत्तीस अतीसहइ एह च्यंतइ लहइ संपति सो घणी // 65|| दहा० // संपइ सुख बहु पामीइ, धन कण कंचन हाट / ते जिन कां नवि समरीइ, जिणइ मद जी[प्या] आठ // 66 / / ढाल० 8 // (7) // देसी० नंदनकु त्रीसला हुलरावइ० // आठइ मद जे मेगल सरीखा, जिन जिपी जिन वारइ रे / मान[थकी] गति लहीइ नीची, पंडीत आप वीचारइ रे // 67 // __ आठइ मद जे मेगल सरीखा० अंचली० // जाति[मद] नवि कीजइ भाई, लाभतणो मद तजीइ रे / ऊंच कुलांनुं मांन क[रीनइ] [नीच] कुलां जई भजीइ रे ॥आठइ०॥६८।। प्रभुताने ए बलमद वारो, रूपमांन एकमन्नो रे / स[नतकु]मार जुओ जगी चक्रवइ, अंगिं रोग ऊपनो रे |आठइ०॥६९।। तपमद करतां पूण्य पलाइ, श्रुतमद मुर्यख थईइ रे / कहइ जिनराज सुणो रे लोगा, चोखइ च्यंति रहीइ रे ।आठइ०॥७०॥
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ दूहा० // चीत चोखं नीत राखीइ, हईइ सुजिनवर ध्यान / कर्मरहीत जिन ध्याईइ, तो लहीइ बहुमान // 71 / ढाल० 9 (8) // देसी० एणी परि राय करता रे० // हु जपुं जिन सोय रे कर्मई मुकीओ, सीवमंदिर जई ढूंकीओए // 72 / / टालि आठइ कर्म रे नाणांवर्णीअ, कर्म कठण जे दंसणा ए 73 / / मोहनी निं अंतराय रे ए पणि खइ करइ, तव अरीहा केवल वरइ ए 74 // आऊखुं नि नामकर्म रे [भे]गी वेदनी, गोत्रकर्म जिन खइ कीउं ए 75 // दूहा० // आठि कर्म जेणइ खेपव्यां, कीओ सु परऊपगार / नर उत्तममां ते कयुं, तीर्थंकर अवतार ||76 / / अंद्रतणी पदवी लही लडं चक्री भोग / तीर्थंकर पद नामनो एह लहो संयोग // 77 // पूर्व पूण्य कीआ व्यनां, ए पदवी किम होय / विसथानक विण सेवीइ, जिन नवि थाइ कोय // 78 // ढाल 10 / (9) // देसी० राम भणइ हरी उठीइ० || राग-रामग्यरी // [वीसथानक] एम सेवीइ, अरीहंत पूजि ते पाय रे सीधस्यु सही चीत लाय रे, प्रवच[न] ...... रे, आचारय गुणगाय रे, ........ // 79 // ......... वीसथानक एम सेवीइ / आचली० // थीवर यती रे आराधीइ, ..... ... उवझाय रे / साध सकलनि सो ध्याय रे, आठमई न्यान लखाय रे, ते नर अरीहंत थाय रे // 80 वी०॥
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________ 20 March-2002 नवमइ दंसण जाण जे, दसमइ विनओ ते भाख्य रे / आवसग नीर्मल राख्य रे, भ्रमव्रत ते जिन साख्य रे, तेरमइ क्यरीआ तु दाख्य रे..... वी० // 81 / / तप त्रविधि रे आराधीइ, गणधर गऊतमस्वाम्य रे / जिनवर भगति भली परिं, पूजी प्रणमो ते पाय रे.... वी० // 82 // चारीत्र चोर्खा रे सेवीइ, न्यान नवं अवडाय रे / श्रुतपूजा सोय कराव्य रे, चतुर्वीध्य संघ पइहइराव्य रे, ___ एम वीसथानक भाव्य रे..... वी.॥८३॥ दूहा० // वीस थानक सेवी करी, जे समर्या गुणवंत / तास तणा पद पूजीइ, ते भजीइ भगवंत // 84 // पूयिं पातिग छूटीइ, जपीइ जिनवर सोय / च्यार प्रकारि सधहता, शमकित नीर्मल होय // 85 // च्यार नखेपा जिनतणा, त्रीजइ अंगि जोय / एणी परि जिन आराधता, आतम नीर्मल होय // 86 / / नांमजिन पहइलुं नमुं, भावजिना भगवंत / द्रव्यजिन चोथइ थापना, सहु सेवो एकच्यंत // 87 / / जिनप्रतिमा जिनमंदिरई प्रेम करीनिं जोय / आशातना भगवंतनी, नर म म करयो कोय // 88 / / ढाल 11 / (10) // देसी० गुरनि गालि सुणी नृप खीयु० // राग-मारु // जिनमंदिरमाहिं जिन आगलि, आशातना नवी कीजइ रे / तंबोल वांणही अनइ थुकवू, जिनमंदिर जल नवी पीजइ रे / / 89 / / भगति करीजइ रे, कर्म खपीजइ रे // आंचली० //
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________ 21 अनुसंधान-१९ मईथन त्याहा नरि कीजइ नीसचइ, ए उपदेसनु झ सारो रे / लोढी नीत नषेधो मानव, वडी सो वेगी नीवारो रे..... // 10 // भगति क० // भोजन सूअण अनि जुवटु, जिनमंदिर ते म म खेलो रे / आशातना जो कीजइ त्याहिं, जिव होइ अतिमइलो रे // 91 // भ० // दहा० // देव अरीहंत अस्या कहू, गुरु भाख्यु नीग्रंथ / गुण छत्रीसइ तेहना, भवीजन देयो च्यंत // 12 // पांचइ अंद्री संवरइ, नववीध्य भ्रह्म सार / च्यार कषाइ परीहरइ, पंच माहाव्रत धार // 93|| मूनीवर मोटो ते कडं, पालइ पंचाचार / पंच सुमति रखि राखतो, वणि गुपति नीरधार // 94 / / गुरुगुण छत्रीसइ कह्या, सुत्र सीधांति जेह / / वलि गुण आचार्य तणा, नर सुणयो सहु तेह // 95 / / ढाल 12 / (11) // देसी० सासो कीधो सांमलीआ. // आचार्यना गुण छत्रीसइ, ते कहइसु मनरंगि / ते मुनीवरखें ध्यान धरीस्यु, रइहइस्यु तेहनि संगि // 16 // रूपवंत जोईइ आचार्य, सूदर (?) सोभीत देह / ते देखीनिं राजा रंजइ, लोक धरइ बहु नेह ||97|| कुमर अनाथी देखी समकीत, पाम्यो ते श्रेणीक राय / जईन धर्म भुपति जे समज्यु, रूपतणो महीमाय // 98 // तेजवंत जोईइ आचार्य, को नवी लोपइ लाज / जईन धर्म नई ओर वली दीपइ, स्युभकणिनां काज ||99 //
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________ 22 March-2002 युगप्रधान युगवलभ जोईइ, चीजो गुण तु जांण्य / पीस्तालीस आगम जे कहीइ, ते बोलइ मूख्य वांण्य // 100 / / मधुर वचन मूनीवरनुं जोईइ, उपजइ सहु संतोष / गंभीरो यम सायर साचो, न कहइ परनो दोष // 1 // च्यतुरपणि बुध्य चाखी जोईइ, रंगि दइ उपदेस / धर्म देसना देतां मूनीवर, आलस नही लवलेस ||2|| कोहो वचन न सर्वइ साचइ, सोमप्रगती मुनी होई / सकल शाहास्त्रनो संघरइ करतो, शील धरइ रखी सोही // 3 // अग्यारमो गुण अभीग्रहइ धारी, आपथुई न करंत / चपलपणुं ते चतुर न राखइ, प्रशन-रीदइ मूनी हंत // 4|| प्रतिरूप आदी देइनिं जाणो, ए गुण चऊद अपार / दस गुण मुनीवरना हवइ कहइस्यु, तेहमां घणो वीचार |5|| ख्यमावंत ते मूनीवर मोटो, जेहनि नही अभीमांन / मायारहीत जोईइ आचार्य, नीरलोभी तप ध्यान // 6 // संयमधारी नि सतवादी, नीरमल जस आचार / कोडी एक कनिं नवी राखइ, नववीध्य भ्रह्म सार // 7} ढाल 13 / (12) // देसी० मनोहर हीरजी रे // राग- परजीओ || बार भावनाना गुण बारइ, आतमभावीत होसइ / सकल पदार्थ ते नर लहइशइ, सीवमंदीरनि जोसइ // 8 // गुण ते नरतणा रे, जे मुनी अती गुणवंतो / / क्रोध मांन माया मद मछर, आण्यु काम ज अंतो / / गुण ते नरतणा रे, जे मुनी अतीगुणवंतो० // आचली / अनीत भावना नर एम भावइ, ध्यन यौवन परीवारो / गढ मढ मंदीर पोलि पगारा, को नवी थीर नीरधारो // 9 / / गुण०।।
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________ 23 अनुसंधान-१९ असर्ण भावना नर एम भावइ, नही मुझ कोय सखाई / मात-पिता कंता नि भगनी, को नवी राखइ भाई // 10 // गुण० // ध्यान धरो तो ऋषभदेव, अवर सहु जंजालो / जिनना सर्ण विनां नवी छुटइ, सूरपति को(के) भुपालो // 11 // गुण० / / संसारनी ते भावइ भावना, जगि दीसइ जंजालो / एक नीर्धन नि एक धनवंता, चाकर नि भुपालो // 12 // गुण० / / एक मंदिर बहु बालीक दीसइ, एक घरि नही संतांनो / एक मंदिर बहु रदन करंता, एक मंदिर बहु गांनो // 13 // गुण० // एकत्व भावना मुनी एम भावइ, नही मुझ कोय संघांतो / आव्यो एकलो जाईश एकलो, ए जगमाहां वीख्यातो // 14 // गुण० // अनत्व भावना कहीइ पांचमी, तेहनो एह वीचारो / जीव अनि ए काया जुजूई, कांई नवी दीसइ सारो // 15 // गुण० / / जीव मुकी जाशइ कायानि, काया केड्य न जायु / तुस्युनी गणी नि सहु पोषो, फोकट भारे थायु // 16 // गुण० // अस्युच भावना भेद कहु छु, सुणयो सहुअ सुजाणो / देही सदा ए छइ दूरगंधी, म करो कोय वखांणो // 17 // गुण० / / आश्रव भावना भेद भणीजइ, जेणइ आवइ बहु पापो / माहामुनी वरते वेगी नीवारइ, न करइ आप संतापो // 18 // गुण० // संवर भावना भली वखार्पु, पातीग जेणइ रुधाइ / पांचइ अंद्री मुनी वश राखइ, तो घट नीर्मल थाइ // 19 // गुण० // नोमी भावना कहु नीर्जरा, जे एव-इ त हु- थाइ / कर्मु खपइ नर कईअ कालनां, वइहइलो मुगति जाइ / / 20 / / गुण० // लोक भावना चऊद राजनी, भावइ आपसरूपो / ए जीविं ते सहुइ फरस्यु, कीधां नव नव रूपो // 21 // गुण० //
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________ 24 March-2002 धर्मभावना एणी[परि] भावइ, संसार ए सारो / धर्म विनां जीव मुगत्य न पावइ, ते नीसच्यइ नीरधारो // 22 // गुण०॥ बोध्य भावना कहुं बारमी, भावो सो रषिराजो / समकीत सुधुं राखो रंगिं, जिम सीझइ भवकाजो // 23 // गुण० / / दूहा० // काज सकल सीझइ सही, जे गुरु वंदइ प्राय / गुरु गुणवंतो ते कहु, परीसइ न दोहोल्यु थाय // 24 // परीसा बावीस जीपतो, परीसइ न जीत्यो तेह / ऋषभ कहइ गुरु ते भलो, सहु आराधो तेह // 25 // ढाल 14 / (13) // देसी० त्रपदीनी० // जे मुनी चात्र रंगि रमसइ, ते नर बावीस परीषह खमसइ / काल सुखि ते गमसइ, हो रख्यजी, का० // 26 / / ख्यध्या तणो परीसो ते पइहइलो, माधवसूत मन न कीउ मइलो / ढंढण मुगतिं वइहइलु, हो रख्यजी० // 27 / / त्रीषा तणो परीसो अ वीचारो, जल ऊतरतो रषि संभारो / एम आतम तुम तारो, हो रख्यजी० // 28 // सीतकालनो परीसो साचो, जीव खमत म होईश काचो / सुख लहीइ अती जाचो, हो रख्यजी० // 29|| उष्णकाल आवि म म धुजो, सोय संघाति साहामा जुझो / जो जिनवचनां बुझो, हो र० // 30 // डंस-मसा म म दूहुवो हाथि, ते परीसो खमीइ नीज जाति / पूत्र चलाची भाति, हो० // 31 // वस्त्र तणो परीसो पणी जाणो, मइला फाटां मनि म म आंणो / को म म वस्त्र वखाणो, हो रख्यजी० // 32 //
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________ 25 अनुसंधान-१९ रती परीसो ख्यमीइ नीज खांति, ए त्यम अरती सोय एकांति / स्त्रीपरीसो ऊपसांति, हो० // 33|| चालतां पंथि म म चुको, जीव जतन पूंजी पग मुंको / जिम सिवमंदिर ढुंको, हो० // 34 // ऊपाशरानो परीसो सहीइ, दीनवचन मुख्यथी नवि कहीइ / तो गति उची लहीइ, हो० // 35 // सेयानो परीसो अतीसारो, ए तारइ छइ मुझह बीच्यारो / अस्यु मनि आप वीचारो, हो० // 36 / / वचनतणो परीसो वीकराल, अं(अ)ग्यन वीनां उठइ छइ झाल / . क्रोध चढइ ततकाल, हो० // 37 // वचन खमइ ते जगवीख्यात, यम खमीओ शकोशल तात / कीर्तधर नरनाथ, हो० // 38 // वध-परिसो ते वीषम भणीजइ, जे खमसइ नर सो थुणीजइ / तास कीर्ति नीत्य कीजइ, हो० // 39 // मार न चल्यु द्रढह-प्रहारी, समता आणइ संयमधारी / ते नर मोक्षदूआरी, हो० // 40 // जाच्यनानो परीसो पणि खमीइ, मधुकरनी परि मुनीवर भमोइ / संयमरंगि रमीइ, हो० // 41 // थोडइ लाभिं रोस न कीजइ, ऊशभ कर्मनि दोसह दीजइ / पर अवगुण नवि लीजइ, हो० // 42 // रोग परीसो खमसइ जे खांति, ऊची पदवी लहइ एकातिं / सीधतणी ते पात, हो० // 43 // सनतकुमार सह्या सही रोगो, ओषधनो हुतो तस युगो / कहइ मुझ कर्मह भोगो, हो० // 44 //
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________ 26 March-2002 वर्ण तणो परीसो जे सइहइसइ, अष्टकर्म ईधण परि दइहसइ / सकल पदार्थ लइहइसइ, हो० // 45 // मल परीसइ जे मुनीवर मातो, सुंदर दीसइ पंथि जातो / लोक सकल तीहा रातो, हो० // 46 / / जो सतकार न दइ शनमानो, तो तु म करीश मनि अभीमानो / हईडइ करजे सानो, हो० // 47 // विद्यातणुं अभीमान न कीजइ, मुर्यख तेहनि गाल्य न दीजइ / संयमर्नु फल लीजइ, हो० // 48 // करमि तुझ कीधो अग्यनांन, भणता देखी मइलुं ध्यान / म करीश जो तुझ सान, हो० // 49 / / समकीत सहु राखो मन साखि, को म म चुको कोटल लाखि / ___ रहीइ जिनवर-भाखि, हो० // 50 // ए बाविसइ परीसा जाणुं, जे खमसइ नर सोय वखाणुं / नाम रीदइम्हां आणुं, हो० // 51 // दूहा० // नाम रीदइम्हां आणीइ, आतम नीर्मल थाय / परीसइ जे नर नवी पड्या, कवी तेहना गुण गाय // 52 / / ढाल 15 / (14) / / देसी० ए तीर्थ जाणी पूर्वनवाणु वार० // बहु परीसइ सबलु, वर्धमान जिन वीरो / जस श्रवणे खीला, चर्णे संधी खीरो // 53|| खंधक सूस्यना सष्य, पंचसया मुनी जेहो / घाणइ पणि पील्या, मनि नवि डोल्या तेहो // 54|| मुनीवर नीत्य वंदो ग्यरुओ गजसुकमालु / शरि अग्यन धरंतां, जे नवी कोप्यो बालु // 55 //
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________ 27 अनुसंधान-१९ रषि श्रीशकोसी, कर्म त्यणि सांहामो जायु / परीसइ नवि कोप्यु, ते वंदो रषीरायु // 56 / / जुओ अ... ली, जेणइ जगी राखी लीहो / लोकि बहु दमओ, पणि नवी कोप्यु सीहो // 57 // वली पूत्र चलाची, कीडी तास शरीरो / अढी दिवश लगि वली, फोलि न चलु धीरो // 58 // वाधर पणि वीट्यु, मुनी मेतारज सीसो / तोहइ पणि नावी, दूर्जन ऊपरि रीसो // 59|| जंबुक घरि घर्णी, अती मुखी वीकरालु / तेणइ मुनी भखीओ, कुमर अवंती बो(बा)लो // 60 // दूहा० // एम मुनीवर आगइ हवा, सो समरिं सूख थाय / गुण सतावीस जेहमां, ते वंदू रषीराय // 61 / / ढाल 16 / (15) // देसी० सांमि सोहाकर श्रीसेरीसइ० // गुण सतावीस सुणयु साधुना, मुनीवर मोटो न करइ विराधना || त्रुटक० वीराधना मुनी मन्य न करतो, सोय गुरु मनमां धरी, कांम क्रोध माया मछर भरीआ, तेह मुकु परहरी / जीव न परनो हणइ मुनीवर, ग्रीषा मुख्य बोलइ नही, दांन-अदिता न लहइ रख्यजी, भ्रह्म न चुकइ ते कही // 62 / / परिग्रहइ ते पणी मुनीवर परीहरइ, रात्रीभोजन सो मुनी नवी करइ // नवी करइ मुनीवर आहार राति, छइ कायनि राखतो, वलि पांच अंद्रीअ नि दमतो, वचन-अमृत भाखतो / क्रोध मांन माया लोभ टालइ, भाव सहीत पडिलेहणा कर्णसीत्यरी चर्णसीत्यरी, धरनार होइ तेहतणा // 63|| संयमयुगता रे मधुरु भाषता, मन निं वचनां काया थीर राखता / /
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 राखता थीर मन वचन काया, सीतादिक-परिसो सहइ, माँत ऊपसर्ग सो खमता, कर्म ईधण एम दहइ / गुण सतावीस एह सुधा, मुनी अस्यु आराधीइ अस्या गुरुना चर्ण सेवी कवी कहइ नीर्मल थईइ // 64|| दहा० / / नीर्मल आतम जेहनो, नीर्मल जस आचार / मुनी एहो(ह)वो आराधीइ, तो लहीइ भवपार // 65|| धर्म कह्यो जे केवली, ते मोरइ मनि सति / दयामुल आग्यना भली, सहु सेवो एक चति // 66 // ढाल 17 (16) चोपई० // कुदेव कुगुर कुधर्म वीचार, ए त्रणे तु जाण्य असार / . हरि हर विप्रा मीथ्या धर्म, ए तु छंडे समझी मर्म // 67 / / जे देखीनि सूरो भडइ, कायरतणा त्याहा प्रांण ज पडइ / ते वाहालु वलि जेहनि होय, सोय देव म म मांनो कोय // 68 // ऊमया वाहननु भष्य जेह, ऊत्तम लोके छंड्यु तेह / ते भोजन भखवा नि करइ, सो सेव्यु तुझ स्यु ऊधरइ // 69 / / जे जई बइठं ऊचइ शरइ, एकइ जाति आठइ मरइ / तेहनी ईछ्या करतो देव, स्यु कीजइ जगी तेहनी सेव // 70|| कांमी नर जस जोतो फरइ, मुनीवर तेहनिं नवी आदरइ / असी वस्त साथि जस रंग, ते देवानो म करो संग // 71 // जेणइ आवि नर रातो थाय, स्युकीत कर्यु ते सघलु जाय / सोय वस्त दीसइ जे कनि, ते देवा स्यु तारइ तनि / / 72 / / मूगट जयम्हा राखइ गंग, छानो तेहस्यु करतो संग / ईस देवनुं अस्यु सरूप, देखत कोय म पडस्यु कुप // 73||
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________ 29 अनुसंधान-१९ दूहा० // कुप्य म पडस्यु को वली, देव अवरनिं नाम्य / अरीहा एक विनां वली, कोय न आवइ कामि // 74 / / नमो ते श्रीभगवंतनि, आलि अर्थ म खोय / अंतर अरीहा ईसमां, सोय पटंतर जोय // 75 // कवीत // किहा परबत किहा टीबडीब किहा जिनना दास किहा अंबो कीहा आक, चंदन क्यांहा वन घास / किहा कायर किहा सुर, समुद्र किहा बीजां षांब किहा षासर किहा चीर, पेखि किहा अवनी आभ / किहा ससीहर नि सीपनु, दाता क्यरपी अंतरो, किहा रावण किहा रांम, 'कवि ऋषभ' कहइ द्रीष्टांतरो // 76|| - दूहा // एणइ द्रीष्टांति परिहरो, अनि देव असार / कांम क्यरोध मोहिं नड्या, तेहमां कस्यु सकार // 77 / / ईस्वरवादी बोलीओ, वचन सूणी ततखेव / करता हरता ईस एक, अवर न दूजो देव // 78 // ढाल 18(17) चोपई० // देव अवर नही दूजो कोय, भ्रह्मा वीस्णु नि ईस्वर सोय / ए त्रणेनी वोहो सीरि आण्य, जग नीपायु एणइ [तु जा] ण ||79 / / अणि त्रीभोव[न] भ्रह्मा घडइ, अवर देव को तिहा नवि अडइ / नारि पुर्ष पसु नारकी, ए ऊपनी ते भ्रह्मा थकी // 80 // एहनि पालइ ते हरी देव, ए ईस्वरनी एहेवी टेव / जगसंघार्ण एहनुं नाम, ईस देव- ए छइ काम // 81 / /
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________ 30 March-2002 ए त्रणे जे देवा कह्या, त्रइमुरतिपणि एक ज लह्या / एहनु अकल सरूप ज कडं, सूर नर दानवि ते नवी लघु // 82 / / ख्यन तारइ बुडाडइ वली, दईत सकल जेणइ नाख्या दली / भगततणी बहु करतो सार, ते देवानो न लहुं पार / / 83 / / ते शंकर मोटो देवता, सूर सघला तेहनि सेवता / अस्यु देव कहीइ अतबंग, प्रगट पुजावइ जगम्हा लंग // 84 // दहा० // ईस्वर ल्यंग पूजावतो, नही को तेहनि तोल्य / / ईस्वर व...... म [वादी यम ?] कहइ, जईन वीचारी बोल्य // 85 / / जईन कहइ तु शईव सुणि, करता ह[रता]..... ! (भ्र)ह्या स्यु सरजाडसइ, स्यु संघारइ भ्रम // 86 // ढाल 19(18) चोपई // .......... ब्रह्मा कहइ, बोल्या ब्रह्मा तारो क्याहां रहइ / वीस्णु जग पालइ छइ जोय, ................. का होय // 87 // महेश जो संघारइ छइ वली, ते ईस्वर क्यांहा गयु ऊचली / वारइ..... इ स ..... को गया, हरी हर भ्रह्मा थीर नवी रह्या // 88 / / जो ईस्वर जग देतो सीख, तो क्यम मागी घरि घरि भीख / ज्ञानव ..... इं लघु, स्त्री आगली जव नाचणि रह्यु / / 89 / / ते ईस्वर स्यु करसइ सुखी, ............ करमिं दूखी / पूर्व पूण्य जेहवु पणि हसइ, सुख दूख तेहेवु तेहनि थसइ // 10 // तू ताहारा घरनी जो वात, विप्र सुदामो सोय अनाथ / ऊशभ कर्म जो तेहनि हवं, तो काई क्रीष्णइं दीधुं नवु // 91 // तो तु जांणे कर्म ज सार, म करीश बीजो कशो वीचार / करमि वीस्णुं दस अवतार, करम भ्रह्मा ते कुंभार // 92 / /
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ 31 कवीत० // करमि रावण राज, राहो धड सबि गमायु, करमिं नल हरीचंद, चंद कलंकह पायु / पांडुसुत वन पेख्य, रांम धणि हुओ वीयुग मुज मंगायु भीख, भोज भोगवइ भोग // अइअहीला ईस नाच्यु, ब्रह्मा ध्यानि चुकयु / ऋषभ कहइ ग-रंक, कमि कोय न मूंकओ // 93 / / दहा० // करम को नवि मुकीओ, रंग अनि वली राय / जईन धर्ममां जेहवा, ते पणि सही कहइवाय // 94 // ढाल 20 / (19) // देसी० पाडव पाच प्रगट रहवा० // राग विराडी // करमि को नवी मुकीओ, पेखो ऋषभ जिणंदो रे / वरस दीवस अन नवी लघु, ते पइहइलो अ मूणंदो रे // 95 / / करर्मि को नवी मुकीउं / आंचली० // करमिं युगल ते नारकी, मल्ली हुओ स्त्रीवेदो रे / श्रेणीक नय॑ सधावीओ, कलावती करछेदो रे // 16 // करमिं० // मुनीवर मासखमण धणी, करमि हुओ भुजंगो रे / करमवसि वली छेदीआ, अछंकारी अंगो रे // 97|| क० // मृगावती गुर्ड पंखीओ, हरी गयो आकास्यु रे / चंदनबाल सांथि धरी, करमि परघर दास्यु रे // 98 // क०॥ चक्री सूभम ते संचर्यु, सतम नरगमां जायो रे / ब्रह्मदत नयण ते नीगम्यां, करम अंध सु थायो रे // 99 / / क०॥ विक्रम तव दूख पांमीओं, हंसि गलु जव हारो रे / कर्म वसि वली द्रुपदी, पेखो पच भरतारो रे // 100 // करभि० //
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________ 32 March-2002 कबीरदति रे भगनि वरी, कोधो मायस्यू भोगो रे / कर्म वसिं वली जो हवो, दशरथ राम-वीयोगो रे // 1 // क०|| करमि सुखदूख भोगवइ, नर नारी सूर सोयो रे / कर्म वीनां रे दूजो वली, जग्यह न दीसइ कोयो रे // 2 // क० // सोय कर्म जेणइ खेपव्या, ते जगी मोटो देवो रे / स्त्रीसंयोगी अ जेहवा, स्यु कीजइ तस सेवो रे // 3 // क०॥ दहा० // देव अस्यु पणी परिहरो, गुरु मुंको गुंणहीण / त्रवधि ए पणि छंडीइ, जिम म- व रसिर वीण(?) // 4|| सईव शन्यासी बंभणा, भट पंडीतनी जोड्य / स्त्री धनथी नही वेगला, ए जगि मोटी खोड्य // 5 // ऊग्या विन अन वावरइ, असत होइ तव खाय / पांचइ अंद्री मोक्यलां, दिन आरंभिं जाय // 6 // लोहशलानि वलगता, नवि तरीइ नीरधार / जस करी लांगां तुबडु, ते पाम्या भवपार ||7|| मीथ्या धर्म न किजीइ, मिथ्यामति म म राख्य / मीथ्याधर्म करतडां, जीव भमइ भव लाख्य // 8 // ढाल 21 (20) / चोपई / / कुडो धर्म म करयु कोय, कुडो कीधि स्यु फल हुय / पांच मीथ्यात परहर्यु सही, समकीत सुधुं रहइ यु ग्रही / / 9 / / अभीग्रहीता पहइलु मीथ्यात, अनभीग्रहीता जग वीख्यात / अभीनवेस त्रीजुं पणि जांण्य, संसईक चोथु मनि तु माणि // 10 // अणाभोग कहिइ पांचमुं, मीथ्या टाली जिनवर नमुं / भवअर्ण म्हां जिन नवी भमुं, सीवमंदिरम्हां रंगि रमुः // 11 //
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________ 33 अनुसंधान-१९ च्यार वली टालुं मीथ्यात, तेहनो तुझ भाषु अवदात / ते तुं श्रवणे सूणजे वात, जिम नाहासइ पूर्वनां पांत // 12|| लोकीक गुरु निं लोकीक देव, मांनी निं नव्य कीजइ सेव / श्रीदेव गुरु लोकोतर कहीइ, मांनी ईछी(?) तीहा नवि जईइ // 13 // ए च्यारे मीथ्यात ज होय, मीथ्याधर्म म करयु कोय / मीथ्याधर्म करंतां वली, पूण्य सकल जाइ परजली // 14 // गलीइं धोयु जिम कागडो, किम ऊजल होसइ बापडो / तिम जिउं मीथ्या करतो धर्म, कहइ किम धोसइ आठइ कर्म // 15 // मीथ्याधर्म करइ जे जाण्य, ते नर भमसइ च्यारे खांण्य / मीथ्याधर्म तु स्याहानि करइ, जईन धर्म विन को नवि तरइ // 16 // दूहा // तरइ नही नर जाणजे, करतो मीथ्याधर्म / तीहा आगार ज मोकला, सूणजे तेहनो मर्म // 17 // __ढाल 22 (21) चोपई // छइ छीडीनी जइणा कहुं, रायाभीओगेणुं पणि लहु / गु(ग)णाभिओगेणुं आगार, बलाभीओगेणु ते सार // 18 // देवीआभीओगेणुं जेह, गुरुनीगिहेणुं कहीइ तेह / वतीकंता छठी ते सार, च्यार वली कहीइ आगार // 19 // अनथणाभोगेणुं मांन्य, सहइसागारेणुं सूणिं कान्य / मोहोतरागारेणुं दाखीइ, वतीआगारेणुं भाखीइ // 20 // ए च्यारइ भाख्या आगार, शाहास्त्रमाहिं छइ घणो विचार / समझइ ते नर पंडीत का, नवि समझइ ते मुरिख लघु // 21 // कवीत // प्रथम मुरिख मंडी दोय वची मथो घलइ, मुरिख सोय परमाण, पंथि एकलो चलइ /
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________ 34 March-2002 मुरिख मांने सोय वण हवकार्यु बोलइ मूरिखमांहिं मुढ एब आपणी खोलइ // मूरिखमंडण मांनीइ उंघइ कुपि-कंठि ऊभो रही / कवी ऋषभ एणि परि ऊचरइ अकल इतानी गई // 22 // दहा० // अकल भली जगि तेहनी, करता पूण्य वीचार / नित्यकर्णी नीशचइ करइ, ऊतमनो आचार // 23 // ढाल 23 (22) चोपई // प्रहि ऊठी पडीकमणुं करइ, अरीहंतनांम रीदइम्हा धरइ / छइ आवशग नीत्य सही साचवइ, प्रेम करी जिनशासन स्तवइ // 24|| सामाईक निं जे वांदणुं, देई पातिग धोईइ आपणु / काओस्छर्ग चोवीसहथो जेह, पडीकमणुं पछखांणइ तेह // 25 // ए षट् आवशग केरां नाम, मंन स्युधिं कीजइ अभीरांम / तो घट आतम नीरमल थाय, पूर्व पाप ते सघलां जाय // 26 // दिन परति सही दो पचखांण, नोकारसी जावोजीव प्रमाण / संझ्यासमइ करवो चोवीहार, नीशाशमइ नवी लेवो आहार // 27 // रात्रीभोजन किहा नवि का, वेद-पुराणि किहां नवी लऔं / आगम गीता जोयु जई, नीशभोजन तिहा वायु सही // 28 // माहारकंड रष्य मुख्यथी सुण्डे, रांति जल पीवं अवगुण्युं / रातिआ युध किहां नवी होय, नीशाशमइ नवि नाहइ कोय // 29 / / देवपूजा राति पणि नही, दान पूण्य पणि वायु तही / सूरय साख्य विनां नही पूण्य, मन व्यहुणी जिम क्यरीआ सुन्य / / 30|| नीशाशमइ जिम ए नवी भजो, तिम भोजन जाणीनिं तजो / ऊग्यामाहां भोजन एक वार, ग्रीहीधर्मनो ए आचार // 31 // .
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________ 35 अनुसंधान-१९ राजवईद मुख्य एहेवु कहइ, नीशभोजनथी बहु दूख लहइ / ऊदरिं कोडी जो पणि जाय, आ भव परभव मूर्यख थाय // 32 / / ऊदर जुअतणो संयोग, तोह जलंधर वाधइ रोग / करोलिआथी वली कोढी थाय, वईदकशाहासत्रि ए कहइवाय // 33 / / माखी विमन करावइ नेठि, परवेदन ऊपजावइ पेटि / ते माटि तु आप विचार्य, सात ठामि जल पीवु वार्य // 34 // नर्णइ कोठइ नीर न पीइ, सिर नाही मुख्य जल नवि दीइ / भोजन अंतिं नीर नीवार्य, नीशाशमइ जल पीवं वार्य // 35 / / भोग भजी जल पीवं नही. ऊभा रही नवी बोल्यु कही / अर्णभोमि जई जल पीइं, अंगि रोग घणा ते लीइ // 36 // राति जल पीधि बइ दोष, एक रोगी निं पातीग पोष / अनेक दोष दीसइ वली यांहि, पडइ पतंगी दीवामांहि // 37 / / अनेक जीवनी हंशा थाय, नीशभोजन पातिग कहइवाय / . जंत न दीसइ द्रीष्टिं कोय, जीव भखंतां पातिग होय // 38 // ते माटइ करवो चोवीहार, अगड़ आखडी ते जगी सार / अवरती ना रहीइ कदा, जिनवर भगति करीजइ सदा // 39 / / श्रीजिनप्रतिमा आगलि रही, दिन पति नीत्य जोहारो सही / चईतवंदण ते हरखि करो, प्रमाद पहइलो ती परीहरो // 40 // साध चारत्रीआ वांदो सदा, वांद्या व्यणइ नवि रहीइ कदा / गुण सताविस जेहनि पाश, ते मुनीवर वंदो ओहोलाश // 41 // नित सुणीइ गुरुनु वाख्यांन, भोजनवेलां दीजइ दांन / पूण्यतणि नित्य कर्णी करो, दूर्गति पडता जीव ऊधरो // 42 / / नवपद आदि देई सझाय, पूण्य करंतां सुखीओ थाय / श्रीदेवगुरुना जे गुण गाय, ते नर वइहइलो मुगति जाय // 43||
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________ 36 March-2002 सतर भेद पूजा कीजीइ, जनमतणो लाहो लीजीइ / सनाथ स्वामी आगलि करो, क्रपणपणुं ते सही परीहरो // 44 // नागकेत जिम पूजा करी, केवल-कमला स्त्री तेणइ वरी / भवसमुद्रथी जीव ऊद्धरी, ते नर वसीओ जिहां सिद्धपुरी // 45 / / घ्यर्त द्धुप आखे ते आण्य, केसर चंदन अगर सुजांण्य / वालाकुची वस्त्र नीवेद, जिनवर आगलि भावनभेद // 46 / / न्यान लखावो न्यांनी कहइ, न्यान थकी जिनशासन रहइ / न्यान थकी बुझइ नरनार्य, न्यांन वडु एणइ संसार्य // 47 // पूसतग दीपक सरीखां दोय, एह थकी अजुआलं होय / सकल वस्त देखाडी दीइ, विष छंडी नर अमृत पीइ // 48 // ते माटि ए पुस्तग सार, पंचम आरइ ए आधार 1 भणइ गुणइ लखावइ जेह, अनंतसुख नर पामि तेह // 49 / / जीव बंधनथी मुकावीइ, तो शंकटम्हा नवि आवीइ / भुख्यांनि भोजन दीजीइ, अनुकंपा सहु परि कीजइ // 50 // सकल जीव परि हीत चीतवो, दूर्गति पडता नर बुझवो / कांम क्रोध मोहो माया तजो, मुको मांन जिनशासन भजो // 51 // साति षेत्र पोषीजइ सही, जिनमंदीर जिनप्रतिमा कही / पूसतग न्यांन लखावो जांण, अरीहंत देवनी मांनो आंण // 52 // साध साधवी श्रावक जेह, श्रावि भगति करीजइ तेह / सातइ षेत्र ए सोहामणां, अहीं खरच्या ते द्धन आपणां // 53 // संचि ते नर दूखीओ थाय, खरच्यु ते धन केडिं जाय / क्यरपीनि मन्य ए न सोहाय, वचन रूपीआ वाजइ घाय // 54 // भूमि रह्यां द्धन वणसी जाय, परघरि मुक्या परनां थाय / हरइ चोर नि राजा लीइ, वशवांनर परजाली दीइ // 55||
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________ 37 अनुसंधान-१९ धन हारइ नर बहु जुवटइ, पूण्य विनां व्यापारिं घटइ / जलि बुडइ कुवस्यने जाय, पूण्यकाजि विमासण थाय // 56|| दूहा० // क्यरपी तो द्धन संचीइ, जो कलि मर्ण न होय / ल्यख्यमी बांधी पोटले, सर्य न पोहोता कोय // 57 // क्यरपी कहइ कवी संभलो, तो दीधि स्यु थाय / दाता आपइ अतीधणुं, ते धन केम्व न जाय // 58 // दान सुपत जेणइ दीओ, कोओ सु परउपगार / ते साथिं धन पोटलां, साथि गया नीरधार // 59 // ल्यख्यमी मंदिरमाहां छतां, मागण गया नीरास / तेहनी जनुनी भारि मुई, ऊदरी वर्ष दस मास // 60 // गाहा० // दानेन फलंत कलपदुमा, दांनेन फलंत सोभागं / दांनेन फरंत किर्तिकाम्यनी, दांनेन होअंत नीरमला दीहा // 61 / / ढाल 24 / (23) // देसी० आवि आवि ऋषभनो पूत्र तो० // राग-ध्यन्यासी / दांनि नवनीध्य पांमीइ ए, राजरीध्य सुखभोग, ए दांन वखाणीइ ए / दांनि रूप सोहांमणु ए, दांनि सकल संयोग, ए दान वखाणीइ ए 162 / / आंचली० // दांनि महइला अतिभलि ए, दांनि बंधर जोड्य, ए० / दांनि ऊतम कुल भलु ए, कुटंबतणी कई कोड्य // 63|| ए दान० / / दांनि भोजन अतिभलु ए, सालि दालि घ्रत घोल, ए० / वस्त्र विविध्य वली भातनां ए, मनवांछीत तंबोल // 64 // ए दान० // दांनि रंजइ देवता ए दानि सुरतरु बार्य, ए० / दानि अति पूजा पांमिइ ए, दांन वडु संसार्य // 65 // ए दान० //
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________ 38 March-2002 दांनि हिंवर हाथीआ ए, सेवइ सुभटनी कोड्य ए० / ओटइ ओलग कई करइ ए, ऊभा बइ करजोड्य ||66|| ए दान० / / दांनी वखाणुं शंगमो ए, खीर खांड घ्रत जोय ए० / सालिभद्रपणि ऊपनो ए, नरभवि सूरसूख होय ||६७|ए दान० / / वनमां मुनी प्रतलाभीओ ए, सो दांनी नहइसार, ए० / ते नर संपति पामीओ ए, तीथंकर अवतार // 68|| ए दांन० // अभइदांन सुपात्रथी ए, नीस[च]इ मोक्ष वहंत, ए० / अच्युत अनुकंपा कीर्तथी ए, जिन कहइ भोग लहंत // 69 / / ए दान० // अनंत तीर्थंकर जे हवा ए, तेणइ मुख्य भाष्यु दांन ए० / जेणइ धरमिं दांन वारीउं ए, तिहा नही तेज नई वान // 70 // ए दान० // दूहा० // दांन सील तप भावना, भेद भला वली च्यार | समकीत स्यु आराधीइ, तो लहीइ भवपार 71 // ___ ढाल 25 (24) चोपई० // जिम समता विन तप ते छाहार, तीम समकीत विण धर्म असार / घ्यरत-व्यहुणो लाडु जस्यु, वेणि व्यनां शणगार ज कस्यु 1721 // काजल-व्यहुणी आंख्यु कसी, तुब-व्यहुणी वेणा जसी / पूरषातम(तन)व्यण पूरष ज जस्यु, स्यमकीत-व्यहुणो धर्म ज अस्यु 173|| जईनधर्मनि समकीत साथि, पोत भलइ जिम नांना भाति / रूप भलु नि वचन वीसाल, गलइ गांन नि हाथे ताल 74|| कनककलस नि अमृत भर्यु, आगइ शंष अनि पाखर्यु / दूध कचोलइ साकर पडी, समकीत सुधइ जे आषडी // 75 / / ए समकितनुं एहे, जोर, जेहथी नावइ मीथ्या चोर / घ्यायक शमकीतनो जे धणी, तेणइ दूरगति नारी अवगणी // 76||
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________ 39 अनुसंधान-१९ ष्यायक समकीत पांमइ तेह, सात बोल षइ घालइ जेह / क्रोध मांन माया नि लोभ, पहइलुं एहनो किजइ खोभ / / 7 / / अनंतांनबंधीआ ए च्यार, वणि बोलनो कहु वीचार / समकीतमोहनी पहइली कहुं, मीथ्यातमोहनी बीजी लहु // 78 // मीष्ट(श्र)मोहनी जे नर तजइ, ष्यायक समकीत सो पणि भजइ / सुत्र सीधांत तणी ए वात, साचा बोल कहु ए सात // 79 // वली समकीतनी सुणजे वात, मीथ्याधर्म न कीजइ भ्रात / अतीदोहोलिं आव्युं छइ एह, सुणजे बोल कहु छु तेह // 80 // ढाल 26 / (25) // देसी० सासो कीधो सांमलीआ० / राग-गोडी // एम काया वली कहइ कंतनि, जीव कहु तुझ वात / समकीत दूलहु तु अती पांम्युं, सुणि तेहनो अवदात // 81 / / काल अनंतो गयु नीगोदि, नीसरवा नहीं लाग / अकामनीर्जरांई तुझ काढ्युं, करमि दीधो भाग |82 / / बादर नीगोदमांहि तु आव्यु, कंदमुलम्हा वास / छेदन भेदन तिहा दूख पाम्यु, कहइ कोहोनी तीहा आस // 83 / / परतेग वनसपतीम्हा आव्यु, तीहा पणि अंद्री एक / पणि दूख भोगवतां तु पांम्यु, अंद्री दोय वसेक // 84|| अंद्री चोरंद्री मांहई, ति खपीआ बहु कर्म / पंच्यंद्री तु थयु पसुम्हां, मानव व्यन नही धर्म // 85 / / दहा० // मानव भव तु पामीओ, तेहमां घणो वीचार / अर्य देस, कुल,गुरु व्यनां, कहइ किस पांमीश पार ||86 / / अंद्री पांच व्यनां वली, किम साधइ जिन धर्म / सधइणां व्यन नवी तरइ, सुणयु तेहनो मर्म // 87||
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________ 40 March-2002 ढाल 27 (26) देसी० चंदांण्यनी० // भव मानव लहिं स्यू करीइ, देस अनार्य जो अवतरीइ / आर्य देस लहिं म म हरखो, नीचकुल इस्युभ ते परीखो // 88 // ऊतमकुलनो पाम्यो योगो, दूलहो अंद्री धन संयोगो / अंद्री भोग लहई स्यु हरीखो, गुरु न मल्यु जो गऊतम सरीखो // 89|| कुगुरु मल्यु तस कुगति पाड्यु, भवअर्णम्हां सोय भमाड्यु / भमतां भमतां करमिं काढ्यु, जिविं सुगरू सही भेटाड्यु // 10 // सुगर वयण सुणवा नवी आवइ, आवइ तो कांई चीत न भावइ / भावइ तो तुझ समकीत थावइ, वहइलु मुगति ते नर जावइ // 11 // एम समकीत पाम्यु अती दोहोल्युं, जेणइ आविं अती थाइ सोहोल्यु / सो समकीत कां हारो भाई, सुगरु सीख दीइ हीतदाई // 92 / / नवनीधि चऊदरयण हइ हाथी, मणि मुगताफल महइला माति / सूर पदवी लहइ तां नही वारो, समकीत दूलहु सही नीरधारो ||93 // तेणइ कार्ण्य राखो मन ठाभ्यु, म चलु देव अवनि ताम्यु / जिन विन को नवी आवइ काम्यु, समकीतथी रहीइ सीवगांम्यु // 94 // दूहा० // सीवमंदिरम्हां सो वशा, जस समकीत थीर होय / समकीत वीण नरको वली, मोक्ष न पोहोतो कोय // 95 // ___ढाल 28 (27) चोपई० // पाच अतीचार समकीततणा, तेना दोष बोल्या छइ घंणा / सुत्र सीधांति ते टालीइ, जिनआज्ञा सुधी पालीइ // 96 / / शंका वीरवचन-संधेह, नीसंकपणुं नवी आंण्डे देह / पहइलो अतीचार कहीइ एह, मीछादूकड दीजइ तेह // 97 / / अनंतबल कहीइ अरीहंत, सकल गुणे भजतो भगवंत / वली अतिसहि कहीइ चोतीस, वांणी गुंण भाख्या पातीस // 98 //
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________ 41 अनुसंधान-१९ ज्ञान अनंत तणो जिन धणी, समोवसरणि ठुकराई घणी / चामर छत्र सीघासण सोहि, जस रिधि पार न पांमइ कोय // 99 / / ते जिनवर मुख्य वांणी कही, शास्वती जिनप्रतिमा सही / सर्ग-नर्ग नि मोक्ष ते छती, अस्यु वचन भाषइ माहामती // 300|| एह वचन जेणई नवी सदा, मुढमती तेणइ कांई नवि लऔं / नीसचइ समकीत तेहनुं गयुं, मीछादुकड दइ तो रह्यं // 1 // जिनथी जे ऊफराटा थयां, सो नर केता नरगिं गया ! कुमततणइ जे रोगि ग्रह्या, पाप पूर्मा ते नर वह्यां / / 2 / / जाणीनई ऊथापइ जेह, अनंत दूख नर पांमइ तेह / भोगवतां नवि आवइ छेह, सुख किम पांमइ तेहनी देह // 3 // एक दरसणम्हां पाड्यु भेद, तेणइ ऊथाप्या जिनना वेद / विरवचन हईइ नवि धर्यु, समकीत बाली ल्याहालो कर्यु // 4 // जिनवयणांनि करइ असार, आप वचन थापइ नीरधार / मति मती दीसइ ए आचार, कहो पथी (छी?) किम पांमइ पार / / 5 / / एक जिनप्रतिमा साथि द्वेष, मुनीवरना ऊथाप्या वेष / योग ऊपधान नषेधइ माल, पडइ नीगोदि अनंतो काल ||6|| राजप्रष्णी ते न जुइ सुत्र, तो ताहारु किम रहइ घरसुत्र / सुरीआभ देवि पूजा करी, कोण कार्ण कहइ तिं परहरी // 7 // द्रुपदीनो वली जो अदीकार, छठि अंगि सोय वीचार / नमोथणुं जिनभुवनि कह्यु, कुमत रोगीइ नवी सदयुं // 8 // सुत्र सीधांत पेखो भगवती, जंघा-विद्या चार्ण यती / नंदिस्वर मेर परबति जाय, जिनप्रतिमाना वंदइ पाय / / 9 / / वंदी पाय नि पाछा फरइ, अही जिनप्रतिमा वंदन करइ / ए अष्यर मांनि ते सुखी, नवी मांनी ते थासइ दूखी // 10 //
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________ 42 March-2002 जिनप्रतिमा जिनसी कही, सुत्र ऊवाई नर्षो सही / अंबडनो वली जो अधीकार, अनि देव गुरु नही नीरधार // 11 // पंचम अंगि ए अधीकार, वणि सर्ण माहिल्यु एक सार // अरीहंत चईत साधनुं सर्ण, करि न लहइ चमरेदो मर्ण // 12 / / तव तस मतनो बोल्यु मर्म, दया विनां नवी दीसइ धर्म / जिन पूजंतां हंशा होय, पार्पि मोक्ष न पोहोता कोय // 13 / / सुविहित कहि मति ताहारी गई, नदी ऊतरवि जिनवरि कही / कुंण कार्णि कहइ ति सदही, बोली दया ताहारी किम रही // 14|| मोहोपोत पडीलेहइ जेह, जीव असंख्या हणतो तेह / तोहइ भलो जिन भाषइ तास, वण पडिलेहेणि दूरगति वास // 15 // एक घरि बइठो वंदन करइ, एक गुरुनि साहामो संचरइ / अदिक लाभ तु तेहनि कहइ, दया धर्म ताहारो किम रहइ // 16 // युगल पूर्षनुं सर्खा मन, एक उंहुनुं एक ताढु अन / मुनीवरनि वइहइरावइ दोय, कहइ फल अदीकुं कहिनि होय // 17 // जो फल होयि सीतल धणी, तो पूजा सही मि अवगुणी / उष्ण आहार दीधई फल होय, तो प्रतिमा मांनो सहु कोय // 18 // ऊहुंना आहारतणो अवदात, नर शंगमनि सूणजे वात / चीत वीत नि म्यलीउं पात्र, सालिभद्र सकोमल गात्र // 19 // कोएक जंत जलमांहि पड्यु, माहापूर्षनी द्रीष्टि चढ्यु / कइ काढइ के मरवा दीइ, वेगो बोली विमासी हईइ // 20 // जलि बुडंतो काढइ जेह, जिव अशंख्या हणतो तेह / तोहइ ते पणिं कुर्णावंत, अस्यु वचन भाषइ भगवंत // 21 // अणगल पांणी जे नर पीइ, कुगतिपंथ ते नीसइ लीइ / गलतां गलनु भीजइ जसि, जिव असंख्या वणसइ तसिं // 22 //
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________ 43 अनुसंधान-१९ जीवदया कहइ किम पालीइ, अदिक आग्यना नर न्याहालिइ / जिनवचने तो पुजा थाय, मांनी आग्यना तेह दयाय // 23 // तव तस मतनो बोल्यु खेव, एह अचेतन दीसइ देव / ए मुझनि स्यु करसि सूखी, देव खरो जे चेतनमुखी // 24 // एने कनहइ(कहइ) चालइ सीधांति, कुमतिं तुझ कीधी छइ भ्रांति / समझीनिं करजे एकाति, अचेतन बइसइ ऊंची पांति // 25 // कंदमुल करि मुद्रा झालि, वस्त वोहोरेवा चहुटि चालि / बेहु पदार्थ तेहनि आलि, नाग नगोदर मागे झालि // 26|| ए मुद्राना महीमा थकी, मांग्यु आपइ थईइ सुखी / कंदमुलथी लहीइ गालि, कडको मारइ तेह कपालि ||27|| दसविकालिकमांहां जे कां, मुर्यख सोय वचन नवि ला / चीत्रपूतली भीति जेह, माहामुनी नवि नरखइ तेह // 28 // तेणइ नरखि जो होइ पाप, तो प्रतिमा पेखि पूण्य व्याप / ए द्रीष्टांत हईइ धारजे, जिन पूजि आतम तारजे // 29 // थोडामांहि समझे घj, वारवार तुझ स्यु अवगणुं / दयामुल आज्ञाई धर्म, जिनशासनमां एह ज मर्म // 30 // दुहा० // मर्म न स[म]झइ बापडा, करता मिथ्यावाद / कुमतविर्षि जे धारीआ, स्यु कीजइ तस साद // 31 // एक जिनप्रतिमा छंडता, एक मुकइ मुनीराय / एक नर वास ऊथापता, समोवसर्ण न सोहाय // 32 // गुरु विन ज्ञान न ऊपजइ, भाव विन भगति न होय / नीर विनां किम नीपजइ, रोदइ वीचारी जोय // 33 //
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________ 44 March-2002 ढाल 29 / (28) // देसी० ............... राग-सायंग // गुरुविरही मन लागीओ, ते किम पांमइ पार रे / थीवर यतीयन कलपनो, कीधो एक आचार रे // 34|| गुरु विरही मन लागीओ / आचली० // अवगुण आप न आखता, देखइ मुन्यना दोष रे / कुमति पड्या नर बापडा, करता पातिग पोष रे // 35 // गुरु० // पंचनीग्रंथि एम कह्यु, श्रीभगवती नि ठांणांग रे / संयम षटथानिक थउं, समझो सहु मनि रंग रे // 36 // गुरु० // अनंतगुणे जे आगला, अनंतगुणे जे होण रे / जिन कहइ बेहु संयमी, मुढ करइ मति खीण रे // 37 // गुरु० // तव तस मतनो बोलीओ, आगइ मुनीवर सार रे / ते सरीखा हवडां नही, नही ऊतकष्टो आचार रे // 38 // गुर० / / प्रथवी पांणि अग्यनम्हां, तेज घट्यु एणइ काल्य रे / तोहइ काज तेहथी सरइ, गहुं ठामि न आवइ सालि रे // 39 / / गुरु०॥ दूपसो आचार्य लगि, शासन होसइ सार रे / प्रवचन विन ते नवी रहइ, तेहनो मुनी आधार रे // 40 // गुरु०।। ढाल 30 / (29) देसी० ध्यन ध्यन सेत्रुज गौरवरु० // श्रीअनुयुगदुआरम्हां, भाषी छड् मोहोंपोत रे ! कुण काणि तिं परहरी, होसइ किम अद्यु(छ्यु)त रे // 41 // श्रीअनुयुगदूआरम्हां० / आंचली० // चोथ पजुसण तई तजूउं, पांचमस्यूं बहु प्रेम रे / पडीकमणे छठ आवता, कहइ किम होसइ खेम रे // 42 // श्री अनूऊ०॥
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________ 45 अनुसंधान-१९ चऊदश पाखी परहरी, पून्यमस्यु बहु रंग रे / / कुमति पड्या नर केटला, नवि पेखइ श्रीसुगडांग रे // 43 / / श्रीअनु०।। चऊदश पाखी चीतवो, पेखो पाखीसुत्र रे / कलपसुत्रम्हां एहनो, आप्यु छइ तुझ ऊत्र रे // 44 // श्रीअ०।। अदिकमास नवी मांनीइ, मल महीनो तस नाम रे / बंबपत्रीष्ठा मुनीतणां, दिन दूजइ होइ काम रे // 45 // श्री०॥ वलतो वादी बोलीओ, एणइ मास अछइ पूण्य पाप रे / सकल काज नर कोजीइ, करो मुरिख कां उथाप रे // 46 // श्री०। सुविहीत कहइ तुं साभले, म करीश आप संताप रे / नीतकर्णी तो कीजीइ, दांन सील तप आप रे // 47 // श्री अनु० // पूर्ष नपुसक तेहथी, चालइ घरनुं सुत्र रे / सकल काज नर ते करइ, कहइ किम होसइ पूत्र रे // 48 // श्री०॥ श्रावण चोमासु तु करइ, आलुइ चोमास रे / एक मास तुझ किहा गयु, बोले जो मति खास रे // 49 // श्री०॥ [चोथि पजुसण तिं तज्यु, पांचम्यस्यु बहु प्रेम रे / पडीकमणइ छठि आवतां, कहइ किम होसइ खेम रे // श्री०॥] पंचकल्याणिक वीरना, म धरो मनि संधेह रे / / मुढ मति षट थापता, कुपि पडइ नर तेह रे // 50 // श्री०॥ सुधु शमकीत राखीइ, जिनवचनां परिमाण रे / / श्रेणिकराय संभारीइ, सिर वही जिनवर आणि रे // 51 // श्री०॥ दहा० // शंकाशल नवि राखीइ, राखि बहु दूख होय / आकंखा मनि आंणसइ, मुढमति-गि-य(?) // 52 / / 1. आ कडी कर्ताए ज बे वार लखी छे. तेथी अहीं यथावत् राखी छे.
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________ 46 March-2002 ढाल 31 / (30) // देसी० काज सीधां सकल हवइ सार || राग-शामेरी // आकंखा जे मनी आणइ, अनि-दरसण सोय वखाणइ / जिनवचनां नि नवि जाणइ, विषधर मंदि[]म्हां आणइ // 53 / / भ्रह्मा विस्ण महेश वीशाल, खेतल गोगो नि आसपाल / पात्रदेव्या नि गोत्रदीवी, फल एक न आपि सेवी // 54 // रोग कष्ट थकी म म कंपो, उमया मुख्य ईस म जंपो / नवी मांनो नि नवी पूजो, जो जिनवचनां नि बुझो // 55 // बहुध, सांख्य, अनि संन्यासी, जोगी यंगम नि मठवासी / जे शईव त्रडंड वेस, अंद्रजालीआ नि दरवेस 56 // एहनुं कष्ट घणेलं जांणि, मनमाहि सधइणा आंणी / वली त्याहां तुझ मति पस्ताणी, दीजइ मीछादूकड जांणी // 57 // एहेनुं शाहास्त्र सुणीअ वखांण्यु, सुधु मन साथि जाण्यु / कीधु मीथ्यातीनु कर्ण, तेणइ दुर्गति नारी परणी // 58 // तेणइ सुधगति नारी ठेली, जेणइ जईन तणी मति मेहेली / स्युभ क्यरणि ते तस खेली, करमि मत्य कीधी मइली // 59 / घरबारि कुआनि नीरिं, सायर--जल नदीअनि तीरि / द्रहइ वाव्य सरोवर कंठि, पूण्य हेति सीस म छ(छ?)टि // 60 // एम भव्य भव्य भमतां भंगि, आकंखा आंणी अंगिं / दिओ मीछादूकड रंगिं, देव गुरु जिन प्रतिमा संगि // 61 // ढाल 32 (31) चोपई // परजीओ राग // वतीगंछा ते त्रीजो सही, धर्मतणां फल होइ के नही / एहेवी मत्य जस आवी सही, स्युभकर्णी तस चाली वही // 62 //
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ त्रीभोवननायक वीस्वप्रकार, मोक्षमारगनो जे दातार / अस्या गुण जांणी भगवंत, जेणइ नवि पूया ए अरीहंत // 63 // इहइलोक परलोक भणी, कां तु ध्याइ त्रीभोवनधंणी / कष्टिं को नर पाम्यु खोभ, जिनवरनि देखाडइ लोभ // 64 / / याग भोगमांनि नि जाय, जिनवरनिं जई लागइ पाय / वतीगंछा तु पणि जांण्य, अंगि अतिचार नर म म आण्य // 65 // ढाल 33 / (32) // देसी० से सुत त्रीशलादेवी सतीनो // वस्त्र मलण मल मुनीवर देखी, जेणइ मुक्यु जिनधर्म ऊवेखी / तेणइ कार्घ्य तेणइ दूरगति लेखी, ते नर मुढमतीअ वसेषी // 66 / / एणइ जगी शंघ चतुरविधी मोटो, जाणे कनकतणो वली लोटो / नंद्या तास करइ ते खोटो, लोधी(धो) पापतणो शरि सोटो // 67 / / साधतणी जेणइ नंद्या कीधी, सुधगति छंडी दूरगति लीधी / विषह कोचोली वेगि पीधी, मुगतीपोलि तेणइ भोगल दीधी // 68 // साधर्मीकनो अवगुण लीधो, मीछादूकड ते नवि दीधो / तो तुझ काज एकु नवि सीधो, मुगति कोट नवि जाइ लीधो // 69 // नंद्या म करो को वली कहइनी, नंद्या कीजइ आतम-देहेनी / असीअ प्रगति होसइ जगि जेहेनी, गति ऊची होइ पणी तेहेनी // 70 // कर्म दूगंछा म करो कोई, हरिकेसी रषि तु पणि जोई / भव ऊत्तमनो ते पणि खोई, कुल चांडाल तणइ मुनी सोई // 71 / / कर्म दूगंछ कर्या व्यन सारो, राय पूण्याढ्यचरित्र संभारो / आतमसीख देई एम वारो, अवधि नंद्या सोय नीवारो // 72 / / एम भव भमता पातिग अंगि, मीछादूकड द्यु जिनसंगि / पाप पखालु आतमरंगि, जिम जगि थायु सीध अलंगि // 73 / /
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________ 48 March-2002 ढाल 34 / (33) / देसी० देखो सुहणां पूण्य वीचारी ।श्रीराग // मीथ्यास्तुति म म करेअ लगारो, जे जगि धर्म असारो / कुडो श्रेअ प्रसंसइ जे नर, ते किम पामइ पारो, पंडीत करोअ वीचारो ||74 // मीथ्यास्तुति म म करोअ लगारो |आचली० // वीषधर कोय वखाणी वदने, आप उंगलि घालइ / सो मुर्यख ष्यण्यमांहिं भाई, जममंदिर जई माहालइ, बहु भव पातिग चालइ // 75 // मीथ्या० // कनक कंडीइ जिम के(को) वीछी, ग्रही नीजमंदीर आणइ / सोय सरीखो ते नर पभणो, जे मीथ्यात वखांणइ, ते नर कांई नवी जाणइ // 76|| मीथ्या० // स्तुति कीजइ तो जईन धर्मनी, जिम आतमदूख जाइ / खिणम्हां अष्टकर्म खइ करतो, सो नर सूखीओ थाई, सकल लोकगुण गाइ // 77 // मीथ्या० / / चऊद-राजमांहई भवि भमतां, पातिग लागु जेहो / मिथ्याधर्म प्रसंस्यु जेमई, मिछादूकड तेहो, जिम होइ नीर्मल देहो // 78 / / मीथ्या०॥ ढाल 35 (34) चोपई // मीथ्यातीस्यु परीचइ जेह, जो जांणो तो टालु तेह / मेश ओरडी माहिं पइसतां, किम ऊजल रहीइ बइसतां / / 79 / तिम मीथ्यानो करतां शंग, किम रहइ आतम ऊजलरंग / आतम-जल बइ सरीखां होय, नीचसंगति वणसइ दोय / / 8 / / वली द्रीष्टांत कहु ते सुणो, नीचशंग तुम्यु सही अवगुणो / आगइ नर नारी सूर जेह, संगतिथी दूख पाम्या तेह // 81 // वांसि संगति गांठा तणी, तो फाडी कीधो रे वणी / नदीशंग तरुअर जे रह्या, सोय समुलां केतां गयां // 82 / /
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________ 49 अनुसंधान-१९ हंस कागनि संगिं गयो, मर्ण लघु नि गंजण थयु / शंखि संगति जोगी तणी, घरि घरि भीख मगावी घणी / / 83 / / अशतिशंग करो कुतार, तेहना प्रांण गआ नीर्धार / 'मुज' सरीखो राजा जेह, दासीथी दूख पांम्यु तेह // 84 // वलि संगतिनो जोय विचार, ए तुंबडिई तुबां च्यार / एक जई मुनीवरनि कर्य चड्यु, पात्र नाम जगि तेहनुं पा(प)ड्यु // 85 // बीजु तुब कहीजइ जेह, नदी संगि रह्यु वली तेह / तुबाजाली जगम्हां सार, जग ऊतारइ पेलो पार ! // 86 // त्रीजा तुबतणुं फल जेह, कलावंत कर्य चढीउं तेह / वेणो-जंत्र कर्यु तव सार, सुर सूणतां रंजइ कीर्तार // 87|| चोथी जे हुती तुबडी, सोय घांइंजानि करि चडी / ते कापी कीधी रुबडी, रगत पीइ कुसंगति पडी // 88 / / श्रेणीकरायनो हाथी जेह, अती दूरदांत कहीजइ तेह / जो मुनीवरनि संगि मल्यु, तो तस मांन-कषाइ गल्यु / / 89 / / सांति दांत हुओ सुकमाल, जेहवो वछ सकोमल बाल / गढ मंदिर नवि भेलइ गांम, न करइ राय तणुं ते काम // 90 // राय-मंत्रीइं कर्यु वीचार, बंध्यु जिहा पापी, बार / 'मारि मारि' मुष्य एहेतुं सुणइ, रीव करंतां पसुआं हणइ // 91 / / रगत मंश देखी गजराय, दूष्ट हईउं तव गहिवर थाय / पंडीत रीदइ वीचारी जोय, नीच शंग म म करयु कोय // 92 / / पूफशंग सुतर तांतणइ, राजा कंठि ठव्यु आपणई / त्रांबइ संगति सोनातणी, क़रतां कीरति वाधी घणी // 93 // खालनीर गंगाम्हां गयां, ते जल गंगासरीखां थयां / चंदन जमला जे विष रह्या, ते सघला पणि सुकडी लह्यां / / 94 / /
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________ 50 March-2002 सापि समर्यु ईस्वर देव, तो कंठि घाल्या ततखेव / राय वभीषण संगति रांम, लंकापति दीधुं तस नाम // 95 / / ए संगतिना सुणि द्रीष्टांत, मीथ्याशंग तंजो एकात / कही भवि भमतां परीचो जेह, मीछादूकड दीजइ तेह // 96 // दहा० // एम अतीचार टालीइ, समकीत राखे सार / सूधो श्रावक ते कहुं, जे पालइ व्रत बार // 17 // ढाल 36 / (35) / देसी० प्रणमी तुम सीमंधरुजी० // पहइलुं व्रत इम पालीइजी, त्रसनो न कीजइ रे घात / आरंभि जइणा कही जी, एम बोल्या यगनाथ || सुणो नर, धर्म दयाई रे होय, दया विना नर को वलीजी / मोक्ष न पोहोतो कोय, सुणो नर, धर्म दयाई रे होय ॥आंचली० // 98 // कर्म वालादीक कीडलाजी, काया जीव अनेक / अनुकंपाइं काढताजी, दोष न लागइ रेख // 99 // सुणो नर०॥ मुढपणुं ते परीहरो जी, राखो जीव एकाति / / मानवपणुं छइ दोहेलुंजी, लहीइ दस द्रीष्टाति // 400 / सुणो न०॥ चक्री भोजन ते भखीजी, लखी लइ घरिघरि आहार / फरी चकवइ-अन किम लहइजी, तिम मानव अवतार // 1 // सुणो न० // मेरसमा ढगला करीजी, अन अन माहिं रिभेलि / वधा विणी कीम दीइजी, तिम मानवभव मेलिं // 2 // सु० // देवि पासा सोगठांजी, नरनि दीधां दोय / ते साथिं जो जीपीइ जी, तो मानवभव होय // 3 // सु० // अठोतर सो थाभला जी, थांभइ थांभइ रे जाण्य / त्यांहां ते तेती पुतलिजी, सुदर रूप वखाण्य // 4 // सु०॥
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________ 51 अनुसंधान-१९ वार अठोतर सो रमइजी, जीपइ पूतली एक / अठोतरसो वारनो जी, आंक कहु तुझ छेक // 5 // सु०॥ बार लाख निं ऊपरिंजी, ओगणसठि हजार / सात सह्यां नि जांणजे जी, ऊपरि अदीका बार ||6|| सु०॥ अनुवर जीपइ जुवटइजी, राज लीइ नीरधार / नवि जिपइ, जीपइ सहीजी, किहां मानव अवतार |7 // सु० // रयण घणा छइ सेठिनि जी, वेच्यां जुजूइ देश / ते जो मेलइ एगठां जी, तो मानवभव लहइश ||8|| सु० // सुपन एक नर दोयनि जी, वदने चंद पईठ / / एक रोटो एक राजीओ जी, एम जगी अंतर दीठ // 9 // सुणो०॥ रोटावालु चीतवइ जी, चंद लहु मुखमांहिं / नावइ, पणि आवइ सही जी, नरभव छइ कहइ क्याहि // 10|| सुणो न०॥ स्वयंभुरमण जल पूरविं जी, धोंसर मुकइ रे जाय / पछिम कीली प्रठवइ जी, किम संयुगी थाय // 11 // सुणो०।। पवन परेर्यां दोए जाणां जी, धोंसर कीली रे एक / / पणि नरगति छइ वेगली जी, पांमइ पूण्य वसेक // 12 // सुणो० // कुपि रहइ एक काचबो जी, सात पडो रे सेवाल / कुरमिं दीठो चंदलो जी, फरी जोतां विशाल // 13 // सु०।। थांभा ऊपरी आंणीइ जी, च्यंतो चक्र वशेक / अवलुं सवलुं ते फरइ जी, अछइ पूतलि एक // 14 // सु०॥ जलकुंडी जोवा लुलइ जी, शर सांधइ नर जांण / वाम आंख्य जई पूतली जी,तीहा जई वागइ बांण // 15 // सु०॥ अवनी ऊपरी नर घणा जी, कोएक पांमइ रे पार | राधावेध ते साधता जी, दूलहो नर अवतार // 16 // सु०॥
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________ 52 March-2002 रयण घणा घ(घ)टिं दली जी, पंच वर्णनां रे पेख्य / मेरशखरि ढगलो करइ जी, ऊडइ वायु वसेष्य // 17 // सु०॥ दश द्रष्टाति दोहेलो जी, मानवनो भवं जांण्य / जीवदया ते कीजीइ जी, बोल्यु वेद पूराण्य // 18 // सु० // दहा० // धर्म दया विन तु तजे, ऊठिं नागरवेलि / / भामरइ जिम चंपक तयु, पीछ तज्यां जिम ढेलि // 19 // ढाल 37 (36) चोपई // तजे नगर जिहा वइरी घणां, तजे वाद जिहा नही आपणा / तजे म्होल जे अतिजाजर, तजइ नेह विनां दीकिरा // 20 // तजिइ रूठो राजा वली, तजिइ परगती अती आकली / तजिइ पापी केरो शंग, तजिइ जाति कुजाति तुरंग // 21 // तजीइ बाओल केरी छांहि, तजीइ वासो विषधर यांहि / तजीइ परघर केरी ताति, तजीइ भोजन भखर्बु राति // 22 // तजीइ कायर ख्यत्री जाम, न करइ ठाकुर केरुं काम / तजिइ मंकड साथि आल, तजीइ परनि देवी गाल / / 23 / / तजीइ मोटा सांथिं जुझ, तजीइ मुरिख साथिं गुंझ / तजिइ वणज मधु जे मीण, तजीइ धर्म दया जे हीण // 24 // तजीइ चोमासइ चालवू, तजीइ राअंगणि माहालq / तजीइ साधसंघाति द्वेष, तजीइ संगति नीच वसेष // 25 // रणि-अंगणिना तजीइ ठाम, तजीइ नीर विनां आराम / तजीइ सात वसन संसारि, दूत मंश नि मदिरा वारि // 26 / / तजीइ वेशा केरुं बार, तजीइ आहेडो नीरधार / तजिइ चोरी केरो रंग, तजीइ परदारानो शंग // 27 / / तजिइ भोजन जिहां नही मांन, तजिइ विण संयुगि पनि / तजिइ कंठ विहुणुं गांन, तजीइ पाप कर्मनुं ध्यान // 28 //
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ 53 तजीइ पातिग पूण्यनि ठांमि, तजीइ आलस धर्मह कामि / तजीइ स्तुति मुखी पोतातणी, तजीइ नर लंपट अवगुणी // 29 / / तजीइ कगरू केरा पाय, तजीइ घरि मारकणी गाय / तजोइ विर्ष थयु जे खीण, तजीइ धर्म दया जे हीण // 30 // दूहा // धर्म दयाई जांणजे, जिम रंग साचो चोल 1 वली द्रीष्टांत आगलि अछइ, हित युगति कलोल // 31 // ढाल 38 / (37) // देसी० छांनो छपीनि कंता किहा रघु रे० // राग-रांमायरी || धर्म दयाइं जांणजे रे, ते नीश[च]इ नीरधार रे / जीव जतन करी राखीइ रे, तो लहीइ भवपार रे // धर्म दयाइं जांणजे रे / / आंचली० // 32 // पहइलुंनि व्रत एम पालिइ रे, जिव सकलनी सार रे / दया समो धर्म को नही रे, हंशा धर्म असार रे // 33 // धर्मः // हिंवरथी वछ ऊपजइ रे, ससलाथी सीही होई रे / जलधर विन अन नीपजइ रे, तो धर्म दया विन होय रे // 34 // धर्म०॥ कुपरखबोलि जो थीर रहइ रे, सुपर खलोपइ लीह रे / दया विना धर्म तो कहु रे, घास भखइ जो सीह रे ||35|| धर्मः || दहा० // धर्म दयाई जांणजे, जिन आग्यना परमाण / पातिग करतां पूण्य कलइ, जोय विमासी जांण // 36 / / ढाल 39 / (38) // देसी० एकदीन राजसुभा ठीओ० ॥राग - गोडी। वण गुंणति विद्या गलइ, दूरि गयां जिम नेह / / सील गलइ स्त्रीसंगथी रे, तपई गलइ जिम देहो रे // 37|| दया चीति राखीइ / जिम पनि ऊपगारो रे, मधुरुं भाखीइ // आंचली० //
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________ 54 March-2002 दांन वलंबिं ते गलइ रे, गलइ सहइ काज प्रमादि / धर्म दया विना ते गलइ रे, गलइ मुखि लज विवाधु रे // 38 // दया चीत० // तुंर्णी यौवन ते गलइ रे, व्रीध्यस्यु क्रीड करंत / यौवन आप नर तव गलइ रे, ऊडु ज्ञान कथंतो रे // 39 // दया० / / गुण गलीआ पर अवगुणि रे, अग्यन थकी जिम लाख / धर्म दया विन एम गलइ रे, ए जिनस्याशन भाषो रे // 40 // दया० // दुहा० // श्रीजिनदेवि भाखीउ, दया विना नहीं धर्म / हंशा धर्म न कही मलइ, जिम मेहर नि भ्रह्म // 41 // भोजननो अरथी वली, न करइ उद्यम शर्म / ए अणमलतुं जांणजे, न मलइ हंशाधर्म // 42 // ढाल 40 (39) चोपई // यम मेगल निं न मलइ मसो, न मलइ मृगपति नि यम ससो / न मलइ कीडी परबत काय, न मलइ रंक अनि वली राय // 43 // न मलइ नीर्धन नि ध्यनवंत, न मलइ नीरगुंण नि गुणवंत / न मलइ असती नि यम सती, न मलइ मुरिख नि माहामती // 44 / / न मलइ गंगा नि यम नाडि, न मलइ गढ़ ग्यरुओ पलवाडि / न मलइ पीतल नि जिम हेम, न मलइ दूसण नि जिम प्रेम // 45 // न मलइ खजुओ नि जिम सूर, न मलइ वाहो सायरपूर / करूरद्रीष्ट नि न मलइ माय (मया), न मलइ पापकर्म नि दया / / 46 / / दुहा० // पाप कर्म बइ एगठां, एकइ ठामि न हंत / कइ सइंथो कइ टालि जो, पणि बइ नवि सोभंत // 47 //
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________ 55 अनुसंधान-१९ दीपक जिम वलि तेल विन, शेन विनां जिम राय / धर्म दया विन ते तस्यु, खीर विनां जिम गाय // 48 // ढाल 41 (40) // देसी० मुनीवर मारगि चालता० | शनेह विनां स्यु रूसणुं, गढ विहुंणी पोलु / प्रेम विनां जिम प्रीतडि, मन मइल अंघोल्यु // 49|| धर्म दया विन ते तस्यु, जस्यु लुखुं अनो / तप जप संयमस्यु धरइ, जो मइलुं मंनो / / धर्म दया विन ते तस्यु | आंचली० // बालिक विन जिम पालणुं, काल विहुणो मेहो / संपति विण जिम पाहणो, गइ यौवन नेहो || 50 // धर्मः / / जोग विनां जोगी जस्यु, मन विहुणुं ध्यांनो / गुरु विण गछ नवी स्युभीइ, वर विहुणि जांनो // 51 // धर्मः / / दाता विन जिम जाचिका, प्रांणि विण देहो / / धर्म दया विन ते तस्यु, भाषइ सुगुरू एहो // 52 // धर्म० // दूहा० // सुगुरू पयंपइ सुगुण सुणि, समझे शाहास्त्र विचार / पर प्राणी तो ऊगरइ, लहीइ स्युध आचार // 53 / / ढाल 42 (41) // देसी० जोरइ जन गति स्यंभुनी / / राग-मल्हार / / देसी बीजी : कहइणी करणी / तुझ विणि साचो० // ऊतम कुलनो ए आचार, षट वेद चंदरुआ बंधइ जी / जिवजतन जगि एणि परि करसइ, ते स्युभ मारग संधइ जी // 54 / / ऊतम कुलनो ए आचार / आंचली० //
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________ 56 March-2002 पिहइलो चंदरुओ जल परि पेखो, बीजो खंडण ठामि जी / जिवदया विन जगि बहु बुडा, घर धंधानि कामि जी // 55 // ऊतम कु० // त्रीजो चंदरुओ पीसणठामि, रंधणि चोथो जांणो जी / जिव मरतां पातिग बोहोलुं, ए नीसइ मनि आंणोजी // 56 // ऊतम०।। भोजनभोमि कहुं पांचमो, छठो छ (छा?)श निं संगिजी / सतम वली संझेर्णठांमि, अठम सेया रंगिजी // 57 // ऊ॥ नोमो वली देहेरासरठामि, पडीकमणइ पणि पेखोजी / जो जिनवचनां सुधां पालु, तो सीवमंदिर देखोजी // 58 // ऊ०॥ एकंद्री अणसोझिं दलतां, ऊतम नही आचारजी / जीव जंत्रमाहिं पणि पीलि, पातीगनो नही पारजी // 59 // ॐ।। खंडण रंधण ईधण पाणी, अणसोझिं अती पापजी / सारवणि जीव नीत्य सारवतां, कहइ किम छोडीश आपजी // 60 // ऊ०॥ ऊठंतां बइसंतां भाई, हीडंतां बोलतां जी / जीवजतन करयु जगि लोगा, जांगतां सोवंता जी // 61 // ऊ०॥ दुहा० // सोवंतां वली जागतां, जिन कहइ जंत ऊगारि / अणगल निर म वावरो, लाधो भव म म हारि // 2 // ढाल 43 / (42) // देसी० पांडव पाचइ प्रगट थया० // अणगल नीर न पीजीइ, अंणगलि झीलवु वार्य रे / अणगलि वस्त्र पखालतां, पाप घणु ज संसार्य रे // 63|| अणगल नीर न पीजीइ / आचली० // श्रीमानसीत मांहइ कह्यु, गलणातणोअ वीचार रे / ते च्यंतो मनि आपणइ, जिम पांमो भवपार रे // 64 // अ०॥
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________ 57 अनुसंधान-१९ पोहोलपणइ वीस आंगलां, लंबपणइ वली त्रीस रे / ते गलगुं रे बेवड करी, जल गलीइ नसदीस रे // 65 // अणगल० // गलतां झालक परीहरो, टुंपो तो नवि दीजइ रे / जे जलनो जीव ऊपनो, तेहनई त्याहिं मुकीजइ रे // 66 // अ०॥ वीछलतां रे गलणुं वली, आलस म करि लगार रे / जल विन जीव जीवइ नही, हईडइ करोअ वीचार रे // 67|| अ०॥ संखारो म म सुकवो, जो तुम हईअडइ सांन रे / जीव सकलनि रे जीवाडीइ, म करो मनि अभीमांन रे // 68 // अ०॥ खारु नीर न भेलीइ, मीठा जल तणइ साथ्य रे / संखारो नवि दीजीइ, नीचा जण तणइ हाथ्य रे // 69 // अण०॥ समोअण ते नवी मुकीइ, ऊनि जल वली जाण्य रे / जलना जीव वीणासतां, पूण्य तणि होयि हांण्य रे // 70 // अण०।। कीडी कुजर कंथुओ, सुरपति सरखो जोय रे / / जीव नि युन्य विणासता, पातिग अतिघणुं होय रे 171 / / अण० // दूहा० // पातिग बोहोलुं त(ते)हनिं, करतां प्रांणीघात / / पर हंसा नि दूहवता, भवि भवि होय अनाथ // 72 // ढाल 44 / (43) // देसी० सुणि हवं एक ल्यष्यमी पूरु० // आपसमा सवि जीवडा, हईइ च्यंत अपार रे / जे नरा जीवनि मारसइ, फरइ ते गति च्यार रे // 73 / / वयण सुणो जगि सहु नरा, दया धर्म ते सार रे / तप जप ध्यान तो छइ भलुं, दया विन अते छाहार रे // वयण सुशो जगी सहु नरा ।आंचली०।।
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 जे जगी तरस नि थावरा, जीव सकल ऊगार्य रे / जंतु हीडइ जगी जीववा, तेहनि तुं म म मार्य रे // 74 / / - वयण सुणो० // कर्मवीपाकमाहिं कह्यु, करइ जीवसंघार रे / ते नरा पापमाहा बुडसइ, नवी पामसइ पार रे // 75 / वयण०|| सीह सीआल नि सुकरां, अजा जे मृगबाल रे / हिंवर हरण निं हाथीआ, देता वाघला फाल रे // 76 // अजगीर संवर रोझडां, वछ चीखल गायं रे / चीतरा चोर निं मंकडा, दीधा नाग नई घाय रे // 77 // वयण०॥ पंखीआ पासम्हां पाडोआ, मछ कछनी जात्य रे / जे नरा मंशना लोलपी, फरइ नरग ते सात्य रे // 78|| व०॥ पंखीआ गुरड नि हंसला, लावां तीतर मोर रे / समलीअ सारीस जीवनि, हणि कर्म कठोर रे // 79 // वयण०॥ काग नि अंबनी-कोकिला, चडी चास न मार्य रे / चक्रवा चातुक जीवनि, हणी पंडि म भार्य रे ||80 // वयण०॥ दूहा० // पापि पंडी ज भारतो, करतो पातीग वात / आप-सवारथ कारणिं, पर प्रांणीनो घात // 8 // . ढाल 45 / (44) // देसी० एम व्यपरीत परूपतां० / / राग-असाओरी सीधुओ / / कीधां कर्म पराचीआं, नर दीधला घायरे, थाय रे, पापकर्म तेणइ एगठां ए // 82 // धन कारणि नर वेधीआ, दीइ कातडी कंठिं रे, ऊलंठि रे, पापकर्म एहेवां कीआं ए ||83||
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ 59 एक नर क्रोधी अतीघj, नर जलमांहई बोलइ रे, रोलइ रे, तेणई आप जीवनिं भव घणा ए // 84 // एक नर अग्यन लग(गा)डता, नर पसुअनइ बालइ रे, टालइ रे, स्युभस्याता तेणइ वेगली ए // 85 // एक नर नरनि साढसइ, वली चुटता दीसइ रे, पीसइ रे, दंत घj ऊपरि रह्या ए // 86|| जिन कहइ ते किम छुटसइ, गति च्यारेमा भमता रे, गमता रे, काल अनंतो अती दूष्यि ए // 87 // दूहा० // अतीदूखीआ दूरगती भमइ, साते नरगे वास / जीव हणइ नर जे वली, सुख किम होइ तास ||88 // ढाल 46 / (45) // देसी० प्रणमी तुम सीमंधरुजी // जीवतणो वध जे करइ जी, ते नवी जाणइ रे धर्म / पांचइ अंद्री पोषवा जी, करतो घोर कुकर्म // 89 / / सुप्रांणी, रीदि वीचारी रे जोय; जिनवचने आलुयजे जी / हंशा-धर्म न होय, सुप्रांणी, रोदइ वीचारी रे जोय ॥आंचली०।। रसनानि रश वाहीओ जी, कर्ता आमिष आहार / वीषमइ पंथि चालतां जी, एकलडो नीरधार // 90 // सुप्रांणी० // जेणी वांटि नही वांणीआ जी, नगर नीरूपम हाट / सांथि नही को सारथी जी, कहइ कुंण कहइसइ वाट // 91 / / सुप्रांणी० // हंशा करतां सोहेली जी, मुयख सांभली वात / ऊतर देता दोहेलु जी, म करीश प्रांणीघात // 92 / / सुप्रांणी० // जलचर थलचर पंखीआ जी, तेहनी करतो रे घात / ते पालव जव झालसइ जी, तव होसइ संताप // 93 // सुणो०(सुप्रांणी) / /
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________ 60 March-2002 जीव हणतां जिन कहइ जी, नीसचई नरगि रे जाय / भुख्यां आमिष देहनु जी, तरस्या तर पाय ||94|| सुप्रांणी०॥ कष्ट रोग नि कुबडो जी, अतिदूरगंधी रे देह / अलप आऊखइ ऊपजइ जी, हंशानां फल एह ॥९५॥सुप्रांणी०।। पंडीत होइ ते प्रीछयु जी, जीवदया जगी सार / दया विनां किम पांमीइ जी, ए संसारां पार ||96 // सुप्रांणी० // जीवदया एम पालीइ जी, जिम जगी मेघरथ राय / पारेवो जेणइ राखीओ जी, परभवि अरीहा थाय / / 97 // सुप्रांणी० // मंश देहD कापीउं जी, मुक्यु त्राजु रे माहिं / / त्राजु तोहइ नवि नमइ जी, धीर न चुको त्याहि // 98 // सुप्रांणी० // एक लाख ग्यवरीतणां जी, दूध तणी खीर खाय / तोहइ काया कार्यमी जी, हंसा केड्य न जाय // 99|| सुप्रांणी० // तोलइ देही कार्यमी जी, म करीश प्रांणी रे धात / सुर हरख्यु तव बोलीओ जी, ध्यन ध्यन तु नरनाथ // 500 // सुप्रांणी०॥ सुर आकासइ संचर्यु जी, हुओ ते जइजइ रे कार / जीवदया एम पालीइ जी, तो लहीइ भवपार // 1 // सुप्रांणी० / / ढाल 47 / (46) // देसी० चाली चतुर चंद्राननी० // राग- मल्हार // जीवदया एम पालीइ, जिम गज सुकमाल रे / पग अढी दिवश तोली रह्यु, मेघ जीव क्रीपाल रे // 2 // जीवदया एम पालीइ || आंचली० // किम तेणइ जंत ऊगारीओ, कीम रघु गजराज रे / तास चरीत्र सहुं सांभलु, सारो आपणुं काज रे // 3 // __ जीवदया एम पालीइ //
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________ 61 अनुसंधान-१९ नाम मेरुप्रभ तेहy, गज दंत स्यु च्यार रे / सात सह्या तस हाथ्यनी, पोतानो परीवार रे ||4|| जीव०॥ दावानल जव लागीओ, देखी गजह पलाय रे / / जोयन मंडलि आवीओ, आवी पसुअ भराय रे // 5 // जीव० // हर्ण सीआल नि सुकरां, रीछां सो नवी माय रे / एक ससलो अती आकलो, गज पगतलिं जाय रे // 6 // जीव० // खाय खणी गज पग ठवइ, पड्यु द्रोष्ट एक जंत रे / / एहनि गज कहइ किम हणु, कुर्णा होय अत्यंत रे // 7 // जीव० / / अति अनुकंपा आणतो, खरी दया जगी एह रे / / अढीअ दीवश दूख भोगव्यु, पड्यु भोमि गज तेह रे / / 8 // जीव० // एम तेणइ जंत ऊगारीओ, हवु फल तस सार रे / मर्ण पामी गजराजीओ, थयु मेघकुंमार रे // 9 // जीव० // संपइ सुख बहु पांमीओ, पोहोती मन तणी आस रे / राय श्रेणिक कुलि ऊपनो, कीधो सर्गम्हां वास रे // 10 // जीव० // दहा० // जीवदया जगि एम करइ, ते सुखीआ बहु होय / / पर प्राणी पीडी रल्या, तास चरीतं जोय // 11 // ढाल 48 / (47) // देसी० प्रणमी तुम सीमंधरुजी० // परदेहीनि पीडतां जी, आप सुखी किम थाय / जीव अकाई मारतो जी, सतम नरगि जाय // 12 // सोभागी, करजे तत्त्व वीचार | पर प्रांणिनि पीडतां जी / ऊतम नही आचार, सोभागी, करजे तत्त्ववीचार ॥आंचली०।। पंच सह्या स्यु परवर्यु जी, ख्यत्री मोटो रे चोर / / वनम्हां पंखी मारतो जी, करतो कर्म अघोर // 13|| सोभागी क०।।
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________ March-2002 लेअण लेइनि मारतोजी, करतो अंद्री रे छेद / परभवि दूखीओ ते थयु जी, पाम्यु वेद कुवेद // 14 // सो०॥ मृगावति जगि जे सती जी, तस कुखि अवतार / लोढो थईनई ऊपनो जी, अंद्री विन आकार // 15|| सो०।। पग विन पापि ऊपनो जी, कर विन काया रे दीठ / श्रा(श्र)वण नेत्र नही नाशका जी, ऊदर नही तस पीठ // 16 // सो०।। रोम आहार लोटी लीइ जी, अती काया दूरगंध / / पूर्व कर्म ते भोगवइ जी, ऊशभ तणो जे बंध // 17|| सो०॥ ते माटई सहु संभलु जी, दया विनां नहीं धर्म / कुर्णा मनमाहां आणीइ जी, परहरीइ कुकर्म // 18 // सो०॥ दूहा० // कर्म कुकर्म न कीजीइ, कीधि किम सुख होय / जेणइ हंशा हरषि करी, नरर्गि रम्या नर सोय // 19 // ढाल 49 (48) चोपई // सहइजि जे करता तापणुं, पूण्य परजालइ छइ आपणुं / सिरि वाहइ छइ जे कांकस्यु, पूण्यपालिथी ते नर खस्यु // 20 // मांकणनि तावडी नाखसइ, ते नरनारी दूखीआ थसई / वीछी छांण लेई चांपसइ, दूख देअंतां सुख किम हसइ / / 21 // चांचण जुअ बगाई जेह, चाप्यां मार्यां दूहुव्यां तेह / कीडी मंकोडा ऊगार्य, ईडां फोडी पंडि म भार्य // 22 / / मंकोडा मारि घीमेलि, लिष कातरा नि चुडेल / दादूर ऊधेई नि मस्यो, मारीनिं कां दूरगति वस्यु // 23 // माखी अई अलि नि अलसीआ, मारी कारय कीधां कस्यां / परम पूरष नि वचने रहीइ, 'मार्य' शब्द मुख्यथी नवी कहीइ // 24 //
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________ अनुसंधान-१९ 63 पांच अतीचार एहना जाणि, नर ऊत्तम तुं अग्य म आंणि / वाटि वसि रीसिं घा कयु, गाढइ बंधन पसुंआं धर्यु // 25 // जे अतिजाझो भार ज भरइ, कर्ण कंबल जे छेद ज करई / भात पांणीनो करइ वछेद, तेनि ऊपजइ अदीको खेद // 26|| दुहा० // खेद न ऊपाईइ बली, मुख्य न कहीइ मार्य / पहइलुं व्रत एम पालीइ, बीजइ मृषा निवार्य // 27 // ढाल 50 (49) चोपई // व्रत बीजइ मरिषा परीहरो, पंच जुठांनी अगड ज करो / कन्याली भोमाली गाय, जुठु बोलि दुर्गति जाय // 28 // थांपणिमोसो कुडी साख्य, अलीअ वचन मुख्यथी म म भाष्य / कुडु बोलि सुख किम होय, ..... जइ नवि पांमइ कोय // 29|| जुठु बोलतां जाइ लाज, जुठु बोलतां वणसइ काज / जुठु बोलतां मुर्यख थाय, जुठु बोलतां दूरगति जाय // 30 // जुठु बोलतां च्योहोगति भमइ, दूरगति नारी साथि रमइ / काल अनंतो एणी परि गमइ, पोताना प्रांणिनि दमइ // 31 // मृषातणुं छई मोटु पाप, फोकट आप करइ संताप / दांन सील तपस्यु जगी जाप, मृषा न छंडइ मुख्यथी आप // 32 // मृषा थकी मुख्य थाइ रोग, दूलहो अंद्रीनो संयोग / लुलो टुंटो नि पांगलो, मृषा थकी थाइ आंधलो // 33 // सतवादीनु लीजइ नाम, कालिकाचारय गुण अभीरांम / स्युध वचन भुपतिनं कहइ, जिगनतणु फल नर्ग ज कहइ // 34 // सति सीता सति रांम, राय युधीष्टार] राख्यु नाम / परशान(शासन)मांहा हरीचंद का, ते तो त(ते)हनि बोलिं रघु // 35 //
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
64
March-2002
डुब घरि तेणइ आंण्यु नीर, वचन थकी नवी चुको धीर । तो तेहनी कीर्ति वीस्तरी, मुओ नही नर जीव्यो फरी ॥३६।। शईव शाशनि सेठि बंगाल, तेहनो पूत्र जे सेठि सगाल । तस घर्णी चंगोमती नार्य, सतवादी जगि दोय वीचार्य ॥३७॥ ते बेहुनी तुम्यु सुणज्यु वात, पूत्रतणो तेणइ कीधो घात । वचन थकी पणि ते नवी चल्या, नरनारी बइ बोलि पल्या ॥३८॥ ऊतम नरनी एहेवी वाच, नो हइ जुठी होइ साच । भाति पटोलइ लुढइ लीह, वचन थकी नवि चुकइ सीह ॥३९॥ नीसरिआ गज केरा दंत, ते किम पाछा पइसइ तंत । सीहतणी जगी एक ज फाल, पाछो वेगि वलइ ततकाल ॥४०॥ कुपरष नरनी वाचा असो, जिम पांणीमांहा लीटी घसी । अथवा काच बकेरी कोट, ष्यणम्हां केती देतो डोट ॥४१|| ते मुरिखनुं कस्यु वखांण, जेणइ नवी कीधु वचन प्रमाण । ते जनुनिइं कां जगी जण्यु, सकल लोकम्हा जे अवगुण्यु ॥४२॥ तेह- कोय म लेज्यु नाम, बोलो सतवादी गुणग्राम । सत वचन ऊफरूं नही सार, सतवादि घरि मंगल च्यार ॥४३॥ सतवादीनि सहु को नमइ, सतवादीनुं बोल्यु गमइ । सतवादि दुरगति नवि भमइ, सतवादि ते सीवपुरि रमइ ॥४४॥ सतवादी जेणइ नगरिं वसइ, नगरलोक ते हरषि हसइ । तेणइ नगरि नही दूत दूकाल, वरसइ मेघ नि होय सगाल ॥४५।।
दूहा० ॥ सुखशाता बहु ऊपजइ, जिहा सतवादि पाय । ध्यन जिव्यु जगी तेहगें, कवी जेहना गुण गाय ॥४६।। जीव्या ते जगि जांणीइ, अशत्य न भाषइ जेह । मृषा न मुख्यथी छंडता, स्यु जीव्या जगि तेह ॥४७।।
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
पांच अतीचार एहना, टालो सोय सुजाण । वचन विमासी बोलज्यु, जिम रहइ जिननी आंण ॥४८॥
ढाल ५१ (५० ) ॥
देसी० पाटकुशम जिनपूज परूपई०॥
पंच अतिचार एहनां जांणो, सुणज्यु सहु व्रध बाल । सहइसाकारि न दीजइ, भाई, अणयुगतु वली आल, हो भवीका, मुख्यथी साचु बोलो, जो तुमनिं सीवमंदीर वाहालुं,
पर अवगुण म म खोलो, हो भवीका, मुख्यथी साचु बोलो ||४९ ॥
मरम पीआरा कांय प्रकासो, नर्ग नीगोदिं पडस्यु | वचनथको नर होस्यु दूखीआ, चोगतिम्हां रडवडस्यु हो, हो भवीका, मुख्यथी साचु बोलो ॥५०॥
मंत्रभेद मम करोअ सदारा, सीख देउं तुम सारी । सेठितणो अवदात ते सुणज्यु, मरणि गई तस नारि, हो भवीका... ॥५१॥
जुठा ते ऊपदेश ते न दीजइ, ए दीधा वीन सारो । ऊत्तम कुलनो नही आचारो, नरनारी अ विचारो ॥५२॥
कुडा लेख न लखीइ कहइ निं, परदूख ऊपजइ अंगिं । तो आपण सुखीआ किम थईइ, किम जईइ सीध संगिं ॥५३॥ हो भ० ॥
वीस्वासी नर घात न कीजइ, एक मांनो ए वेद । खोलइ माथु मुक्यु जेणि, ते कीम कीजइ छेद ॥५४॥ हो भ० ॥
65
दूर्गतिवासइं ते वसई, जे व्रत बीजामां एम कह्युं,
हो भवीका मुख्य० ॥
पर धुति निं पंडी वधारइ, नवि लीजइ तस नांम ।
ते नर भवि भवि होसइ दूखीआ, दूरगति मांहा नही ठाम ॥५५॥ हो भ० ॥
दूहा० ॥ नवी बोलइ साच । मृषा म भाषो वाच ॥५६॥
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
66
पार न भवनो पांमीइ, करतां चोरि वात । व्रत त्रीजाम्हां वारीउं, सुणि तेहनो अवदात ॥५७॥
ढाल ५२ । ( ५१ ) ॥
देसी० अणसण एम रे आराधीइ० ॥ राग- शामेरी ॥
त्रीजु व्रत एम पालिइ, थुलि अदितादांन रे । वाटि म पाडीश पंथीआ, जो तुझ होइ सांन रे ॥ ५८ ॥
त्रीजु व्रत एम पालीइ || आचली ||
I
परघरि धन नवी लीजीइ, एम नीस खातर पाड्य रे पूर पाटण नवि बालीइ नगरि म लाविश धाडि रे ॥ ५९ ॥ त्रीजु० ॥
दूष्ट हईउ नवि कीजीइ, चोरी च्यंति ऊतार्य रे । परधन पंकसमां गणइ, ते नर मोष्य दूआर्य रे ||६०||
धन हरतां दूख पांमीओ, लोहखरो जगि चोर रे । सूलिरोपण ते लहइ, करतो कर्म कठोर रे ||६१ ||
March-2002
मंडक चोर चोरी करइ, परधन लइ वली तेह रे । मुलदेवि तस मारीओ अतिदूख पांमिओ एह रे || ६२||
भोमि पड्यु नवि लीजीइ, नयणे म जोईस्य तेह रे । वणलिधि दूख पांमीओ, मुनि मेतारज जेह रे ||६३ ||
अणदीधुं नवि लीजीइ, लीधि पातिग जाण्य रे । पर नर केरी रे पायको, ग्रहइतां पूण्यनी हाय रे ||६४ || त्रीजु० ||
पंच सह्या पर शाशनिं तापस जल ऊपकंठ रे I
वार्य वीनां जगि ते सम्या, पण्य न हुआ ऊलंठ रे ॥ ६५ ॥ त्री० ॥
दूहा० ॥
सोये ऊलंठ ज नवि हवा, समझ्या शास्त्र ज मर्म । अणदिद्धु जल नवि लीउं, राख्यो तापस धर्म ॥ ६६ ॥
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
67
अनुसंधान-१९
तो किम आपण लिजीइ, पर केरुं वली धन । परभवि देवू तेहनि, सुणज्यु जस रि कंन ॥६७॥ परधन लेतां सोहेलु, भोगवतां दूख होय । जो जांणो तो चेतयु, छल म म रमयु कोय ॥६८।। परधन लेई एक नरा, करता अमृत आहार । परभवि भंसा पर थई, सिर वहइसइ बहु भार ।।६९।। सालि दालि प्रत घोलथी, विष्य पिद्ध ते खास । पणि परधन नवि लीजीइ, दिण तणो जगि दास ॥७०॥
कवीत ॥ दिणतणो जगि दास, वास पणि दिणइं मुकइ दिणइ देह ज खोय, दिणथी भोजन चुकइ । दिणइ दीन मुख होय, दिणथी दीसइ दूखीओ दिणइ ऊवटवाट, दिणथी सुइ न सुखीओ ॥ दिणइ कीरति पंगलि नर्गगति नीसइ कही । नीच युनि अवतार, छूटइ पसु पीठिं वही ॥७१।।
दूहा० ॥ पीठि वहीनि छुटसइ, परवश तेहनि देह । ते भोगवतां दोहेलुं, जिहा दूखनो नही छेह ॥७२॥
ढाल ५३ । (५२)॥
देसी० दइ दइ दरीसण आपणुं० ।। पंच अतिचार एहना, जिन कहि सो पणि टलि रे । वस्त म वोहोरीश चोरनी, तुं मन त्यांहथी वाल्य रे ॥७३।। चीत चोखं नीत राखीइ, राखि बहु सुख होय रे । मन मइलइ दूख पांमीओ, द्रमक भीखारी जोय रे ।
चीत चोखं नीत राखीइ || आचली० ॥
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
68
संवल कहो किम दीजीइ, चोर तणइ वलि हाथि रे । पापी पोष वधारतां, दूख लहीइ बहु भाति रे ||७४ || चीत चोखु० ||
भेल संभेल न कीजइ, नवी पुराणी मांहई रे ।
परभवि बहु दूख पांमीइ, कोण सखाई त्याहिं रे ||७५ || चीत० ॥
March-2002
राजविरुध न कीजीइ, कीधइ किम सुख होय रे ।
वीष पीधि किम जिविइ, रीदइ वीचारी जोय रे ॥ ७६ ॥ चीत० ॥
कुडां तोल न कीजीइ, ओछां अदिकां माप रे । छल छबर्दि धन मेलता, लागइ पोढुंअ पाप रे ||७७|| चीत० ||
मातपीता नवि वंचीइ, बांधव भगनी पूत्र रे I गांठ जुई नवी कीजीइ, एम रहइ छइ घरसुत्र
रे
दूहा० ॥ सुत्र संभालि राखीइ, वचन वडानुं मांन्य । व्रत चोथुं हवइ संभलो, जे जगी मुगट समान्य ॥ ७९ ॥
॥७८॥ चीत० ॥
मृगकुलम्हां यम केशरी, वाहन मांहि तुरंग । तिम व्रतमां ब्रह्मव्रत वडुं, क्यमेह न कीजइ भंग ॥८०॥ ढाल ५४ ॥ ( ५३ ) ॥
देसी० वासपूय जिन पूण्यप्रकाशो० ॥ राग असावरी ॥ तीर्थमाहा यम श्रीसेतुंजो, सुरपति मांहां जिम अंद्र | मंत्रमांहि जिम श्रीनवकार, गहइगणमांहा जिम चंद्र ॥ ८१ ॥ जल सघलामां जलधर मोटो, पंखीमांहां जिम हंसो । सर्पयोन्यमां सेष ज बलीओ, कुलमांहां ऋषभावंसो ॥८२॥
परबतम्हा जिम मेर वखाणुं, ठाकुरमांहा जिम रामो । हनु वांनरकुलम्हां अतीबलीओ, कीधां वसमां कांभो ||८३ || कुजरम्हां अहीरावण मोटो, गढम्हा लंकां कोटो | सूररथाना अस्व जबलीआ, भमता देता डोये ॥८४॥
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
69
अनुसंधान-१९
रूपमुखी जिम मयण वखांणुं, सायरम्हां जिम खीरो । कलपतरु तरुअरम्हां मोटो, जलम्हां गंगानीरो ॥८५॥ शर सघलाम्हां पो(पे)खो भाई, मानसरोवर मोटुं । श्रीकुंलम्हां मरुदेव्या मोटी, दूझाणांम्हा झोटु ॥८६॥ ष्यमावंतम्हां श्रीअरीहंत, तपसुरा अणगारा । भोगिमाहां चकवर अतीमोटो, जस रीध्य अंत न पारा ||८७|| वासदेव सुरा-मुख्य मंडु, परीग्रहइमाहा सुत सारो । तिम व्रत बारम्हां मुख्य मंडु, व्रत चोथु ज अपारो ॥८८।।
ढाल ५५ (५४) चोपई ॥ माहाव्रत केरो टालु दोष, परदारानो करि संतोष । पररमणी साथि जे रम्या, सुरनर केता नीचा नम्या |॥८९।। आगइ अंद्र अहीलास्यु रम्यु, अपजस तेहनो गगनि भम्यु । सहइ सभग तस पोतइ हवा, अंगई रोग तेहनि नवनवा ॥९०|| गुरुनी मइहइला लाव्यु चंद, कलग ई मुख पांम्यु मंद । मासि साजो एक दिन होय, विषइ थकी दूख पांम्यु सोय ॥११॥ पापी विषइ विटंबइ घj, नीर उतार्यु भ्रह्मा तणुं । चोखइ च्यंति न सक्यु रही, ध्यान थकी ते चुको सही ।।१२।। ईसिं भीली झाल्यु हाथ, तो दूख पाम्यु शंभुनाथ । बाली कामनि जोगी थयु, सकल लोकम्हां महीमा गयु ॥९३॥ रावण सरीखो राजा जेह, काम थकी दूख पांम्यु तेह । दस मस्तगनो खइ तव थयु, कनकतणो गढ लंकां गयु ॥९४॥ कईचक जो सीलिं नवी रह्या, हण्या ज्युध ते दुर्गति गया । मणिरथ राजा ते अवगुण्यु, स्त्रीकारणि तेणइ बंधव हण्यु ॥९५॥ मोटो राय अवंतीधणी, कामि ते कीधो रे वणी । नगरी कोट पडाव्यु अस्यु, वण षाधइ तस पाणी रसो ॥९६॥
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
70
वीषइ घणी ब्रह्मदतनिं हती, मर्तीवेल्यां मुख्य कुरमती । एम स्त्रीलंपट सबलो थयु, तो ते सतम नरगिंग ॥ ९७ ॥
March-2002
विटल पूर्ष दनि रमवा गया, नारी देखी वीवल थया । तेणइ बांध्यु अरजनमालिका, जिष्ट मुष्ट बहु दिधा धका ||९८ ॥ तेइ त्याहां कीधो लज्यालोप, अर्जनमाली आव्यु कोप । तेइ दिधी तीहा जष्यनिं गालि, फटि जीव्यु जगी ताहारुं बालि ॥९९॥
जखीराज कोपि धमधम्यु, षट पूरष्यइं महीमा नीगभ्यु | मोगर एक दीओ तस हाथि उठी अर्जन वेगि नीपाति ||६००॥
छुटी अर्जन अलगो थाय छइ पूर्ष शरि दीधा घाय । जो नारीनि शंगि रम्या, हण्या ज्योध ते दूरगति भम्या ||१||
हवड़ मुनीवरनो कहु अवदात, पूडरीक नृप केरो भ्रात । भोगतणी ईछ्याइं थयु, कुडरिक सातमिदं गयु ||२||
मुनीवर मोटो आद्रकुमार, कांमिं चार्त्र कीधु छाहार । बार वरस घरवासि रघु, जो मुकी तो सुखीओ थयु ||३||
रषि आषाडो मुनिवरपती, कांर्मि चारित्र चुको जती । वेशास्यु तेइ कीधो नेह, छेहे मुक्यु सुख पाम्यु तेह ||४||
अर्णक ऋषि विषयाई नड्यु, सील गयु संयमथी पडयु । फरी कद्रूप साथि ते वढ्यु, मुगति गयु पणि पूस्तगि चढ्यु ||५||
नंदषेण वेशाघरि रह्य, दस बुझवइ पणि संयम गयु । सीलवरत तेग आदर्यु, तो तस मुनीवर नांम ज धर्युं ॥६॥
चोमासीतप केरो धणी, पणि सहुई नाख्यु अवगुणी । सील खंडवा केडि थयु, कोशामंदिर चाली यु ॥७॥
रत्नकाय भमाड्यु जेह, भमी भमीनिं आव्यु तेह प्रतिबोध्यु निं मुनिवर गयु, सील ग्रह्यु तो ध्यन ध्यन यु ॥८॥
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
71
अनुसंधान-१९
रहइनेमि मन-वचनि पड्युं, राजुल देखी ते हडबड्यु । माहाभट मदनि कीधो रंक, सही शरि पांम्यु सोय कलंक ।।९।। लषणा नामि जे माहासती, मन मइलइ चुकी स्युभगति । मनह वचन काया थीर नही, ते नर सुखीआ थाइ कही ॥१०॥ कुलवालुंओ मुनीवर जेह, माहातपीओ पणि कहीइ तेह । सीलखंडणा तेणइ करी, खिणम्हां दूरगति नारी वरी ॥११।। एहेवो कांमतणो अवदात, सुणज्यु सहु शभा नरनाथ । तो अबलास्यु कस्यु सनेह, जाति जे देखाडइ छेह ॥१२॥ भोज मुज परदेसी जेह, सबल वटंब्या नारिं तेह । जमदगधनि नारिं नड्यु, राय भरथरी ते रडवड्यु ॥१३॥ ब्रह्मराय घरी चुलणी जेह, पोतइ पूत्र मरावइ तेह । गउतम ऋषिनी अहीला नार्य, अंद्र भोगवइ भुवन मझार्य ॥१४॥ ए नारीनो जोय वीचार, जोता काई नवी दिसइ सार । समझ्या ते नर मुकी गया, नवि समझ्या ते खुची रह्या ॥१५।। अकल गई नरनी वली एम, जिहाथी प्रगट्या त्याहा बहु प्रेम । ऊतपति जोनी तुं आपणि, समझी मुके मती पाप्यणी ॥१६।। मातपीता नि युगि वली, श्रुणी स्युक गयां बइ मली । जग सघलु जई तिहा उपनो, नांहानो मोटो एम नीफ्नो ॥१७॥ तो ते सांथिं स्यु वलि रंग, म करो नारी केरो संग । भोग करता हंशा बहु, नरनारी ते सुणयु सहु ॥१८|| बेअंद्री पंचेद्री जेह, नव नव लाख कहीजइ तेह । मुनीष असंखि समुर्छम जाणि, भोग करतां तेहनी हांणी ॥१९॥
दूहा०॥ हाणि न करता हंसनी, सीलवंतम्हां लीही । पणि वरला जगि ते वली, जिम पसुआमां सीह ॥२०॥
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
122
72
सुगर कहइ संभारीइ, सीलवंतनां नाम ।
ऋषभ कहइ नर ते भला, जेणइ जगी जीत्यु कांम ॥ २१ ॥
शमशा० ॥ गोरधुपूत कहीजड़ जेह, ता वाहन भष्य कहीइ तेह | तास भष्यन नांम जे कहइ, तेहनुं वाहन जे जगी लहइ ||२२||
March-2002
तेह वाहालुं स्यु वली होय, उतपति तास वीचारी जोय । ता वाहन भष्य केरो तात, तस बंधन रीपू जग वीख्यात ||२३||
तेहना बांध्या जे जगी लहइ, तास तणो स्वामी कुण कहइ । तेनुं वाहन अतिबलवंत, तेणइ आंण्यु जगी जेहनो अंत ||२४||
तेहनि बंधी जे वश करइ, ते वहइलो मुगतिं संचरि (इ) | जन्म मर्ण जरा नही यांहि, अनंत सुख नर पांमइ त्याहि ||२५||
दूहा० ॥ संपइ सुख बहु पांमीइ, जो वश कीजइ कांम | सीलवंत जगी जेहवा, लीजइ तेहनां नांम ॥ २६ ॥
ढाल० ॥ चोपई ॥ (५५) ॥ शीलवंतनुं लीजइ नांम, तो मनवंछीत सीझइ कांम । सीलवंतना पूजो पाय, रीध्य व्रीध्य सुखशाता थाय ||२७|| सीलतणो जगी महीमा घणो, जग सघलो थाइ आपणो । सुर नर कीनर दानव देव, सीलवंतनी सारइ सेव ॥ २८ ॥ सीलवंत संग्रांमि चडइ, ते कोंण नर जे सांहामो लडइ । नावइ सुरो साहामो धस्यो, सीलवंतनो महीमा अस्यु ||२९||
सीलवंतना पगनुं नीर, तेणइ लेई छाटो आप शरीर । सकल रोगनो खइ जिम थाय, कष्ट कोढ कली नाहाठो जाय ||३०||
सती सुभद्रानी सुणि वात, जेहनो जग जाणइ अवदात ! कुपि चालणि तांतणि तोलि, काढी नीर ऊघाडी पोलि ॥ ३१ ॥
:
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
73
अनुसंधान-१९
सती वशला आगइ हवी, रामचंद्र मुख्य तेहनि स्तवी । सीलवती तु माहारी मात, आ ऊठाडो वेगि भ्रात ॥३२॥ तव सतीइं सिर ह (हा)थ ज धर्यु, पड्यु पुर्ष ते चेतन कर्यु । उठ्यु लषमण हरखि हस्यु, सीलतणो जगी महीमा अस्यु ॥३३|| नारद वेढी लगावइ घणी, ए परगति छइ आतमतणी । तोहइ मोष्य गयु तस गणो, जोयु महीमा सीअल ज तणो ॥३४॥ सीलि रही अंजनासुंदरी, तो वनदेविं रष्या करी । सीहतणु स्यंकट तस टल्यु, वन सुकु ते वेगि फल्यु ॥३५॥ कलावती- सीअल ज जोय, भुजाडंड पांमी जगी दोय । नदीपूर ते पाछु वल्यु, सीलसरोमणि पर्गट फल्यु ॥३६।। रामचंद्र घरि सीता जेह, अग्यनकुंडम्हा पइठी तेह । वस्यवांनर फीटी जल थयु, जनकसुतानुं नाम ज रह्यु ॥३७॥ कमल एक प्रगट्युं कहइ कवी, ते ऊपरि बइठी साधवी । लव नि कुश व खोलइ वली दोय, सीलवंती जगि वंदो सोय ॥३८॥ वंकचुल वनि मोये चोर, व्रत चोथु तेणइ लीधु घोर । कार्ण पणइ तेणइ राख्यु सील, राजरीध्य बहु पांम्यु लील ॥३९॥ कलीकालि सोनी शंग्राम, सीलि अंब फल्यु अभीरांम । वली मेहे वुठो ते अतीघणो, जोज्यु महीमा सीअल ज तणो ॥४०॥
ढाल ५७ । (५६)॥ देसी० पाय प्रणमी रे, वीर जिनेस्वर राय रे०॥ राग-मल्हार || सील साचु रे प्रेम करीनिं पालीइ एणइ वरति रे आतमवंश अजुआलीइ । मन दोहो दशरे जातु पार्छ वालिइ भ्रह्म वरति रे कर्म कठण ते गालिइ ।।
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
74
त्रुटक० गालीइ कर्म जे कठण जुनां सील अंगि सो धरी मन वचन काया करो चोष्यां संसार सागर जाओ तरी । आगि जे नर नारि मुनीवर सील अंगि आदर्यु सोय नरनु नांम जपतां जाणि मन मोरूं ठर्यु ॥४१॥
त्रु०
त्रु०
सुदर्सण सेठि रे व्रत ते चोथु शरि वधु पटरांणी रे प्रेम तणइ वचने कछु | रंभा देखी रे सेठ तणु मन थीर रह्युं नवि चुको रे जो जांण्युं जीवत गयुं ||
जीवत जातई जे न चुको राणी बहु रोसिं चडि बहु बुब पाडी अत्यहिं त्राडी सेठि बांध्य ते जड़ी माहाराज बोल्यु द्यु न सुली सेठिनिं सांचई सही ए सील महीमा थकी जुओ सुली सीघासण थई ॥४२॥
श्रीअ धुलिभद्र रे मुनीवर मोटो ते यती जंबुस्वामि रे वंदे वेगं स्युभमती । धना स(सा) लिभद्ररे जेणइ स्त्रीअ मुकी छती नरनायक रे पंच संह्यांनो जे पती ॥
March-2002
जे पती पच सह्या केरो नामि सीवकुमार रे भावचारीत्र थकी वंदो सील रघु नीरधार रे । पंचमइ सुरलोकि पोहोतो कर्म केतु खइ कर्तुं सील अंगिं धर्यु साचु नांम जगम्हां वीस्तर्यु ||४३||
दूहा० ॥ नांम ते जगम्हा वीसतर्या, आणि वली अनेक ।
सो मुनीवर नीत्य वंदीइ, सील न खंड्यु रेष ||४४ ||
ढाल ५७ ॥
देसी० एणी परि राय करंता रे० ॥ राग- गोडी ॥
गऊतम मेघाकुमार रे वली वछ थावछो, वहइरस्वाम्यनिं पाए नमु ए ॥ ४५ ॥ भरत बाहुबल दोय रे अभयकुमारस्यु, ढंढण मुनीवर वंदीइ ए ॥४६॥
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
शरीओ अतीसुकमाल रे बंदू अइमतो, नागदत्त सीलिंर ए ||४७|| कइवनो गुणवंत रे समरू शकोशल, पूडरीकनिं पूजीइ ए ॥४८॥ प्रभवो वीस्णकुमार रे कुरगढु मुनी, करकंडु सीलिं भलो ए ॥ ४९ ॥ क्रीण अनि बलिभद्र रे वंदू हनमंत, दशानभद्र दीनकर समो ए ॥ ५० ॥ ब्राहामी सूदरी सोय रे मयणासुंदरी, दवदंती सीलिं भली ए ॥ ५१ ॥ मृगावती पून्यवंत रे सुलसा साधवी, मणिरेहा मुख्य मंडीइ ए ॥ ५२ ॥ कुता द्रपदी दोय रे चंदनबाला ए, पूफचुला राजिमती ए ॥ ५३ ॥
दूहा० ॥ सीलवंत नर नार्यनुं नतिं लीजइ नांम ।
नवनीध्य चऊदरयण घरिं, जस जगम्हा अभीरांम ॥ ५४||
मन विन सील ज पालीइ, तो पणि सुर अवतार । चीत चोखु नित्य राखता, ते किम न लहइ पार ॥५५॥ ढाल ५८ ॥ चोपई ॥
पंच अतिचार एहना सार्य, विधवा देश कुलंगनां नांर्य । अपरग्रहीता शंगम म करो, हाश वीनोध क्रीडा परीहरो ॥५६॥
वली सदारा सोक्य ज जेह, द्रीष्टराग कर्यु वली तेह | विप्रजाश कीधो मनि धणुं, पाप आल्युओ आतमतनुं ॥५७॥
सरागवचन बोल्यु मुष्य थकी, वीकलपथी जीऊ थाइ दूखी । अनंगक्रीडा कीधी रंग, मीछादूकड द्यु जिनसंग ॥५८॥
परविहीवा मेलि कां दीइ, विषइ वधारी स्यु फल लीइ । कांमभोग तीवर अभीलाष, सील परजाली कीधु राख ॥ ५९॥
रूप शणगार वखाणइ वली, मन चोखुं पणि जाइ टली । जिम लीबु मुखस्यु नवी मलइ, पणि तस वातिं डाढ्य ज गलइ ॥ ६०॥
आठम्य पाषी पून्यम जाण्य, ए छइ स्युभ करणीनी खांण्य | एइ दिवसि ए राखो आप, भोग करता पोढु पाप ॥ ६१ ॥
75
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
76
सील समु नही को पचखांण, जोयु ज्युध विमासी जांण । लाछलदे सुत ते पण ग्रह्यु, थुलिभद्रनुं नांम ज रह्यु ॥६२॥
दूहा० ॥ थुलिभद्र मुनीवर वडो, सिर वही जिनवर आण । हवइ सुणयु व्रत पांचमुं, जे परिग्रहइ - परिमाण ॥६३॥
March-2002
ढाल ५९ ॥ चोपई ॥
पांचमइ वरतिं चोखुं ध्यान, सकल वस्तनुं कीजइ मान । अतित्रिणा मनि वारो लोभ, एह थकी बहु पांम्या खोभ ||६४||
नवइ नंद ते क्यरपी हुआ, मुमण सेठि धन मेली मुंआ । सागर सेठि सागरमाहा गयो, जो जगी सबलो लोभी थयु ||६५ ॥
धन संच्यानुं मोटु पाप, उपरि थाईश फणधर साप । ऊदर घसंतो हीडश आप, ऊद्यरनिं करतो संताप ||६६ ॥
ते धन ऊपरि मुरछा कसी, खाओ खरचो मनि उहोलसी । धन यौवन यम पीपल पांन, चेतो चंचल गजनो कांन ॥६७॥
ते माटइ मुर्छा म म मंड्या, अतित्रीस्णा आतमथी छंड्या । आगइ अनरथ हुओ घणो, ते महीमा छइ परिग्रहइ तणो ॥ ६८॥
भरत बाहुबल झगडो कर्यु, तो तेहनो अपजस वीस्तर्यु । कनकरथिं नीज मार्वु पूत्र, जाण्यु लेसइ मुझ घरसूत्र ॥६९॥
लोभ लगिं सुर पूरी कुंमार, हण्यु पिता तेणइ नीरधार । रत्न तणो वली लीधो हार, न कर्यो बीजो कस्यु वीचार ॥७०॥
श्रेणिक सरीखो राजा जेह, परिग्रहइथी दूख पाम्यु तेह | कोणी राजा लोभी थयु, पीता हणीनिं नरगिंग ॥ ७१ ॥ सुभमराय चक्री आठमो, ते नर सबलो लोभी हवो । त्रीणानो नवि आण्यु छेह, तो दूख पाम्यु नगिं तेह ||७२ ||
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
77
अनुसंधान-१९
शमशा० ॥ चोपई ॥ सुरपतिवाहन केरो स्युत्र, ताश शाम्यनी केरो पूत्र । तास पीता-मस्तगि जे रहइ, कुणथी सोय कलंक ज लहइ ॥७३|| तास रिपूनो ठांम ज कहइ, तास धरीनिं कुण जगि रहइ । तेहनो कुण झालइ जगी भार, तास रीपू ठाकर कीरतार ॥७४॥ तेहनी नारी साथि नेह, जातो दूख पांमइ नर तेह । जेणइ खाधी खरची ओहोलाश, ते नर वशीआ स्युभगति वाश १७५।। माहारु माहारु करता जेह, पणि धन मुकी चाल्या तेह । परिग्रहइ माटइ थोर नवी रह्या, धन पाषइ नर को नवी गया ॥७६।।
ढाल ६० ॥ देसी० नंदनकु त्रीसला हुलरावइ० || राग - असाओरी ॥ माहारू माहारू म कर्य तु कंता, कंता तु गुणवंता रे नाभीराया कुलि ऋषभजिणंदा, चाल्या ते भगवंता रे ॥७७॥
म्हारु म्हारु म कर्य तु कंता० । आचली ॥ भरत नवाणुं भाई साथि, वासदेव बलदेवा रे, काले सोय समेटो चाल्या, सुर करता जस सेवा रे ॥७८॥ म्हारू०॥ भरध भभीषण हरी हनमंता, कर्ण सरीखा केता रे, पांडव पंच कोरव सो सुता, बर्द वहंता जेता रे ॥७९||म्हारू० ।। नलकुबर नर रा हरीचंदा, हठीआ सो पणि हाल्या रे, रावण राम सरीखा सुरा, काले सो नर चाल्या रे ८०॥ महा०॥ दशांनभद्र राइ वीक्रम सरीखा, सकल लोक शरि रांणा रे, सगरतणा सुत साठि हजारइ, सो पणि भोमि समांणा रे ॥८१|| म्हारू० ।।
दूहा० ॥ माहारू म्हारूं म म करो, करयु गहइन वीचार । आगइ नरवर राजीआ, छंडिं पाम्यां सार ||८२॥
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
78
March-2002
ढाल ६१ ॥ देसी० नवरंग वइरागी लाल० ॥ राग-हुसेनी ॥ ऋषभ अजीत संभव जिना, अभिनंदन जगी जेह । रीध्य रमणी सुख सो वली, नर छंडी चाल्या तेह रे ॥८३|| धन छंडइ ते जगी सार, विण मुकिं न लहइ पार रे,
धन छंडि ते जगी सार० आचली० ॥ सुमतिनाथ जिन पंचमो, जस घरि रिधि अपार । पद्मप्रभ धन ते तजी, जेणइ लिद्धो संयम भार रे ।।८४॥ धन छं० ॥ सुपारस जिनेस्वर सातमो, कनक तणी घरि कोड्य चंद्रप्रभ सुवधी जिना, ऋध्य चाल्या ते जगि छोड्य रे ॥८५।। धन० ।। सीतलजिन श्रेअंस निं, वासपूज्य जिनराय, चंपानगरीनो धणी, धन छंडी मुनीवर थाय रे ॥८६॥ धन० ॥ क्यंपलपूरनो राजीओ, विमलनाथ जिनदेव, अनंत धर्म अरीहा वली, रीध्य छंडइ सो ततखेव रे ॥८७|| धन छंडइ० ॥ सांतिनाथ जिन सोलमो, कुथनाथ अरनाथ, मलिदेव मीथलां तजी, भाई ए जगम्हां वीख्यात रे ॥८८॥ धन० ॥ मुनीसुव्रत जिन वीसमो राजग्रहीनो राय, नमीनाथ नेमीस्वरु जगि, सुर जेहना गुण गाय रे ॥८९॥ धन० ॥ पास जिनेस्वर पूजीइ, वरधमांन जिन जोय, दोय वरस आग्रहइ रह्यु, नरसीह समो जगि सोय रे ॥९०॥ धन० ॥
दुहा० ॥ धन कण कंचन काम्यनी परीग्रहइ भाति अनेक । पाच अतिचार परोहरो, मुरछा म करो रेख ॥९१।
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
ढाल ६२ ॥
देसी० ए तीर्थ जांणी पूर्व नवाणुं वार० ॥
एना पाच अतीचार टालो जिम धरि खेमो, धन धांन नि खेत्रु, वस्त्र रूप निं हो ( है ) मो ॥ ९२ ॥
कासुं निं त्रांबुं सपतधातनी जात्य दूपद निं चोपद नदविधि परीग्रहइ भात्य ||१३||
मुरछा मन्य अणी, परीग्रहइ व्रर्त प्रमांणो लेई नवी पढीउं, वीसरतां ज अयाणो ॥ ९४ ॥
अल्लीदु मेल्युं, नीम वीसार्या जेहो, पांचमहं पणि वरतिं मीछादूकड तेहो ॥ ९५ ॥
वरि वोषधर वदने जीभ दीइ ते सारो पणि व्रत नवि खंड ऊतम ए आचारो || ९६ ||
दूहा० ॥
खंडि पातिग होय ।
लघु व्रत नवी खंडीड़, छठु व्रत सहु संभलो, नीम म छंडो कोय ||९७||
ढाल ६३ ॥
देसि० कहइणी कर्ण तुझ वीण साचो० || राग - ध्यन्यासी ॥
दीगवेरमण वरत वखाणुं, राखी चोखु ध्यांनजी | जलिवटि जावा केरूं भाई, सहुं करज्यो वली मानजी ॥ दीगवेरमण वरत वखाणुं, राखी चोखुं ध्यानजी० | आंचली ॥९८॥
पगवटि चालता तु चंते, मनमा नीम संभारेजी । ऊतर दष्यण पूर्व पछिम, ए दसि कहीइ च्यारेजी ॥९९॥ दीग० ॥
च्यार वदशनि ऊर्ध अधोदसि, दसइ दसी मांन संभारोजी । अगड आखडी चोखां पालु, लीधो नीम महारो जी || ७०० |l
79
दीग वेरमण० ॥
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
80
पाच अतीचार एहना आख्या, तीहा म म वाहो अंगजी ! आवंतां जावंता म करीश, नीम तणो वली भंग जी || १ || दीग० ॥
पाठवणी आधी पाठवता, अंगि अतीचार थाइ जी । वरतभंग करइ नर जेता, ते नर नरगिं जाइजी ||२||दीग० ॥
March-2002
एक दसि सोय संखेपी सहइंजि, बीजी कांय वधारी जी । वरतखंडणा एम नवी कीजइ, सुणज्यु सहु नरनारी जी ||३|| दीग० || काकजंघा राजा अती बलीओ, तेणंइ ए वरत न छुड्यु जी । जो पणी ते वइरी वश पडीओ, दशनुं मांन न खंड्यु जी || ४ || दीग० ||
जे नर ए व्रत चोखुं पालइ, कर्म कठण ते गालइ जी । कर्ण पण जे किमेह न चुकइ, आतम ते अजुआलइ जी ||५|| दीग० ॥
दूहा० ॥ आतम एम अजुआलीइ, कीजइ तत्त्ववीचार | सतम वरत संभारीइ, तो लहीइ भवपार ||६||
ढाल ६४ ॥
-केदारो ॥
देसी० सुणो मेरी सजनी० ॥ राग - सतम वरत संभारो भाई रे, चउदइ नीम ज करो सखाई रे । नीत संखेपो एकचीत लाईरे, हंसानि छड़ ए हीतदाई रे ॥७॥
सचीत नीवारो, द्रवि संखेपो रे, वीगइ वीचारी लिजइ रोषो (रोपो ?) रे । एहथी वाइ वीषइअ वसेषो रे, कार्मि लही दूरगति एकोरे ||८|| बांहाणई केरुं मांन सु कीजइ रे, मुखि तंबोलह ववेकिं दीजइ रे । वस्त्र कुशमनी वगति करीजइ रे, वाहन सुअण वलेप गुंणीजइ रे ||९||
वीषइ नीवारों पंथ संभारो रे, नांहांण नवणनो बोल सुधारो रे । भात सुं पाणी वीधिई वीचारो रे, नीम संभारी आतम तारो रे ॥१०॥
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
दूहा० ॥
आतम आपसु तारजे, पंच अतीचार टालि ।
पनर करमादांन परीहरे, म पडीश पाप जंजालि ॥११॥
ढाल ६५ ॥
देसी० श्रीसे जो तीर्थ सार० ॥ राग - देसाग ॥
पाच अतीचार एहना टालु, अचीतठांमि मत सचीत नेहालो । अचीत वस्त सचीत प्रतबंध, दूरि करे ए जांणि अस्युध ||१२||
उपक- दूपक तुछ ओषधी कहीइ, भक्ष त करतां सुख किम लही 1 ओला उंबी पुहुक म खाओ, पापडी ऊंपरि प्रेम म लाओ ||१३||
ए नीपजतां जीव ज घात, कठण हईउं वली होइ दूरदांत । अग्यन कर्म जे घणुंअ अभ्यासइ, जीवदया तेहनी तव न्हासइ ॥ १४॥ धांन शल्यां मम भरडो भाई, जीव हणंता दूरगती खाई । जस्युरो वाहालो पोतानो प्राणी, जीव राखो मनि तेहेवा जाणी || १५ ॥ वालुं असुर्यु ते नवि कीजइ, ऊदय विनां मुख्य अन न दीजइ । सुत्र सीधांति एह वीचार, पालइ ते नर पांम पार ||१६|| अभ्यष्य बावीसइ ते नवी भजीइ, अनंतकाय बत्रीसइ तजीइ । जीव राखो पोतानं ठाम्य, जीम वसीइ सीवमंदीर गांम्य ||१७||
दूहा० ॥
सीधनगरी म्हां सो वसई, न करइ अभष्य सु आहार । भष्य अभष्य न ओलखइ, धीग तेहनो अवतार ॥ १८ ॥
ढाल ६६ ॥
देसी० पारधी आनी० ॥ राग केदार गोडी ॥
अभष्य बावीसइ जे ऊतम कुल नर जे
81
कह्यां रे, ते वार्या भगवंत्य । लघु रे, तो कां चालो कुपंथि ||१९||
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
82
भवीकाजन, अभिष्यतणुं बहु पाप, वीषमइ पंथइ चालवु रे, तिहा सबलो संताप, भवीकाजन, अभष्यतणुं बहु पाप || आचली० ॥
उंबर वडलो पीपलो रे, पीपरडी फल वार्य ।
फलह कठुबर परीहरो रे, एम आपोयुं तार्य ||२०|| भवीका० ॥
March-2002
च्यार वीगइ जिन जे कही रे, ते जांणोअ अभष्य । जईन धर्म जाग जांणीओरे, तो किम दीखइ मुख्य ||२१|| भ० ॥
मदीरा मंश मुख्य नही भलु रे, पति पूर्वयनी जाय । मध-मांखणना आहारथीरे, प्रांणी मइलो थाय ॥२२॥ भ० ॥
मधनी ऊतपति जोईजई रे, तो नवी दीसइ सार । श्रवरस लेई माखी विमइ रे, तो स्यु कीज आहार ||२३|| भ० ॥
गांम जलतां जेटलु रे, लागइ पोढु पाप । मधभक्षणथी तेटलु रे, कां बोलइ छड़ आप ||२४|| १०||
हम करहा विष बिंगणां रे, माटी मुख्य म देश । तुम नीशभोजन परीहरो रे, सुरघरि रंगिं रमेश ॥ २५ ॥ भ० ॥
तुछ फलांनिं नवी भषो रे, आंमण बोर अपार । जे जगी जांबु टीबरु रे, पीलु पीचु असार ॥ २६ ॥ भ० ॥
बहुबिजनी जाति जाणीइ रे, रीगण निं पंपोट । अंतरपट विन पीडलु रे, तीहा म म देयु डोट ||२७|| भ० ॥
काय अनंती ओलखोरे, घोलवडानुं साख ।
अणजांण्या फल परीहरो रे, चलीतरस अथाणुं पाक ||२८|| भ० ।
दूहा० ॥
आप अथाणुं परहरे, कंदमुल मुख्य वार्य । अनंतकायन परीहरइ, ते नर मुष्य- दूआरि ||२९||
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
ढाल ६७ ॥
देसी० नंदन कु त्रीसला हुलरावइ० ॥
कंदमुल मुख्य को म म देज्यु, अनंतकाय बत्रीसु रे ! शाहास्त्रमाहिं तो अस्युअ कह्युं छइ, कहइतां म घरो रीसु रे ॥३०॥ कंदमुल मुष्य को म म देज्यु० ॥ आचली० ॥
थोहर गुगल गलुअ नीवारो, आदू वज्जसु कंदो रे । अमरवेल निं नीली हलदर, लसण थकी मुख गंधो रे ||३१||कं० ॥
नीसइ सूर्णकंद नषेदो, थेग लोढ नही सारो रे । नीली मोथि कुंआरि म खाओ, पापतणो नही पारो रे ||३२|| कं०॥
83
लुण वीर्षनी छाल्यने तजीइ, गर्णी पलव यांनोरे ।
कुंलां कुपल वांसह केरां, दीजइ तसइ अभइदांनो रे ||३३|| कं० ॥
शाकभेद पलक पणि जांणो, मुलग शणगां धांनो रे । सताओरि ढकवछल वारो, जो कांई होइ तुंम सांनो रे || ३४ ॥ कं० ॥
नीलो वलीअ कचुर न खाईइ, षरसुआं नीसी षात्यो रे । आलु कुलि आंब्यली वारो, जिम बइसो सुरपांत्यु रे ||३५|| कं० ॥
सुरीवाहालि वलिअ खलइडां, गाजर वलिअ वखोड्य रे । भोमी रहइ पीडाल वसेको, ते खाता बहु खोड्य रे || ३६ || कं० ॥
लुंण वेलि बुराल न भखीइ, खांता कस्युअ वखांणो रे । वेद पुराण सीधांति वायुं, को म म खायु जाणो रे ||३७|| कंद० ॥
दूहा० ॥ जांण अजाणां चीतवो, जे नवी राखइ आप ।
खाय- अखाय न ओलखड़, लहइ पून्य नि पाप ||३८||
कर्म अंगाल न कीजीइ, जीहा बहु हंशा होय । नरभव दोहोलिं तिं लघु, आलि अर्थ म खोय ॥ ३९ ॥
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
84
ढाल ६८ ॥
देसी० हीरविजइ गुणपेटी० ॥ राग विराडी ॥
—
March-2002
कर्म अंगाल न कीजइ भाई, पातिगनो नही पारो । बहु आरंभ करंतां पेखो, नर्ग लहइ नीरधारो, भवीका, अग्यनकर्म नवी कीजइ, अतीअनुकंपा रीदइअ धरीनिं अभइदांन जगि दीजई, भवीका, अग्यन कर्म नवि कीजइ ॥ आचली ॥४०॥
आगर ईटिनी हिमा नवी कीजइ, बहुरी ( रां) गणीजे ल्याहाला । कर्म कुकर्म करंतां भाई, जीव होइ अतीकाला ||४१ || भवीका० ॥
करसण वर्ष म म छेदीश जन तुं, सीख देउ तुझ सारी । पूफ पत्र फल सोय सुडंतां, हंसा राखे वी (वा) री ॥ ४२ ॥ भवीका० ॥
गाडी वहइल्यु हल दंताला, नावी जे नोपजावी ।
सो पणि वणज तजइ नर जेता, तस मति चोखी आवी ॥ ४३ ॥ भ० ||
गाडावाही म करो मांनव, चोमासइ चीत वारो ।
थाइ प्रथवी सकल जंतमइ, हीत करी ते ऊगाये ||४४ ॥ भ० ||
दयाधर्म जगि सारो, भ० ॥ आतम आपसो तारो, भ० ॥ को मम प्रांणी मारो, भ० ॥ लाघो धर्म म म हारो, भ० || फोडीकर्म न कीजइ भाई, कुप सरोवर वाव्यु |
भोमिफोड कीओ द्रहइ कारणि, नर भव्य सो नवि फाव्यो || ४५ ॥ भ० ॥
मच्छ कच्छ मिंडक बहु बगला, एक एकनि मारइ । पापतणुं भाजन ए करतां, आप केही परी तारइ ||४६ ॥ भ० ||
दूहा० ॥ आप केही परि तारसइ, करतो भाजन पाप ।
वणज कुवणज न परहरइ, ते कीम छोडइ आप ॥४७॥
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
ढाल ६९ ॥
देसी० भावि पटोधर विरनो० ॥ राग - गोडी ॥ पांच वणज किम कीजीइ, दंत चमर नख जोय । कस्तुरी मणी पोईशा, मोती शंख ज सोय ॥ ४८ ॥
पांच वणज किम कीजीइ । आचली० ॥
आगरि एहनि जई करी, नवि लीजइ सही जाण्य । पाप विरध्य अती पामसइ, पूण्यतणी वली हांणि ॥ ४९ ॥ पांच० ॥
लाखवणज नवि कीजीइ, साबु सोमल खार |
लुण गलि अनि आबुआ, वोहोरि पाप अपार || ५० || पाच०
अरणेटो तुरी धावडी, मणशल निं हरीआल ।
महुडी साहाजीअ म वोहोरजे, वारु छु व्रध बाल || ५१|| पाच० ||
वलि वछनाग न वोहोरीइ, जे विष केरी जाति ।
अन्न शल्यां रे वणजी करी, प्रांणी मम दूरगति घाति ॥ ५२॥ पाच० ॥
कंदनई मुल ते टालीइ, वणज भलो नही एह । श्रीजिनधर्म हेलावतां, अतिदूख पांमइ देह ॥ ५३ ॥ पाच० ॥
रसवाणज नवि कीजीइ, मध मांखण निंमीण । चोथु चीड ते टालीइ, जिम नवि थईइ हीण ॥ ५४ ॥ पाच० ॥
केसवणज म म को करो, एहनुं पाप अपार ।
दूपद चोपद लेई वेचतां, ऊतम नही आचार || ५५ || पाच ||
85
लोहवणज पणि वारीओ, म म वेचो हथीआर ।
पापोपगर्ण ए कह्या, म करो जीवसंघार ||५६|| पाच० ||
दूहा० ॥ पापोपगर्ण म म करो, म करो लोहो हथीआर । घांणी जंत्र निं घंटला, करतां पाप अपार || ५७ ||
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
86
ढाल ७० ॥
देसी० तुगी आगीरसीखरि सोहइ० ॥ राग परजीओ ॥ जंत्रपीलण जन न कीजइ, घ्यंट घांणी जेह रे । ऊखल मुसल जेह कोहोलुं, तु म वाहीश तेह रे ॥ ५८ ॥ जंत्रपीलण जन न कीजइ ॥ आंचली० ॥
जंत्र वाहातां जीव केता, प्राणविहुणा थाय रे ।
तेइ कारण ए कर्म तजीइ भजो अवर उपाय रे ॥ ५९ ॥ जंत्र० ॥
March-2002
आंक पाडइ पूण्य हारइ, तजि नालछेदन करम रे । कर्ण - कंबल कांई कापो, जो जाणो जिनधर्म रे || ६० ॥ जं० ॥
बाल तुरंगम वच्छ पूर्षा, नर समारइ सोय रे ।
नीचगती ते लहइ नीसचइ, वली नपुंसक होय रे ॥ ६१ ॥ जं० ॥
दव लगाइ पसु बालइ, सो सुखी किम थाय रे ।
छेदन भेदन लहइ नर ते, भाष [इ] श्री जिनराय रे ॥ ६२ ॥ जं० ॥
कुआ वाव्यु द्रहइ म सोसो, जीव केति कोडि रे । प्रांण परनो ज्याहा हणाइ, एह मोटी खोड्य रे || ६३ || जंत्र० ॥
मछ कसाई अनि तेली, वागरी ववसाय रे !
नीच जननी संगति करतां, हंस भइलो थाय रे || ६४ ॥ जं० ॥
स्वान कुरकुट मांजारा, पोषीइ कुण कांम्य रे ।
एह पनर खरकर्म टालु, वसो सीवपूर ठाम्य रे ॥ ६५ ॥ जं० ॥ दूहा० ॥ सीवपूर ठांमि सो वसई, जे नवी करइ कुकर्म । अष्टम वरति जे कछु, सुणिहो तेहनो मर्म ॥६६॥
ढाल ७१ ॥
देसी० तो चढीओ घन मानगजे० ॥
व्रत आठमु एम पालीइ ए टाले अनर्थडंड तो । खेला नाटिक पेखणु ए, नवि जोईइ पाखंड तो ॥ ६७ ॥
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
87
अनुसंधान-१९
वाघछालि नवि खेलीइ ए, तु मन चारे आप तो । .. शेत्रुज बाजी सोगठां ए, रमतां लागइ पाप तो ।। ६८ ।। जु म म खेलीश जुवटइ ए, होइ तुझ धननी हांण्य तो । नल दवदंती पंडवा ए, दूर्ति दूखीआं जाण्य तो ॥ ६९।। राजकथा नि स्त्रीकथा ए, देसकथा म म दाख्य तो । भगतिकथा नवि कीजीइ ए, तु मन वारी राख्य तो ॥ ७० ॥ पाप-उपदेस न दीजीए ए, देतां पूण्यनी हांण्य तो । खांडां कोश कटारडां ए, दीधई दूर्गती खाण्य तो ।। ७१ ॥ सुडी पाली पावडो ए, रांभो हल हथीआर तो । लोढी पइंणो काकसी ए, करइ जीवसंधार तो ॥ ७२ ॥ ऊषल मुसल रर्थ कह्या ए, पीलण पीसण जेह तो । जो हीत वंछड् आतमा ए, माग्या मापीश तेह तो ॥ ७३ ।। हीचोलइ नवि हीचीइ ए, जलि झीलि स्यु होय तो । पाप करंतां प्रांणीओ ए, मोक्ष न पोहोतो कोय तो ॥ ७४ ।। भिंसा घेटा बोकडा ए, कुरकुट नि मांजार तो । मलवढता नवि जोईइ ए, ए पेखि स्यु सार तो ।। ७५ ॥ चोर सतीनि बालतां ए, जोवानी सी खांत्य तो । ऊश। कर्म तीहां बांधीइ ए, तो वायु भगवंत्य तो ।। ७६ ॥ माटी कणह कपासीआ ए, नील फूलि जल जेह तो । काज विनां कां चांपीइ ए. हईइ वीचारो तेह तो ॥ ७७ ।। जल तक घी तेलनां ए, भाजन भावि ढंक्य तो । उघाडां नवि मुकीइ ए, जीन पडइ ज असंख्य तो ॥ ७८ ॥ सूडा सालि पोपटा ए, ते पंजर म म घात्य तो । बंधन सहुनि दोहेलु ए, किम जाइ दिनरात्य तो ॥७९॥
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
88
March-2002
माग्यु अग्यन न आपीइ ए, परजलतां बहु पाप तो । जीव वणसइ बहु भात्यना ए, जिम जिम लागइ ताप तो ॥ ८० ॥
दूहा० ॥ माग्यो अग्यन न आपीइ, अनि वली लोहो हथीआर । अनर्थडंड एम टलिइ, तो लहीइ भवपार ॥८१।। पांच अतीचार टालीइ, कंद्रप राग कुभाष । अधीकर्णा पाप ज वलि, भोगि बहु अभीलाष ||८२॥ ए व्रत भाष्यु आठमुं, नोमु सोय नीध्यान । सांमायक व्रत संभलो, जिम पांमो बहुमान ॥८३||
__ ढाल ७२ ॥ [देसी०] वंछीतपूर्ण मनोहरु० ॥ राग-शामेरी ।। व्रत सांमायक पालीइ, अनि पांच अतीचार टालीइ । गालिई कर्म कठण कई कालनां ए ॥ ८४ ॥ देह कनकनी कोडी ए, नही सांमायक जोडी ए । थोडीए पूण्यराश जगी तेहनी ए ।। ८५ ॥ सो सांमाइक लीधू ए, मन मइलु जे पणी कीधु ए । सीधु ए काज न एकु तेहरों ए || ८६ ।। सावदि वचन न न दाखीइ, शरीरादीक थीर करी राखीइ । भाखीइ पद कर पुंजी मुकीइ ए ।। ८७ ॥ सामाईक व्रत जे कां, अनि छती वेलाइं नवी ग्रह्यु । एम कडं लेई काचु कां पारिउं ए ॥८८॥ एक वीसारइ पारवं, ते नरनि अती वारवु । संभारवू पांच अतीचार परीहरो ए ॥ ८९ ॥
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
दूहा० ॥
पांच अतीचार परीहरो, सांमायक सही राख्य ।
थीर मन वचन काया करी, सावदी वचन में भाख्य ॥ ९०॥
च्यार सांमायक चीतवो, समकीत श्रुत वली जेह । देसवरती त्रीजु कहुं, सर्ववरती जगी जेह ॥९१॥
सांमायक व्रत पालतां, बहुं जन पाम्या मांन । परत्यग पेखो केशरी, लघु जेणइ केवलन्यान ॥ ९२ ॥
सागरदत संभारीइ, कांमदेव गुणवंत । सेठि सुदरसण वंदीइ, जेणइ राख्यु थीर च्यंत ॥९३॥
चंद्रव्रतंसुक राजीओ, सांमायक व्रत धार । चीत्र पोहोर थीर थई रघु, करि काओसग नीरधार ॥ ९४ ॥ सांमायक स्युध पालता, सही लीजइ तस नांम । व्रत दसमुं हवइ संभलु, जिम सीझइ सही कांम ॥ ९५ ॥
ढाल ७३ ॥ चोपई ||
देसावगाशग दसमु व्रत, जे पालइ तस देह पव्यत्र । लेई वरतनिं नवि खंडीइ, पाच अतीचार तिहा छंडीइ ॥ ९६ ॥
ऊतम कुलनो ए आचार, नीमी भोमिका नर नीरधार । तिहाथी वस्त अणावइ नही, आंहांथी नवि मोकलीइ तही ॥ ९७ ॥
रूप देखाडी पोतातणुं साद करइ अती त्राइ घणुं । नाखइ काकरो थाइ छतो, कां तु कुपि पडइ देखो ॥९८ ॥
दूहा० ॥ ऊंडइ कुपि ते पडइ, जे करता व्रतभंग ।
भवि भवि दूखीआ ते धमइ, दूलहो स्युधगुरु संग ॥९९॥
ए व्रत दसमु दाखीडं, कछु ते शाहास्त्रवीचार | हवइ व्रत सुणि अग्यारमुं, जिम पांमइ भवपार ||८०० ||
89
·
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
90
ढाल ७४ ॥ चोपई ॥ अग्यारमु व्रत तुं आराधि, सुधो मारग तुं पणि साधि । ओहोरतो पोसो कीजीइ, मुगतितणां फल तो लीजीइ ॥१॥ पोसो पूण्यतणो भंडार, परभवि जातां ए आद्धार । मनस्युधिं आराधइ जेह, अनंत सुख नर पांमइ तेह ||२||
पांच अतीचार एहना यलि, संथारानि भोमि संभालि । ठंडिल पडलेही वावरो, भवीजन लोको विधि आदरो || ३ ||
March-2002
प्रठवी ज्यांहां जइ मातरू, पहइलु द्रीष्टिं जोईइ खरू । 'अणजांणो जसगो' कही, प्रठवीइ जइणाई सही ||४||
वार त्रणि कहीइ वोशरे, नीसही आवसही मनि धरे । कालवेलां वांदीजइ देव, पोसानि एम कीजइ सेव ॥५॥ प्रथवी पांणी तेऊ वाय, संघट एहनो नवि कीजीइ, दिवसि न्यंद्रा कीधी घणी, अवधइ संथार्यु वलि जेह,
वनसपति छठी त्रसकाय । पोसानुं फल एम लीजीइ ॥ ६ ॥ संथारापोरश नवि भणी । मीछादूकड दिजइ तेह ॥७॥
पोषध वली असुर्यु करइ, पारी वहइलु घरि संचरइ । भोजननी वलि व्यंत्या करड़, कहइ तुझ काज केही परि सरइ ॥८॥
परबतिथिं पोसो नवि कीओ, मीछादूकड तेहनो दीओ ।
अंगि अतिचार कां तुम्यु [दिओ] पोतानो समझावो हिओ || ९ ||
दूहा० ॥ आप हईउं समझाविइ, कीजइ तत्त्ववीचार |
पोषध पूण्य किआ व्यनां, कहइ किम पांमीश पार ॥१०॥
ए व्रत सुणि अग्यारमुं वरत सकलमांहां सार । वली व्रत बोलुं बारमुं ऊत्तमनो आचार ॥११॥
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
91
ढाल ७५ ॥ देसी० वीजय करी धरि आवीआ० || राग-केदारो || बारमु व्रत एम पालीइ, दीजइ मुनीवर दांन । दान देई रे भोजन करइ, तस घरि नवई नवई नीध्यान ॥१२॥ अति[थि] संविभाग व्रत कीजीइ, दीजीइ जे मुनी हाथि । ते पणि आपणि लीजीइ, पूण्य होइ बहु भाति ॥१३॥ साध भलो अनि साधवी, श्रावक श्राव्यका सोय । शंघ सकलनि रे पोखतां, पदवि तीथंकर होय ॥१४॥ पाच अतीचार जे कह्या, ते टालु नरनार्य । आहार असुझतो आपतां, दोष का रे वीचार्य ॥१५॥ अणदेवा बुध्य कारणिं, आहार असुझतो कोध । भवि भवि दूखीओ ते भमइ, कर नवि ऊचो कीध ॥१६॥ आहार हुतो रे असुझतो, ते म म सुझतो सार्य । अंगि अतिचार आवसइ, पंडीत सोच वीचार्य ॥१७॥ वस्त हती रे पोतातणी, ते किम पारकी कीध । पारकी फेडी आपणी, भाषी मुनीवर दीध ॥१८॥
ढाल ७६ ॥ देसी० वीवाहलानी ॥ बीजो ऊधार जाणीइ० ए ढाल ।। वइहइरवा वेलां रे जव थई, तव जई खुणइ अपसइ । सलज वहु जिम वणिगनी, ते किम बाहइरि बइसइ ।।१९।। असुर करी आव्यु तेडवा, जव गयु आहारनो कालु । जे नर चरीत्र अस्यां करइ, तेहनि पाप वीसालु ॥२०॥ साधर्मीक वली आपणो, सीदातो पण्य जांणी । सारसंभाल जो नवि करी, तो तुझ सुमत्य लुटाणी ॥२१॥
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
92
March-2002
दीनऊधार ते नवि कीओ, सी ल्यष्यमी तुझ बार्यु । अतिऊडु धन घालतां, जाईश नर्ग मझार्य ॥२२॥ तन धन यौवन कार्यमुं, संचिं स्यु सूख होयु । दीधा दिन नवी पांमीइ, रीदअ वीचारीअ जोयु ॥२३।।
ढाल ७७ ॥ चोपई० ॥ पूण्य विनां नवि पांमइ कोय नर दीधांना फल तु जोय । एक नर बइसइ जो पालखी, एक ऊपाडी थाइ दूखी ॥ २४ ॥ एक नर हाथी हिंवर हार्य, एकनि नहीं एक छालुं बार्य । एक नरनि मंदीर मालीआं, एक झुपडीइं सो जालीआ ||२५|| एक नर नारी दीसइ घणी, एक नर नार्य विनां रेवणी । एक नर भोजन अमृत आहार, एक नर घइश तणो ज वीचार ॥२६|| एकनि पलंग पछेडी पाट, एकनि न मलि त्रुटी खाट । एक नर पहइरइ सालु वली, एक नरनि न मलइ कांबली ॥२७॥ एक नारी गलि मोतीहार, एकनि चीड नही नीरधार | दीधानां फल जोयु वली, सालिभद्र घरि संपद भली ॥२८॥ एक राजा एक मुली वहइ, दत्त वहुणा एम दूख सहइ । पगि दाझइ नि माथइ बलइ, रातिदिवश परमंदीर रलइ ॥२९॥
दहा० ॥ पूण्य विना परघरि रलइ, दत्त विनां दूख जोय । एम जांणी पूण्य आदरो, जिम घरि लछी होय ||३०|| संपइ सुख बहु पांमीइ, जो दीजइ नीत्य दांन । मुख्यथी मीठु बोलीइ, धरीइ जिनवर ध्यान ॥३१॥ ध्यान धरी भगवंतनुं, जीव सकल ऊगार्य । पोषध पूण्य प्रभावना, व्रत बारइ चीत धार्य ॥३२॥
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
बार वरत श्रावकतणां, मिं गायां मति सार । कवीको दोष म देखज्यु, हु छु मुढ गुमार ॥३३॥
आगइना कवी आगलि हुं नर सही अग्यनान । सायर आगलि व्यंदूओ, स्यु करसइ अभीमान ||३४||
मात तात जिम आगलि, बोलइ बालिक कोय । तेहमां साचु स्यु हसइ, पणि सांखेवु सोय ॥ ३५ ॥
भणतां गुणतां वाचतं, कवी जोयु वली दोष । नीरमल च्यंति चरचज्यो, दोष म देज्यु फोक ॥ ३६ ॥ हाल ७८ ॥ चोपई ॥
फोकट दोष म देज्यु कोय, नरनारी ते सुणयु सोय । कुड कलंकतणुं फल जोय, वसुमती ते वेशा होय ||३७||
शाहास्त्रइं पूर्ष कह्या छइ दोय, ऋषभ कहइ ते सुणज्यु सोय । एक हंस बीजो जल-जलु, जिम मशरु जोडि कांबलो ||३८||
हंस सरीखा जे नर होय, तेहना पग पूजो सहु कोय । ध्यन जनुनीइं ते जगी जण्यु, कवीजन लोके लेखइ गण्यु ॥ ३९ ॥
हंस दूध जलमाहाथी पीइ, नीर व्यदूओ मुख्य नवी दीइ । तिम सुपरष गुण काढी वहइ, पर अवगुण ते मुख्य नवि कहइ ॥४०॥
93
जलु सरीखा जे नर होय, तेहनुं नांम म लेस्यु कोय । सकललोकम्हां ते अवगण्यु, ऋषभ कहइ नर ते कां यण्यु ॥ ४१ ॥
जलुतणी छइ परगती असी, वंठु रगत पीइ ओहोलसी । सखरू लोही मुख्य नवी दीइ, तिम माठो नर गुण नवी लीइ ॥ ४२ ॥ जलुसरीखा जगम्हा जेह, अती अधमाधम कहीइ तेह | पर अवगुण मुख्य बोलइ सदा, गुण नवी भाषइ ते मुख्य कदा ||४३||
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
94
दूहा० ॥
गुण ग्यरुआ गुणवंतना, जे नवि बोलइ रंगि । परभवि दूखीआ ते थसइ, सरजइ दूबल अंग्य ||४४||
गुण गाइ गुणवंतना, ते सुखीआ संसार्य । परभवि सूरसूख भोगवर, जिहा बहु अपछर नार्य ॥ ४५ ॥
जो हीत वंछइ आतमा, तो परनंद्या टालि । मुख्यथी मीठु बोलीइ, भटक न दीजइ गालि ||४६ ||
सुगरूवचन संभारयु, करज्यु परउपगार । जईनधर्म आराधज्यु, व्रत वहइ ज्यु सिरि बार ||४७||
March-2002
ढाल ७९ ॥
राग - मेवाडो ||
देसी० मेगल मातो रे वनमाहिं वसइ० ॥ बार वरतनि रे जे नर सि[र वहइ] [तस] घरि जइजइ रे कार । मनह मनोर्थ ते वली तस फलइ, मंदिर मंगल च्यार || ४८ ॥ [ बार वरतनि] रे जे नर सिर वहइ । आचली० ॥ भणतां गुणतां रे संपइ सुख मलइ पोहोचइ [मनि त]णी आस । हिंवर हाथी रे पायक पालखी, लहीइ ऊच आवास । ४९ ।। बार वरतनिं० ॥
सुंदर घर्णी रे दीसइ सोभती, बहइनी बांधव जोड्य । बालिक दीसइ रे रमता बारणइ, कुटंबतणी कई कोड्य ||५०॥ बा० ॥ ग्यवरी मइहइषी रे दीसइ दूझतां, सुरतरु फलीओ रे बार्य । सकल पदारथ मुझ घरि मिं लह्या, थिर थई लछी रे नार्य ॥ ५१ ॥ बा० ॥
मनह मनोर्थ माहारइ जे हतो, ते फलिओ सही आज । श्रीजिनधर्मनिं पास पसाओलइ, मुझ सीधां सही काज ॥५२॥ बा० ॥
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
95
दूहा० ॥ काज सकल सीधां सही, करतां वरत-वीचार । श्रीगुरुनांम पसाओलइ, मुझ फलीओ सहइकार ॥५३॥
ढाल ८० ॥ देसी० कहइणी कर्णी०॥ राग-ध्यन्यासी ॥ मूझ अंगणि सहइकार ज फलीओ, श्रीगुरुनांम पसाइजी । जे रषि मुनीवरमां अतीमोटो, वीजइसेनसुरिरायजी ॥५४|| मुझ अंगणि सहिकार ज फलीओ, श्रीगुरुचर्ण पसाइजी आचली० ॥ जेणइ अकबरनृपतणी शभामां, जीत्यु वाद वीचारीजी । शईव शन्यासी पंडीत पोढा, सोय गया त्याहा हारीजी ॥५५॥ मूझ. ॥ जइजइकार हुओ जिनशाशन, सुरीनाम सवाई जी । शाही अकबर मुष्य ए थाप्यु, तो जगमाहि वडाई जी ।।५६।।मूझ०|| तास पटि ऊग्यु एक दीनकर, सीलवंतम्हां सुरोजी । वीजयदेवसुरी नाम कहावइ, गुण छत्रेसे पुरो जी १५७|| मूझ० ।। तपातणो जेणइ गर्छ अजुआलु, लुघवइम्हां सोभागी जी । जस सिरि गुम् एहेवो जइवंतो, पूण्यराश तस जागी जी ॥ ५८ ।। मूझ० ॥
ढाल ८१ ॥ देसी० हीच्य रे हीच्य रे हईइ हीडोलडो० ॥ राग-ध्यन्यासी० ॥ पूण्य प्रगट भयु पूण्य प्रगट भयु तो मन्य मुझ मत्य एह आवी ! रास रंगिं कर्यु सकल भव हुँ तर्यु पूण्यनी कोठडी मूझह फावी ॥५९॥ पूण्य प्रगट भयु २ ॥ आंचली० ॥ सोल संवच्छरि जाणि वर्ष छासठि, कातीअवदि दिपकदाढो । रास तव नीपनो आगमि ऊपनो, सोय सुणतां तुम पूण्य गाढो ॥६०॥
पूण्य० ॥
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
96
दीप जबुअ माहा खेत्र भरतिं भलु दे [स गुजरा ] तिम्हा सोय गास्यु | राय वीसल दडो च्यतुर जे चावडो, नगर विसल [ तिणइ वेगि] वास्यु ॥ ६१ ॥ पूण्य० ॥ सोय नगरिं वस प्रागवंसि वडो, मइहइराजनो सूत ते [सीह ] सरीखो । तेह बावतिनगरवाशिं रघु, नांम तस संघवी सांगण देखो ॥ ६२ ॥
पूण्य० ॥
March-2002
एहनिं नंदनि ऋषभदासि कव्यु, नगर त्रंबावतीमाहिं गायु । पूण्य पूर्ण भयु काज सषरो थयु, सकल पदार्थ सार पा ||६३ ||
पूण्य प्रगट भयु० २ ॥
अती श्रीवरतवीचाररास संपूर्ण ॥
संवत १६७९ वर्ष चईत्र वदि १३ गुरुवारे लषीतं ॥ संघवी ऋषभदास सांगण० ॥ गाथा० || ८६२ ( ३ ) ||
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ
कडी क्रमांक
*
* 5
الله هبة الله
6
ง *
له
यम
*
ه
*
ه م
*
له
वतविचाररास - शब्दकोश चरण शब्द क्रमांक साद्ध
साधु विसायांहा विश्वा-वसा सार्द
शारदा मुर्यख मूर्ख-मूरख मुख्य मुखे-मुखमां
जिम सहइकारो
सहकारो-आंबो लंक
वळांक-मरोड पनडु
पान-पांदडु बइहइरखा बेहेरखा-बेरखा-बाजुबंध जासु
जासुल-जासुद उंगल
अंगुलि गुजा
गुंजा-चणोठी शमइ
सम दाम्यनी दामिनी-विजली कीर्नी कीरनी-पोपटनी अधुर
अधर डाडिम-कुलि दाडम-कली हीडोलड्यो हीडोलो नगोदर कंठाभरण-कंठो वाशग
वासुकीनाग राखडी मस्तक- आभूषण २ षीटली कर्णाभरण-कुंडल
م
له
* *
م
س
*
*
ب
*
سه
له
* *
له
م
*
م
س
* * :
مر
२५
له
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
98
March-2002
स्युक भखी ताय अंद्री आलुअणी वीनो वयावछा०
३४
३४
पात्यग
o
0
४१
४१
Gmmoc wwcc wwar mal moc docornu wwwcc
एकच्यंत युगि सोमप्रगति करूरद्रीष्ट दारव्यण मध्यशरवर्ती लभधिलखी धर्यो अतीसहइ अरीआ
३
शुक भक्ष्य त्याग इंद्रिय आलोयणा-प्रायश्चित्त विनय वैयावच्चा० पातक एकचित्त योगे सौम्यप्रकृति क्रूरदृष्टिए दाक्षिण्य मध्यस्थवृत्ति लब्धलक्ष्य धरजो अतिशय अरिहा-तीर्थकर मयगल-हाथी उपभोग अविरतिने पोहेचइ-पहोंचे सहजना पर्षदा योजनगामिनी ईति-उपद्रव इंद्रध्वज
५७
३
मेगल
अवभोगाइ अवर्तीनिं पोहइचई सहइजना परखधा जोयणगाम्यणी
ur
६२
अंद्रधज
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
99
G
६४
अशोक (वृक्ष) अधोमुख
६४ ६४ ६५
९ १०
वृक्ष
अस्योख अधोमुख्य विर्ष कुअलु रत्ती च्यंति अंद्र व्यनां
कुमलो-कोमल ऋतु चित्ते
se mom ० ०
थीवर
भ्रमव्रत क्यरीआ
त्रविधि
ucc w mmcc c or www mom
पइहइराव्य सधहता नखेपा मईथन लोढी नषेधो सुमति रखि गुपति रइहइस्यु स्युभकणिना बुद्ध कोहोर्नु शाहास्त्रनो प्रशन-रीदई लहइशइ
विना स्थविर ब्रह्मव्रत किरिया-क्रिया त्रिविधे (मन-वचन-कायथी) पेहेराव-(पहेरामणी कर) सद्दहता-श्रद्धा करता निक्षेपा मैथुन लघुशंका निषेधो समिति-रक्षा गुप्ति रेहेस्यु-रही| शुभकरणीनां बुद्धिए कोईन-कोनुं शास्त्रनो प्रसन्नहृदय लहेशे
१०२ १०३ १०३३ १०४ १०८
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
100
१०९
१०९
११७
१२०
१२४
१२५
१२५
१२६
१२६
१२७
१२७
१२८
१२८
१३१
१३७
१४१
१४२
१४४
१४५
१४५
१४५
१४९
१५०
१५४
१५५
१५६
१५६
ध्यन
पगारा
अस्युच
वइहलो
परीसइ
परीसा
परीसइ
चार्ज
रख्यजी
ख्यध्या
माधवसूत
त्रीषा
रषि
पूत्र - चलाची
अंग्यन वीनां
जायनानो
ऊशभ
युगो
वर्ण
सइहइसइ
दइहसइ
अग्यनांन
कोटल लाखि
सष्य
शरि अग्यन
रषि श्रीशकोसी
त्यणि
धन
प्राकार-किल्ला
अशुचि
वहेलो -वहेलो
परीषह
परीषह
परीषह वडे
चारित्र
ऋषिजी
क्षुधा
कामदेव
तृषा
ऋषि-मुनि
चिलातीपुत्र
अग्नि विना
याचनानो
अशुभ
योगो
March-2002
तृण
सेहेसे - सहन करशे
देहसे - दहशे - बाळशे
अज्ञान
लाख कौटिल्ये
शिष्य
शिरे अग्नि
ऋषि श्रीसुकोशल
तणी
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान - १९
१६०
१६२
१६२
१६२
१६३
१६३
१६६
१६९
१७०
१७२
१७४
१७५
१७६
१७६
१७६
१७६
१७६
१७६
१७७
१७७
१८०
१८१
१८३
१८४
१८४
१८६
१८६
२
घर्णी
मन्य
श्रीषा
दांन अदिता
कर्णसीत्यरी
चर्णसीत्यरी
आग्यना
भष्य
शरइ
स्युकीत
कुप्य
आलि
टीबडीब
आक
षांब
षासर
सीप
क्यरपी
क्रोध
सकार
पुर्ष
जगसंघा
ख्यन
अतबंग
लंग
ईव
सरजाडसइ
घरणी - घरवाली (शियालण)
मनमां
मृषा-असत्य
अदत्तादान- चोरी
करणसित्तरी
चरण सित्तरी
आज्ञा
भक्ष्य
शिरे
सुकृत
कुपि - कूवामां
जूठा
टबकुं- टपकुं
आकडो- अर्क
खाबोचिया
खासडुं
छीप
कृपण
क्रोध
श्रीकार - भलीवार
पुरुष
जग-संहारण
क्षण
अडबंग
लिंग
शैव
सर्जन करशे
101
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
102
March-2002
संघारइ भ्रम
»
१८६४ १९३३
संहारे ब्रह्म प्रिया (सीता)
سه
धणि
०२
ع
. मुंजराजा
ع
अहल्या
मुज अइअहीला अन पइहइलो नर्य
ع
अन्न पेहेलो
ه
س
१९८१
مر
गुर्ड
२०१
مر
कबीरदति
२०२
जग्यह
»
به
२०६२ २०६३ २०७१
سه
مر
२११
ه
२१२४
ه
२१३
له
२ ३ ३
.
नरके गरुड कुबेरदत्ते यज्ञ अस्त मोकलां-स्वच्छंद लोहशिला भवअरण्यमां पातक-पाप नवि खाण- (४ गतिमां) शाने . वृत्तिकांतार सव्वसमाहिवत्तिया० वच्चे माधुं होंकायु एटलानी गति-गत नित्यकरणी हृदयमां आवश्यक चउवीसत्थव (लोगस्स)
२१६ २१६ २१९ २२० २२२१ २२२३ २२२६ २२३३ २२४२ २२४३ २२५
سه x
x مر
असत मोक्यलां लोहशला भवअर्णम्हां पांत नव्य खाण्य स्याहानि वतीकंता वतीआ० वची मथो हवकार्यु इतानी गई नित्यकर्णी रीदइम्हा आवशग चोवीसहथो
س
م
له
له
سه
له
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
103
१ ४
ه
२२९ २३१ . २३३ २३४ । २३५ २३६१
१
مر
مر
د
२३९ २४१
مر
مر
२४६ २४८ २५३ २५४
ه
ه
२५५
ه
२५७
س
माहारकंड रष्य मार्कंड ऋषि ग्रीही० गृही-गृहस्थ० वईदकशाहासत्रि वैदकशास्त्रमा विमन
वमन नर्णइ
नरणे अर्णभोमि अरण्यभूमिए अवरती
अविरति ओहोलाश
उल्लास घ्यर्त
घृत-घी पूसतग
पुस्तक श्रावि
श्राविका क्यरपीनिं मन्य कृपणने मन वशवानर वैश्वानर-अग्नि ल्यष्यमी लक्ष्मी सुपत
सुपात्र हिंवर
हयवर-घोडा ओटइ
ओटे-ओटले
ओलख प्रतलाभीओ प्रतिलाभ्यो-दान आप्युं (मुनिने) नहइसार
नयसार कीर्तथी
कीर्ति (दान)थी छाहार
राख ध्यरत-व्यहणो धुत-विनानो वेणा गलइ
गले ष्यायक
क्षायिक षइ
क्षय
२५९
مر
२६६
مر
२६६
س
س
ओलग
مر
२६६ २६८ २६८ २६९ २७२ २७२
د له
م
س
२७३
वीणा
ه
ه
२७४४ २७६३ २७७
س
له
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
104
March-2002
سه
یه
२९३
له
م
सीवगांम्यु
و
२९८८ २९९२ ३०२
له
ठुकराई
مر
३०२
ه
ه
مر
३०४ ३०७ ३०७ ३०९ ३१०
ه
कारण
به
سه
३११
सधइणां व्यन सद्दहणा विण इस्युभ
अशुभ महइला
महिला कार्य कारणे
शिव-गामे (मोक्षे)
ठकुराई-ऐश्वर्य अफराटा विपरीत-अलगां पापपूर्मा पापपुर (नगर)मां ल्याहालो अंगारा (?) राजप्रष्णी रायपसेणीसूत्र कार्ण चार्ण
चारण अष्यर
अक्षर (शास्त्रवचन) नों
निरखो चमरेदो मर्ण चमरेन्द्र मरण हंशा
हिंसा मोहोपोत मुखवस्त्रिका उंहुनु
उनु-गरम तादुं अन यदुं-ठंडं अन्न (रसोई) वइहइराव व्होरावे कुर्णावंत करुणावंत मुद्रा नाणुं-सिक्को वस्त वोहोरेवा वस्तु लेवा कडको कडछो, लाकडु के तेवी
कोई चीज के थपाट (?) यतीयन कलपनो (स्थविर)यतिजन कल्पनो . मुन्यना मुनिना
ر
به
سه
مر
به
३१२ ३१३ ३१५ ३१७ ३१७ ३१७ ३२१ ३२६
به
لله
س
مر
الله
به
لي
३२७
مه
له
३३८ ३३५
به
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
105
३३८
उतकष्टो
،
३४०१
مر
दूपसो
३४५
उत्कृष्ट दुप्पसहसूरि बिंबप्रतिष्ठा संदेह शंकाशल्य
ه
३५०
बंबपत्रिष्ठा संधेह शंकाशल बहुध
२
م
34E
बौद्ध
مه
३५६
به
यंगम
३५६
س
३५६
ه
३५८
س
३६१
مر
जंगम (परिव्राजक) त्रिदंडी इंद्रजालीआ करणी भवे भवे विचिकित्सा विश्वोपकारक निंदा कटोरी-प्याली प्रकृति-स्वभाव
३६२
مر
مر
३६७
ه
३६८
س
३७०
له
३७५
سه
क्षण
त्रडंड अंद्रजालीआ कर्ण भव्य भव्य वतीगंछा वीस्वप्रकार नंद्या कोचोली प्रगती ष्यण्य० कंडीड वणी तुबाजाली वेणोजंत्र घांइंजा रुबडी गहिवर चंदनजमला परीचो यगनाथ
३७६
ر
३८२
له
३८६
سه
३८७
له
करंडिये वळी (?) तुंबडं-नदी तरवार्नु वीणायंत्र हजाम हजामर्नु कोई उपकरण गजवर
३८८
به
३८८
سه
३९२
يه
له
,३९४ ३९६ ३९८४
سه
परिचय जगनाथ
»
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
March-2002
106 ३९९ ४०२
ا مير
४०२
४०७
مر
४११
به
धोंसर
الله
به
مر
३
४११४ ४१२१ ४२० ४२०३ ४२२१ ४२२३ ४२३१
سه
م
سه
ر
४२३
سه
४२३
سه
कर्म वालादीक कृमि, वाळो आदि वधा
वृद्धा (स्त्री) अनुवर
जोडीदा/सोबती (?)
धूंसरुं प्रठवइ नाखे संयुगी संयोगी परेयाँ प्रेयाँ म्होल
महेल अतिजाजर अतिजर्जरित बाओल
बावल ताति
तप्ति-बलतरा (पंचात) ख्यत्री
क्षत्रिय मंकड मांकडं-वानर आल
अटकचाळो
गुह्य-गुप्त वात राअंगणि राजाना आंगणे आराम
बगीचो दूत
द्यूत वेश्या
आखेट-शिकार संयुगिं (मसालो)मेळवेल कगरु
कुगुरु वछ
वछेरो/वाछरडो सीही सिंहण कुपर खबोलि सुपर खलोपइ विवाद्यु
विवादो
४२४
गुंझ
ه
ه
ه
ه
م
वेशा
४२५ ४२६ ४२६ ४२७ ४२७ ४२८ ४३०१ ४३४ ४३४
له
आहेडो
له
مر
مر
له
४३५
م
له
४३५ ४३८४
»
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
107
४३९
१
४३९
له
४४१४
»
مر
४४५
مر
२ २
م
ل
४४५ ४४५ ४४६ ४४७ ४४८ ४४९ ४४९
لہ
सेना
لہ
पोलु
६
४५०
له
له
तुर्णी
तरुणी व्रीध्यस्यु
वृद्ध साथे मेहर मसो
मच्छर गंगा नि यम नाडि ईडा ने पिंगला नाडि ग्यरुओ
गिरुओ पलवाडि वाहो
वाह-अश्व (?) टालि
टाल (माथानी) शेन
पोल-प्रवेशद्वार अनो
अन्न पाहणो
महेमान षट वेद
छ चार-दश संझेर्णठामि वलोणांना स्थाने (?) सारवणि
सावरणी (?) श्रीमानसीत श्री महानिशीथ (सूत्र) झालक
झापटवानी क्रिया टेंपो
(भीनु)गल' दबाववानी क्रिया संखारो
गलणामां जमा थयेल क्षार समोअण
ठंडं पाणी युन्य .
योनिओ परहंसा
पर-जीव तरस
स संवर
साबर पराची0 पुराजित-पूर्वे अर्जेला कातडी
कातर/करवत
سه
४५४२ ४५७ ४६०३ ४६८ ४६६१ ४६६ ४६८१
سه
مر
مر
به
م
४७०
مه
४७१
سه له
४७२
مر
४७४ . ४७७
مر
४८२ ४८३
१ २
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
108
March-2002
४८६
مر
४८९
تم
साणसा थकी हृदयमां गाय धन्य धन्य
४९९
مر
»
سه
५०० ५०४ ५०७ ५१२
مه
साढसइ रोदि ग्यवरी ध्यन ध्यन सह्या कुर्णा अकाई लेअण लोढो सहइजिं कांकस्यु
سه
५१४
م
५१५
س
करुणा खोटी रीते/खोटुं करीने लेणुं (?) गोलो (मांसनो लोचो) सहेजे वाल ओलवानुं साधन तडकामां अज्ञ (?) आगळ (?)
م
५२०
سه
ر
तावडी
५२० ५२१ ५२५ ५३१ ५३७
ه
अग्य
जिगन
यज्ञ
ه
३
ه
س
गृहिणी पटोले ढळे/ पडे बकरी सहसात्कारे पराया
५४१
له سه
घर्णी पटोलइ लुढइ बकेरी सहइसाकारि पीआरा मोष्य पायको उपकंठ
५४९
प4.
م
५६०
मोक्ष
له
२ ३
वार्य
५६४ ५६५ ५६५ ५६७ ५६९ ५७०
• धन (?) (जलाशयना)कांठे वारि-पाणी कान पाडा गधेडा विष-झेर
ه
'कंन भंसा खर
س
२
विष्य
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
109
४
५७० ५७१४ ५७४
दिण। ऊवटवाट
देवं-देणुं रझळपाट (?)
x
or
संवल
भातुं
५७७
m
m
५८२ ५८४
छबदि सेष सूररथाना खीरो
m
५८५
in
30
झोटु
or
५८६ ५९१ ५९१ ५९८ ५९८
r
मइहइला कलग विटल
or
शेषनाग सूर्यरथना क्षीरसागर जुवान भेंश महिला-पत्नी कलंक स्वच्छंद-विट विह्वल काजे जमदग्नि(ऋषि)ने योगे शोणित शुक्र (वीर्य) मनुष्य
in
वीवल
or
m
or
६१३ ६१७ ६१७ ६१९
काय जमदगधनिं युगि श्रुणी स्युक मुनीष
in
m
m
६२०
वरला
or
or
m
६३४ ६३४ ६३७ ६४१५ ६४७ ६५२ ६५७
वशला वेढी परगति वस्यवांनर दोहो दश शरीओ मणिरेहा द्रीष्टराग
विशल्या वढवाड-लडवाड प्रकृति-टेव वैश्वानर दश दिशाए श्रीयक मदनरेखा दृष्टिराग
5
or n
r
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
March-2002
ال
३ ९१ ९३
६५ ६५ ६५ ६६७ ६७१ ६७३ ६७३
विप्रजाश विहीवा तीवर उहोलसी क्रोणी स्युत्र शाम्यनी
विपर्यास विधवा तीव्र उल्लसी कोणिक सूत्र (?)
ه
ه
م
له
६७९
बर्द
»
६८२
له
له
م
६९५
१
६७८
टेक । ख्याति गहन द्विपद-बेपगां ढीलुं (?) जलमार्ग विदिशा दिशानुं द्रव्य (खाद्य पदार्थ) वाहन
م
७००
م
७०४
ه
७०८
م
७०९
م
७०९
व्यक्त
ه
७०९
ه
गहइन दूपद अल्लीदु जलिवटि वदश दशर्नु द्रवि वाहाणइ वगति सुअण वलेप नांहाण अचीत सचीत प्रतबध उपक-दूपक अग्यनकर्म शल्यां असुर्यु
७०९
م
७१०
له
७१२
له
७१२
سه
शय्या . विलेपन स्नान अचित्त-निर्जीव सचित-सजीव प्रतिबद्ध (युक्त) अपक्व-दुष्पक्व अग्निकर्म सडेलां मोडु-सूर्यास्तसमये
س
له له
مر
७१२ ७१३ ७१४३ ७१५
ہ
مر
७१६
مر
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुसंधान-१९
111
مه
अभक्ष्य
ت
७१७ ७१९ ७२० ७२२२ ७२२ ७२८
ه له
२
ه له
७३८
७४३
م
अभ्यष्य अभिष्य आपोपुं पति पूर्वय चलीतरस खाय अखाय वइहइल्यु गाडावाही भोमिफोड आगरि हेलावतां पापोपगर्ण वागरी वाघछालि
अभक्ष्य आपआप पत-वट पूर्वज विकृतरसवातुं खाज अखाज वहेल-वेलहूं गाडु वहेवार्नु धरती फोडवी खाण हीणो देखाडतां पापोपकरण जाल वेचनार/वाघरी व्याघ्रचर्मे
م
س
مه
७४४ ७८५ ७८९ ७५३ ७५६ ७६४
سه له سه
७६८
ر
७६९
مه
ওও
له
भोजनकथा परोणो
७७२
سه
७७३
هر
रथ
७७५
سه
७८२
له
७८७
م
भगतिकथा पईणो रर्थ मलवढता अधीकर्णां सावदि परत्यग ओहोरतो प्रठवीइ मातरु जाणा
७९२
له له
लडाई करतां अधिकरण (पापसाधन) सावध-सपाप प्रत्यक्ष अहोरात्र परठव-नाखवू लघुशंका (पेशाब) यतना
८०४
مر
८०४
مر
८०४
به
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________ 112 March-2002 805 اس स्पर्श 806 निद्रा مر 806 س अविधिथी 806 س संघट न्यंद्रा अवधइ संथार्यु असुर्यु असुझतो बुध्य सूतु 807 مر 818 لسه ر 816 مر सुझतो मोडो अशुद्ध-दोषित बुद्धि शुद्ध-निर्दोष लज्जाशील बारणे/घरे बोकडो (?) 819 819 3 ه 822 825 ه सलज बायु छालु चीड दत्तवहुणा व्यंदुओ 828 ه दानविहोणा 2 3 3 बिंदु 829 838 838 8414 842 8511 860 जलु यण्यु ه 3 जलो जण्यु-पेदा कर्यु चोक्लु महिषी-भेंस दीवाली-दहाडो सखरु मइहइषी दिपकदाढो مر به