________________ March 2002 ढाल ५०(४९)मां बीजा 'मृषावाद-विरमण'नामना अणुव्रतनो अधिकार छे, तेमां पांच मोटां जूठनो आ व्रत लेनार माटे सदंतर निषेध कह्यो छे. ते उपरांत जूलु बोलवानां नुकसान तथा सत्य बोलनाराना सदृष्टांत अवदातनुं पण रोचक वर्णन थयुं छे. ढाल ५१(५०)मां आ व्रतना पांच अतिचारो तथा तेने टाळवानो उपदेश अपायो छे. ढाल ५२(५१)मां त्रीजा 'अदत्तादान-विरमण' अणुव्रतनो संबंध छे. चोरी के, महापाप छे, अने ते करवाथी केवी हानि थाय तेनुं वर्णन आमां मळे छे. चोरी द्वारा मेळवेला धनथी अत्यारे भले लहेर वर्तती होय, पण कालांतरे-भवांतरे पाडो के गधेडो थईने तेनुं देणुं चूकवq ज पडशे (दूहा-क्र.५६९) ते वात वेधक शब्दोमां कविए मूकी आपी छे. कवित (५७१)मां देवादारनी स्थिति केवी माठी थाय तेनं बयान सुभाषितछप्पारूपे आप्युं छे, ढाल ५३(५२)मां त्रीजा व्रतना पांच अतिचारो समजावेल अने हवे आवे छे चोथा व्रतनी वात. ढाल ५४(५३)मां चतुर्थ अणुव्रत 'स्वदारा-संतोष-परस्त्रीगमन-विरमण व्रत'नो महान महिमा कविए गायो छे. आ ब्रह्मचर्य व्रत छे. तेना पालनना लाभ अपार छे. ढाल ५५(५४)मां केवा केवा महान गणाता लोको पण आ व्रत चूकीने परनारीमा तथा विषयवासनामां अटवाया तेनी वात घणा विस्तारथी वर्णवाई छे. एज वातने फरीथी 4 कडीओ (चौपईओ)मां 'समस्या' नामक काव्यप्रकारमा पण कही छे. ढाल 55, 57(56), 57 मां शीलनो महिमा गायो छे अने शीलवंत महात्माओनां नामो तथा गुणगान गायां छे. ढाल ५८मां आ व्रतना पांच अतिचारो समजाव्या छे. ___ ढाल ५९मां पांचमा 'परिग्रहपरिमाण' नामे अणुव्रतनुं स्वरूप छे. परिग्रह केवो अनर्थकारी छे ते, अने लोभवश थईने परिग्रह-काजे केवा केवा लोको केवां भयंकर काम करी गया तेनां दृष्टांतो वर्णवायां छे. पछी आवे छे समस्याकाव्य. तेमां परिग्रह भेगो करनारा पण छेवटे तो बधुं छोडीने चाल्या ज जाय छे ते वात पर भार मूकी परिग्रहनी व्यर्थता बतावी छे. ढाल 60 तथा ६१मां एवी महान विभूतिओनां नाम गणाव्यां छे के तेमना जेवाने पण आखरे तो परिग्रह पड्यो मूकीने जर्बु ज पड्युं छे. अर्थात् आवा महान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org