________________ अनुसंधान-१९ फल देवा समर्थ नहि बने" (कडी 324) एव प्रतिपक्षनी दलीलनो छेद एवा ज धारदार तर्क वडे उडाडतां कवि कहे छे के "सरकारी नाणांनो सिक्को निर्जीव होवा छतां ते देखाडीए के आपीए तो धारी वस्तु फलरूपे मेळवी शकाय छे, जे बतावे छे के जड पदार्थ पण सर्वदा निष्फल नथी होतो" (क्र.३२७). आवी अन्य दलीलो पण रसप्रद छे. ढाल २९(२८)मां "आजे साधु नथी, अथवा छे ते शुद्ध-निर्दोष नथी" एवो मत अने तेनुं निराकरण छे. ढाल ३०(२९)मां मुहपत्तिनो त्याग करनार (प्राय: तो आंचलिको)नो, चोथने त्यजी पांचमना पजूषण तथा चौदशने त्यजी पूनमनी पाखी करनारा मतनो, षट्कल्याणकवादी (खरतरो)ना मतनो उल्लेख थयो छे, अने जरा कडक बानीमां ते मतोना कविए लीधेला ऊधडा पण वांचवा मळे छे. ढाल ३५(३४)मां अयोग्यनी संगतिथी थती हानिनां घणां उदाहरणो आप्यां छे, अने ए द्वारा मिथ्यासंगनो परिहार करवानुं सूचव्युं छे. ढाल ३६(३५)मा पहेला अणुव्रत 'स्थूल प्राणातिपात-विरमण व्रत'नुं स्वरूप शरु थाय छे. तेनो प्रधान सूर जीवदयानो छे. दया विना, दुर्लभ आ मानवजन्म हारी जवानी दहेशत बतावीने कवि प्रसंगत: दश दृष्टांतो ते अंगेनां विगते वर्णवे छे. ढाल ३७(३६)मां दयारहित धर्मनी अनेक वस्तुओ साथे तुलना करीने ते बघांनी जेम दयाविहीन धर्मनो पण त्याग करवानुं कवि कही दे छे. ढाल ३८-४१(३७-४०)मां पण विविध प्रकारथी दयाधर्मनो ज महिमा गवायो छे. ढाल ४२(४१)मां गृहस्थे दयापालन अर्थे बांधवाना दश चंदरवानी विगत आपी छे. ढाल ४३(४२)मां पाणी गळवानो विधि दर्शाव्यो छे, एमां गलणांनुं माप पण वर्णवेल छे. ढाल ४५-४९(४४-४८)मां, जीवहिंसा करनारा मनुष्योनी रीत, तेमने मळनारां कटु फल प्रत्ये ध्यानाकर्षण अने हिंसा नहि करवानी शीख, दया पाळीने मेघकुमार बनेला हाथीनी कथा, हिंसानां फल पामनार मृगापुत्र लोढियानो प्रसंग, अने रोजिंदा जीवन-व्यवहारमां आवनारा हिंसाना अवसरो तरफ ध्यान दोरी ने तेथी बचवानो उपदेश - आ बधी वातो थई छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org