________________ 41 अनुसंधान-१९ ज्ञान अनंत तणो जिन धणी, समोवसरणि ठुकराई घणी / चामर छत्र सीघासण सोहि, जस रिधि पार न पांमइ कोय // 99 / / ते जिनवर मुख्य वांणी कही, शास्वती जिनप्रतिमा सही / सर्ग-नर्ग नि मोक्ष ते छती, अस्यु वचन भाषइ माहामती // 300|| एह वचन जेणई नवी सदा, मुढमती तेणइ कांई नवि लऔं / नीसचइ समकीत तेहनुं गयुं, मीछादुकड दइ तो रह्यं // 1 // जिनथी जे ऊफराटा थयां, सो नर केता नरगिं गया ! कुमततणइ जे रोगि ग्रह्या, पाप पूर्मा ते नर वह्यां / / 2 / / जाणीनई ऊथापइ जेह, अनंत दूख नर पांमइ तेह / भोगवतां नवि आवइ छेह, सुख किम पांमइ तेहनी देह // 3 // एक दरसणम्हां पाड्यु भेद, तेणइ ऊथाप्या जिनना वेद / विरवचन हईइ नवि धर्यु, समकीत बाली ल्याहालो कर्यु // 4 // जिनवयणांनि करइ असार, आप वचन थापइ नीरधार / मति मती दीसइ ए आचार, कहो पथी (छी?) किम पांमइ पार / / 5 / / एक जिनप्रतिमा साथि द्वेष, मुनीवरना ऊथाप्या वेष / योग ऊपधान नषेधइ माल, पडइ नीगोदि अनंतो काल ||6|| राजप्रष्णी ते न जुइ सुत्र, तो ताहारु किम रहइ घरसुत्र / सुरीआभ देवि पूजा करी, कोण कार्ण कहइ तिं परहरी // 7 // द्रुपदीनो वली जो अदीकार, छठि अंगि सोय वीचार / नमोथणुं जिनभुवनि कह्यु, कुमत रोगीइ नवी सदयुं // 8 // सुत्र सीधांत पेखो भगवती, जंघा-विद्या चार्ण यती / नंदिस्वर मेर परबति जाय, जिनप्रतिमाना वंदइ पाय / / 9 / / वंदी पाय नि पाछा फरइ, अही जिनप्रतिमा वंदन करइ / ए अष्यर मांनि ते सुखी, नवी मांनी ते थासइ दूखी // 10 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org