________________ 42 March-2002 जिनप्रतिमा जिनसी कही, सुत्र ऊवाई नर्षो सही / अंबडनो वली जो अधीकार, अनि देव गुरु नही नीरधार // 11 // पंचम अंगि ए अधीकार, वणि सर्ण माहिल्यु एक सार // अरीहंत चईत साधनुं सर्ण, करि न लहइ चमरेदो मर्ण // 12 / / तव तस मतनो बोल्यु मर्म, दया विनां नवी दीसइ धर्म / जिन पूजंतां हंशा होय, पार्पि मोक्ष न पोहोता कोय // 13 / / सुविहित कहि मति ताहारी गई, नदी ऊतरवि जिनवरि कही / कुंण कार्णि कहइ ति सदही, बोली दया ताहारी किम रही // 14|| मोहोपोत पडीलेहइ जेह, जीव असंख्या हणतो तेह / तोहइ भलो जिन भाषइ तास, वण पडिलेहेणि दूरगति वास // 15 // एक घरि बइठो वंदन करइ, एक गुरुनि साहामो संचरइ / अदिक लाभ तु तेहनि कहइ, दया धर्म ताहारो किम रहइ // 16 // युगल पूर्षनुं सर्खा मन, एक उंहुनुं एक ताढु अन / मुनीवरनि वइहइरावइ दोय, कहइ फल अदीकुं कहिनि होय // 17 // जो फल होयि सीतल धणी, तो पूजा सही मि अवगुणी / उष्ण आहार दीधई फल होय, तो प्रतिमा मांनो सहु कोय // 18 // ऊहुंना आहारतणो अवदात, नर शंगमनि सूणजे वात / चीत वीत नि म्यलीउं पात्र, सालिभद्र सकोमल गात्र // 19 // कोएक जंत जलमांहि पड्यु, माहापूर्षनी द्रीष्टि चढ्यु / कइ काढइ के मरवा दीइ, वेगो बोली विमासी हईइ // 20 // जलि बुडंतो काढइ जेह, जिव अशंख्या हणतो तेह / तोहइ ते पणिं कुर्णावंत, अस्यु वचन भाषइ भगवंत // 21 // अणगल पांणी जे नर पीइ, कुगतिपंथ ते नीसइ लीइ / गलतां गलनु भीजइ जसि, जिव असंख्या वणसइ तसिं // 22 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org