________________ 45 अनुसंधान-१९ चऊदश पाखी परहरी, पून्यमस्यु बहु रंग रे / / कुमति पड्या नर केटला, नवि पेखइ श्रीसुगडांग रे // 43 / / श्रीअनु०।। चऊदश पाखी चीतवो, पेखो पाखीसुत्र रे / कलपसुत्रम्हां एहनो, आप्यु छइ तुझ ऊत्र रे // 44 // श्रीअ०।। अदिकमास नवी मांनीइ, मल महीनो तस नाम रे / बंबपत्रीष्ठा मुनीतणां, दिन दूजइ होइ काम रे // 45 // श्री०॥ वलतो वादी बोलीओ, एणइ मास अछइ पूण्य पाप रे / सकल काज नर कोजीइ, करो मुरिख कां उथाप रे // 46 // श्री०। सुविहीत कहइ तुं साभले, म करीश आप संताप रे / नीतकर्णी तो कीजीइ, दांन सील तप आप रे // 47 // श्री अनु० // पूर्ष नपुसक तेहथी, चालइ घरनुं सुत्र रे / सकल काज नर ते करइ, कहइ किम होसइ पूत्र रे // 48 // श्री०॥ श्रावण चोमासु तु करइ, आलुइ चोमास रे / एक मास तुझ किहा गयु, बोले जो मति खास रे // 49 // श्री०॥ [चोथि पजुसण तिं तज्यु, पांचम्यस्यु बहु प्रेम रे / पडीकमणइ छठि आवतां, कहइ किम होसइ खेम रे // श्री०॥] पंचकल्याणिक वीरना, म धरो मनि संधेह रे / / मुढ मति षट थापता, कुपि पडइ नर तेह रे // 50 // श्री०॥ सुधु शमकीत राखीइ, जिनवचनां परिमाण रे / / श्रेणिकराय संभारीइ, सिर वही जिनवर आणि रे // 51 // श्री०॥ दहा० // शंकाशल नवि राखीइ, राखि बहु दूख होय / आकंखा मनि आंणसइ, मुढमति-गि-य(?) // 52 / / 1. आ कडी कर्ताए ज बे वार लखी छे. तेथी अहीं यथावत् राखी छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org