________________ 46 March-2002 ढाल 31 / (30) // देसी० काज सीधां सकल हवइ सार || राग-शामेरी // आकंखा जे मनी आणइ, अनि-दरसण सोय वखाणइ / जिनवचनां नि नवि जाणइ, विषधर मंदि[]म्हां आणइ // 53 / / भ्रह्मा विस्ण महेश वीशाल, खेतल गोगो नि आसपाल / पात्रदेव्या नि गोत्रदीवी, फल एक न आपि सेवी // 54 // रोग कष्ट थकी म म कंपो, उमया मुख्य ईस म जंपो / नवी मांनो नि नवी पूजो, जो जिनवचनां नि बुझो // 55 // बहुध, सांख्य, अनि संन्यासी, जोगी यंगम नि मठवासी / जे शईव त्रडंड वेस, अंद्रजालीआ नि दरवेस 56 // एहनुं कष्ट घणेलं जांणि, मनमाहि सधइणा आंणी / वली त्याहां तुझ मति पस्ताणी, दीजइ मीछादूकड जांणी // 57 // एहेनुं शाहास्त्र सुणीअ वखांण्यु, सुधु मन साथि जाण्यु / कीधु मीथ्यातीनु कर्ण, तेणइ दुर्गति नारी परणी // 58 // तेणइ सुधगति नारी ठेली, जेणइ जईन तणी मति मेहेली / स्युभ क्यरणि ते तस खेली, करमि मत्य कीधी मइली // 59 / घरबारि कुआनि नीरिं, सायर--जल नदीअनि तीरि / द्रहइ वाव्य सरोवर कंठि, पूण्य हेति सीस म छ(छ?)टि // 60 // एम भव्य भव्य भमतां भंगि, आकंखा आंणी अंगिं / दिओ मीछादूकड रंगिं, देव गुरु जिन प्रतिमा संगि // 61 // ढाल 32 (31) चोपई // परजीओ राग // वतीगंछा ते त्रीजो सही, धर्मतणां फल होइ के नही / एहेवी मत्य जस आवी सही, स्युभकर्णी तस चाली वही // 62 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org