________________ अनुसंधान-१९ 59 एक नर क्रोधी अतीघj, नर जलमांहई बोलइ रे, रोलइ रे, तेणई आप जीवनिं भव घणा ए // 84 // एक नर अग्यन लग(गा)डता, नर पसुअनइ बालइ रे, टालइ रे, स्युभस्याता तेणइ वेगली ए // 85 // एक नर नरनि साढसइ, वली चुटता दीसइ रे, पीसइ रे, दंत घj ऊपरि रह्या ए // 86|| जिन कहइ ते किम छुटसइ, गति च्यारेमा भमता रे, गमता रे, काल अनंतो अती दूष्यि ए // 87 // दूहा० // अतीदूखीआ दूरगती भमइ, साते नरगे वास / जीव हणइ नर जे वली, सुख किम होइ तास ||88 // ढाल 46 / (45) // देसी० प्रणमी तुम सीमंधरुजी // जीवतणो वध जे करइ जी, ते नवी जाणइ रे धर्म / पांचइ अंद्री पोषवा जी, करतो घोर कुकर्म // 89 / / सुप्रांणी, रीदि वीचारी रे जोय; जिनवचने आलुयजे जी / हंशा-धर्म न होय, सुप्रांणी, रोदइ वीचारी रे जोय ॥आंचली०।। रसनानि रश वाहीओ जी, कर्ता आमिष आहार / वीषमइ पंथि चालतां जी, एकलडो नीरधार // 90 // सुप्रांणी० // जेणी वांटि नही वांणीआ जी, नगर नीरूपम हाट / सांथि नही को सारथी जी, कहइ कुंण कहइसइ वाट // 91 / / सुप्रांणी० // हंशा करतां सोहेली जी, मुयख सांभली वात / ऊतर देता दोहेलु जी, म करीश प्रांणीघात // 92 / / सुप्रांणी० // जलचर थलचर पंखीआ जी, तेहनी करतो रे घात / ते पालव जव झालसइ जी, तव होसइ संताप // 93 // सुणो०(सुप्रांणी) / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org