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________________ 67 अनुसंधान-१९ तो किम आपण लिजीइ, पर केरुं वली धन । परभवि देवू तेहनि, सुणज्यु जस रि कंन ॥६७॥ परधन लेतां सोहेलु, भोगवतां दूख होय । जो जांणो तो चेतयु, छल म म रमयु कोय ॥६८।। परधन लेई एक नरा, करता अमृत आहार । परभवि भंसा पर थई, सिर वहइसइ बहु भार ।।६९।। सालि दालि प्रत घोलथी, विष्य पिद्ध ते खास । पणि परधन नवि लीजीइ, दिण तणो जगि दास ॥७०॥ कवीत ॥ दिणतणो जगि दास, वास पणि दिणइं मुकइ दिणइ देह ज खोय, दिणथी भोजन चुकइ । दिणइ दीन मुख होय, दिणथी दीसइ दूखीओ दिणइ ऊवटवाट, दिणथी सुइ न सुखीओ ॥ दिणइ कीरति पंगलि नर्गगति नीसइ कही । नीच युनि अवतार, छूटइ पसु पीठिं वही ॥७१।। दूहा० ॥ पीठि वहीनि छुटसइ, परवश तेहनि देह । ते भोगवतां दोहेलुं, जिहा दूखनो नही छेह ॥७२॥ ढाल ५३ । (५२)॥ देसी० दइ दइ दरीसण आपणुं० ।। पंच अतिचार एहना, जिन कहि सो पणि टलि रे । वस्त म वोहोरीश चोरनी, तुं मन त्यांहथी वाल्य रे ॥७३।। चीत चोखं नीत राखीइ, राखि बहु सुख होय रे । मन मइलइ दूख पांमीओ, द्रमक भीखारी जोय रे । चीत चोखं नीत राखीइ || आचली० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229324
Book TitleVrat Vichar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size999 KB
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