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संवल कहो किम दीजीइ, चोर तणइ वलि हाथि रे । पापी पोष वधारतां, दूख लहीइ बहु भाति रे ||७४ || चीत चोखु० ||
भेल संभेल न कीजइ, नवी पुराणी मांहई रे ।
परभवि बहु दूख पांमीइ, कोण सखाई त्याहिं रे ||७५ || चीत० ॥
March-2002
राजविरुध न कीजीइ, कीधइ किम सुख होय रे ।
वीष पीधि किम जिविइ, रीदइ वीचारी जोय रे ॥ ७६ ॥ चीत० ॥
कुडां तोल न कीजीइ, ओछां अदिकां माप रे । छल छबर्दि धन मेलता, लागइ पोढुंअ पाप रे ||७७|| चीत० ||
मातपीता नवि वंचीइ, बांधव भगनी पूत्र रे I गांठ जुई नवी कीजीइ, एम रहइ छइ घरसुत्र
रे
दूहा० ॥ सुत्र संभालि राखीइ, वचन वडानुं मांन्य । व्रत चोथुं हवइ संभलो, जे जगी मुगट समान्य ॥ ७९ ॥
॥७८॥ चीत० ॥
मृगकुलम्हां यम केशरी, वाहन मांहि तुरंग । तिम व्रतमां ब्रह्मव्रत वडुं, क्यमेह न कीजइ भंग ॥८०॥ ढाल ५४ ॥ ( ५३ ) ॥
देसी० वासपूय जिन पूण्यप्रकाशो० ॥ राग असावरी ॥ तीर्थमाहा यम श्रीसेतुंजो, सुरपति मांहां जिम अंद्र | मंत्रमांहि जिम श्रीनवकार, गहइगणमांहा जिम चंद्र ॥ ८१ ॥ जल सघलामां जलधर मोटो, पंखीमांहां जिम हंसो । सर्पयोन्यमां सेष ज बलीओ, कुलमांहां ऋषभावंसो ॥८२॥
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परबतम्हा जिम मेर वखाणुं, ठाकुरमांहा जिम रामो । हनु वांनरकुलम्हां अतीबलीओ, कीधां वसमां कांभो ||८३ || कुजरम्हां अहीरावण मोटो, गढम्हा लंकां कोटो | सूररथाना अस्व जबलीआ, भमता देता डोये ॥८४॥
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