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________________ 88 March-2002 माग्यु अग्यन न आपीइ ए, परजलतां बहु पाप तो । जीव वणसइ बहु भात्यना ए, जिम जिम लागइ ताप तो ॥ ८० ॥ दूहा० ॥ माग्यो अग्यन न आपीइ, अनि वली लोहो हथीआर । अनर्थडंड एम टलिइ, तो लहीइ भवपार ॥८१।। पांच अतीचार टालीइ, कंद्रप राग कुभाष । अधीकर्णा पाप ज वलि, भोगि बहु अभीलाष ||८२॥ ए व्रत भाष्यु आठमुं, नोमु सोय नीध्यान । सांमायक व्रत संभलो, जिम पांमो बहुमान ॥८३|| __ ढाल ७२ ॥ [देसी०] वंछीतपूर्ण मनोहरु० ॥ राग-शामेरी ।। व्रत सांमायक पालीइ, अनि पांच अतीचार टालीइ । गालिई कर्म कठण कई कालनां ए ॥ ८४ ॥ देह कनकनी कोडी ए, नही सांमायक जोडी ए । थोडीए पूण्यराश जगी तेहनी ए ।। ८५ ॥ सो सांमाइक लीधू ए, मन मइलु जे पणी कीधु ए । सीधु ए काज न एकु तेहरों ए || ८६ ।। सावदि वचन न न दाखीइ, शरीरादीक थीर करी राखीइ । भाखीइ पद कर पुंजी मुकीइ ए ।। ८७ ॥ सामाईक व्रत जे कां, अनि छती वेलाइं नवी ग्रह्यु । एम कडं लेई काचु कां पारिउं ए ॥८८॥ एक वीसारइ पारवं, ते नरनि अती वारवु । संभारवू पांच अतीचार परीहरो ए ॥ ८९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229324
Book TitleVrat Vichar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size999 KB
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