________________ 52 March-2002 रयण घणा घ(घ)टिं दली जी, पंच वर्णनां रे पेख्य / मेरशखरि ढगलो करइ जी, ऊडइ वायु वसेष्य // 17 // सु०॥ दश द्रष्टाति दोहेलो जी, मानवनो भवं जांण्य / जीवदया ते कीजीइ जी, बोल्यु वेद पूराण्य // 18 // सु० // दहा० // धर्म दया विन तु तजे, ऊठिं नागरवेलि / / भामरइ जिम चंपक तयु, पीछ तज्यां जिम ढेलि // 19 // ढाल 37 (36) चोपई // तजे नगर जिहा वइरी घणां, तजे वाद जिहा नही आपणा / तजे म्होल जे अतिजाजर, तजइ नेह विनां दीकिरा // 20 // तजिइ रूठो राजा वली, तजिइ परगती अती आकली / तजिइ पापी केरो शंग, तजिइ जाति कुजाति तुरंग // 21 // तजीइ बाओल केरी छांहि, तजीइ वासो विषधर यांहि / तजीइ परघर केरी ताति, तजीइ भोजन भखर्बु राति // 22 // तजीइ कायर ख्यत्री जाम, न करइ ठाकुर केरुं काम / तजिइ मंकड साथि आल, तजीइ परनि देवी गाल / / 23 / / तजीइ मोटा सांथिं जुझ, तजीइ मुरिख साथिं गुंझ / तजिइ वणज मधु जे मीण, तजीइ धर्म दया जे हीण // 24 // तजीइ चोमासइ चालवू, तजीइ राअंगणि माहालq / तजीइ साधसंघाति द्वेष, तजीइ संगति नीच वसेष // 25 // रणि-अंगणिना तजीइ ठाम, तजीइ नीर विनां आराम / तजीइ सात वसन संसारि, दूत मंश नि मदिरा वारि // 26 / / तजीइ वेशा केरुं बार, तजीइ आहेडो नीरधार / तजिइ चोरी केरो रंग, तजीइ परदारानो शंग // 27 / / तजिइ भोजन जिहां नही मांन, तजिइ विण संयुगि पनि / तजिइ कंठ विहुणुं गांन, तजीइ पाप कर्मनुं ध्यान // 28 // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org