________________ अनुसंधान-१९ [40] ढाल० // [6] // देसी० अंबरपूरथी तिवरी० ॥राग-गोडी।। अतीसहइ चोतीस जिनतणा, प्रथमइ रूप अपारो / रोगरहीत तन नीरमलुं, चंपकगंध सुसारो // त्रुटक० // सार चंपक तन सुगंधी, भमर भंगि तिहां भमइ / सास नि ऊसास सुंदर कमलगंधो मुख्य रमइ // रुधीर मंश गोखीर-धारा, अद्रीष्ट आहार नीहार रे / सहइजना ए च्यार अतीसइ, कर्म-घाति अग्यार रे ||6|| समोवसणि बार परखधा, योयनमांहिं समायु रे / वाणी जोयनगाम्यणी, बूझइ सूर-नररायो / राय बुझ[इ]रवि सरीखु, भामंडल पूठिं सही / जोअण सवासो लग पलाई, रोग नीसचइ ते...(?) || सकल वइर पणि विलइ जाइ, सातइ ईत समंत रे / मारि (म)रगी नही, अना(वृष्टी) अतीव्रीष्टी नवी हंत रे // 62 // अनवृष्टी नही जिन थकई, दुर्भाग्य नहीअ लगारो रे / [निजच]क परचक्र भइ नही, ए गुण जुओ अग्यारो // अग्यार गुण ए केवल पांमि, सुर कीआ ओगणीस रे / धर्मचक आकाश चालइ, चामर दो नशदीस रे // रत्नसीघासण पादपीठह. छत्र वणि सही सीस रे / अंद्रधज आकाश ऊचो, जुओ जिनह जगीस रे // 63 / / परमेस्वर पग जिहा ठवइ, कमल धरइ नव खेवो / रूप-कनक-मणि-रत्नमइ, तीन रचइ गढ देवो // देव गढ त्रणि रचइ रंगि, समोसर्ण्य चोरूप रे / अस्योख तरु तलि वीर बइसइ, जुओ जिनह सरूप रे / / त्रु० त्रु० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org