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March-2002
स्युक भखी ताय अंद्री आलुअणी वीनो वयावछा०
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एकच्यंत युगि सोमप्रगति करूरद्रीष्ट दारव्यण मध्यशरवर्ती लभधिलखी धर्यो अतीसहइ अरीआ
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शुक भक्ष्य त्याग इंद्रिय आलोयणा-प्रायश्चित्त विनय वैयावच्चा० पातक एकचित्त योगे सौम्यप्रकृति क्रूरदृष्टिए दाक्षिण्य मध्यस्थवृत्ति लब्धलक्ष्य धरजो अतिशय अरिहा-तीर्थकर मयगल-हाथी उपभोग अविरतिने पोहेचइ-पहोंचे सहजना पर्षदा योजनगामिनी ईति-उपद्रव इंद्रध्वज
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अवभोगाइ अवर्तीनिं पोहइचई सहइजना परखधा जोयणगाम्यणी
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अंद्रधज
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