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________________ March-2002 धर्मक्रिया छे, जेमां श्रावक महदंशे साधुतुल्य जीवन जीवे छे. पौषधमां करवानी करणी अंगेना विधि-निषेधो तथा ते व्रतना पांच अतिचार आमां बताव्या छे. ढाल ७५मां बारमा ‘अतिथिसंविभाग' नामना शिक्षाव्रतनुं स्वरूप आलेखायुं छे. पौषधोपवास करनारो श्रावक साधु आदिकने दान दीधा विना भोजन न करे-एवी आ व्रत लेनारानी प्रतिज्ञा होय. साथे ज व्रतना पांच अतिचारो पण कही दीधा छे. ढाल ७६मां सुपात्रदान, सार्मिकभक्ति, दीनोना उद्धार वगेरे कार्यो, मळेला धन थकी, करवानो उपदेश अपायो छे. ढाल ७७मां दानादि वडे पुण्य करनार अने न करनार मनुष्योनी सुख-दुःखादि स्थितिनो तफावत समजाव्यो छे, जे खूब मनन करवा लायक छे. अने हवे कवि उपसंहार करवा भणी वळे छे. ७३३मी कडी (दूहो) थी ते शरु थाय छे. कवि कहे छे के में बार व्रत गायां तेमां क्यांय भूल रही होय तो ते माटे कविने-मने दोष न आपशो; केम के हुं तो छु ज मूढ अने गमार ! में तो माता-पिता समक्ष बालक बोले ते प्रकारे अहीं मनमां ऊग्युं ते बोली दीधुं छे. सांखी लेजो अने भूल होय तो सुधारजो. आ पछी, ढाल ७८मां कवि गुणदेखा अने दोषदेखा एम बे जातना पुरुषोनं स्वरूप जरा निरांते वर्णवे छे, अने पछीना दहाओमा दोषदर्शीने दुःख अने गुणदर्शीने सुख-एवो निष्कर्ष पण आपी दे छे. ढाल ७९मां कवि, बार व्रत लेनार अने पाळनारने केवां श्रेष्ठ सुख सांपडे छे तेनुं लोभामणुं वर्णन करे छे, अने छेल्ले कडी ८५२मां जिनधर्म अने पास एटले पार्श्वनाथना पसायथी पोतानां सर्व कार्य सिद्ध थयां होवानो परितोष कवि दर्शावे छे. ढाल ८०मां कवि पोताना धर्मगुरु विजयसेनसूरि महाराजनो तथा तेमना विशिष्ट प्रभावनो उल्लेख करीने, अकबर बादशाह द्वारा तेमने 'सवाई'नुं बिरुद मळेलु ते ऐतिहासिक घटनानो निर्देश करे छे. तेमना शिष्य विजयदेवसूरिनो नामोल्लेख वगेरे करीने कवि एम सूचवे छे के अमना धर्मसाम्राज्यमां आ रास पोते रच्यो छे. ढाल ८१मां कवि 'कलश' समान गीत गाय छे. तेमां 1666 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229324
Book TitleVrat Vichar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size999 KB
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