________________ March-2002 राखता थीर मन वचन काया, सीतादिक-परिसो सहइ, माँत ऊपसर्ग सो खमता, कर्म ईधण एम दहइ / गुण सतावीस एह सुधा, मुनी अस्यु आराधीइ अस्या गुरुना चर्ण सेवी कवी कहइ नीर्मल थईइ // 64|| दहा० / / नीर्मल आतम जेहनो, नीर्मल जस आचार / मुनी एहो(ह)वो आराधीइ, तो लहीइ भवपार // 65|| धर्म कह्यो जे केवली, ते मोरइ मनि सति / दयामुल आग्यना भली, सहु सेवो एक चति // 66 // ढाल 17 (16) चोपई० // कुदेव कुगुर कुधर्म वीचार, ए त्रणे तु जाण्य असार / . हरि हर विप्रा मीथ्या धर्म, ए तु छंडे समझी मर्म // 67 / / जे देखीनि सूरो भडइ, कायरतणा त्याहा प्रांण ज पडइ / ते वाहालु वलि जेहनि होय, सोय देव म म मांनो कोय // 68 // ऊमया वाहननु भष्य जेह, ऊत्तम लोके छंड्यु तेह / ते भोजन भखवा नि करइ, सो सेव्यु तुझ स्यु ऊधरइ // 69 / / जे जई बइठं ऊचइ शरइ, एकइ जाति आठइ मरइ / तेहनी ईछ्या करतो देव, स्यु कीजइ जगी तेहनी सेव // 70|| कांमी नर जस जोतो फरइ, मुनीवर तेहनिं नवी आदरइ / असी वस्त साथि जस रंग, ते देवानो म करो संग // 71 // जेणइ आवि नर रातो थाय, स्युकीत कर्यु ते सघलु जाय / सोय वस्त दीसइ जे कनि, ते देवा स्यु तारइ तनि / / 72 / / मूगट जयम्हा राखइ गंग, छानो तेहस्यु करतो संग / ईस देवनुं अस्यु सरूप, देखत कोय म पडस्यु कुप // 73|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org