________________ 34 March-2002 मुरिख मांने सोय वण हवकार्यु बोलइ मूरिखमांहिं मुढ एब आपणी खोलइ // मूरिखमंडण मांनीइ उंघइ कुपि-कंठि ऊभो रही / कवी ऋषभ एणि परि ऊचरइ अकल इतानी गई // 22 // दहा० // अकल भली जगि तेहनी, करता पूण्य वीचार / नित्यकर्णी नीशचइ करइ, ऊतमनो आचार // 23 // ढाल 23 (22) चोपई // प्रहि ऊठी पडीकमणुं करइ, अरीहंतनांम रीदइम्हा धरइ / छइ आवशग नीत्य सही साचवइ, प्रेम करी जिनशासन स्तवइ // 24|| सामाईक निं जे वांदणुं, देई पातिग धोईइ आपणु / काओस्छर्ग चोवीसहथो जेह, पडीकमणुं पछखांणइ तेह // 25 // ए षट् आवशग केरां नाम, मंन स्युधिं कीजइ अभीरांम / तो घट आतम नीरमल थाय, पूर्व पाप ते सघलां जाय // 26 // दिन परति सही दो पचखांण, नोकारसी जावोजीव प्रमाण / संझ्यासमइ करवो चोवीहार, नीशाशमइ नवी लेवो आहार // 27 // रात्रीभोजन किहा नवि का, वेद-पुराणि किहां नवी लऔं / आगम गीता जोयु जई, नीशभोजन तिहा वायु सही // 28 // माहारकंड रष्य मुख्यथी सुण्डे, रांति जल पीवं अवगुण्युं / रातिआ युध किहां नवी होय, नीशाशमइ नवि नाहइ कोय // 29 / / देवपूजा राति पणि नही, दान पूण्य पणि वायु तही / सूरय साख्य विनां नही पूण्य, मन व्यहुणी जिम क्यरीआ सुन्य / / 30|| नीशाशमइ जिम ए नवी भजो, तिम भोजन जाणीनिं तजो / ऊग्यामाहां भोजन एक वार, ग्रीहीधर्मनो ए आचार // 31 // . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org