________________ 35 अनुसंधान-१९ राजवईद मुख्य एहेवु कहइ, नीशभोजनथी बहु दूख लहइ / ऊदरिं कोडी जो पणि जाय, आ भव परभव मूर्यख थाय // 32 / / ऊदर जुअतणो संयोग, तोह जलंधर वाधइ रोग / करोलिआथी वली कोढी थाय, वईदकशाहासत्रि ए कहइवाय // 33 / / माखी विमन करावइ नेठि, परवेदन ऊपजावइ पेटि / ते माटि तु आप विचार्य, सात ठामि जल पीवु वार्य // 34 // नर्णइ कोठइ नीर न पीइ, सिर नाही मुख्य जल नवि दीइ / भोजन अंतिं नीर नीवार्य, नीशाशमइ जल पीवं वार्य // 35 / / भोग भजी जल पीवं नही. ऊभा रही नवी बोल्यु कही / अर्णभोमि जई जल पीइं, अंगि रोग घणा ते लीइ // 36 // राति जल पीधि बइ दोष, एक रोगी निं पातीग पोष / अनेक दोष दीसइ वली यांहि, पडइ पतंगी दीवामांहि // 37 / / अनेक जीवनी हंशा थाय, नीशभोजन पातिग कहइवाय / . जंत न दीसइ द्रीष्टिं कोय, जीव भखंतां पातिग होय // 38 // ते माटइ करवो चोवीहार, अगड़ आखडी ते जगी सार / अवरती ना रहीइ कदा, जिनवर भगति करीजइ सदा // 39 / / श्रीजिनप्रतिमा आगलि रही, दिन पति नीत्य जोहारो सही / चईतवंदण ते हरखि करो, प्रमाद पहइलो ती परीहरो // 40 // साध चारत्रीआ वांदो सदा, वांद्या व्यणइ नवि रहीइ कदा / गुण सताविस जेहनि पाश, ते मुनीवर वंदो ओहोलाश // 41 // नित सुणीइ गुरुनु वाख्यांन, भोजनवेलां दीजइ दांन / पूण्यतणि नित्य कर्णी करो, दूर्गति पडता जीव ऊधरो // 42 / / नवपद आदि देई सझाय, पूण्य करंतां सुखीओ थाय / श्रीदेवगुरुना जे गुण गाय, ते नर वइहइलो मुगति जाय // 43|| Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org