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________________ 78 March-2002 ढाल ६१ ॥ देसी० नवरंग वइरागी लाल० ॥ राग-हुसेनी ॥ ऋषभ अजीत संभव जिना, अभिनंदन जगी जेह । रीध्य रमणी सुख सो वली, नर छंडी चाल्या तेह रे ॥८३|| धन छंडइ ते जगी सार, विण मुकिं न लहइ पार रे, धन छंडि ते जगी सार० आचली० ॥ सुमतिनाथ जिन पंचमो, जस घरि रिधि अपार । पद्मप्रभ धन ते तजी, जेणइ लिद्धो संयम भार रे ।।८४॥ धन छं० ॥ सुपारस जिनेस्वर सातमो, कनक तणी घरि कोड्य चंद्रप्रभ सुवधी जिना, ऋध्य चाल्या ते जगि छोड्य रे ॥८५।। धन० ।। सीतलजिन श्रेअंस निं, वासपूज्य जिनराय, चंपानगरीनो धणी, धन छंडी मुनीवर थाय रे ॥८६॥ धन० ॥ क्यंपलपूरनो राजीओ, विमलनाथ जिनदेव, अनंत धर्म अरीहा वली, रीध्य छंडइ सो ततखेव रे ॥८७|| धन छंडइ० ॥ सांतिनाथ जिन सोलमो, कुथनाथ अरनाथ, मलिदेव मीथलां तजी, भाई ए जगम्हां वीख्यात रे ॥८८॥ धन० ॥ मुनीसुव्रत जिन वीसमो राजग्रहीनो राय, नमीनाथ नेमीस्वरु जगि, सुर जेहना गुण गाय रे ॥८९॥ धन० ॥ पास जिनेस्वर पूजीइ, वरधमांन जिन जोय, दोय वरस आग्रहइ रह्यु, नरसीह समो जगि सोय रे ॥९०॥ धन० ॥ दुहा० ॥ धन कण कंचन काम्यनी परीग्रहइ भाति अनेक । पाच अतिचार परोहरो, मुरछा म करो रेख ॥९१। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.229324
Book TitleVrat Vichar Ras
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size999 KB
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