________________
अनुसंधान - १९
बार वरत श्रावकतणां, मिं गायां मति सार । कवीको दोष म देखज्यु, हु छु मुढ गुमार ॥३३॥
आगइना कवी आगलि हुं नर सही अग्यनान । सायर आगलि व्यंदूओ, स्यु करसइ अभीमान ||३४||
मात तात जिम आगलि, बोलइ बालिक कोय । तेहमां साचु स्यु हसइ, पणि सांखेवु सोय ॥ ३५ ॥
भणतां गुणतां वाचतं, कवी जोयु वली दोष । नीरमल च्यंति चरचज्यो, दोष म देज्यु फोक ॥ ३६ ॥ हाल ७८ ॥ चोपई ॥
फोकट दोष म देज्यु कोय, नरनारी ते सुणयु सोय । कुड कलंकतणुं फल जोय, वसुमती ते वेशा होय ||३७||
शाहास्त्रइं पूर्ष कह्या छइ दोय, ऋषभ कहइ ते सुणज्यु सोय । एक हंस बीजो जल-जलु, जिम मशरु जोडि कांबलो ||३८||
हंस सरीखा जे नर होय, तेहना पग पूजो सहु कोय । ध्यन जनुनीइं ते जगी जण्यु, कवीजन लोके लेखइ गण्यु ॥ ३९ ॥
हंस दूध जलमाहाथी पीइ, नीर व्यदूओ मुख्य नवी दीइ । तिम सुपरष गुण काढी वहइ, पर अवगुण ते मुख्य नवि कहइ ॥४०॥
93
जलु सरीखा जे नर होय, तेहनुं नांम म लेस्यु कोय । सकललोकम्हां ते अवगण्यु, ऋषभ कहइ नर ते कां यण्यु ॥ ४१ ॥
जलुतणी छइ परगती असी, वंठु रगत पीइ ओहोलसी । सखरू लोही मुख्य नवी दीइ, तिम माठो नर गुण नवी लीइ ॥ ४२ ॥ जलुसरीखा जगम्हा जेह, अती अधमाधम कहीइ तेह | पर अवगुण मुख्य बोलइ सदा, गुण नवी भाषइ ते मुख्य कदा ||४३||
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org