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सुगर कहइ संभारीइ, सीलवंतनां नाम ।
ऋषभ कहइ नर ते भला, जेणइ जगी जीत्यु कांम ॥ २१ ॥
शमशा० ॥ गोरधुपूत कहीजड़ जेह, ता वाहन भष्य कहीइ तेह | तास भष्यन नांम जे कहइ, तेहनुं वाहन जे जगी लहइ ||२२||
March-2002
तेह वाहालुं स्यु वली होय, उतपति तास वीचारी जोय । ता वाहन भष्य केरो तात, तस बंधन रीपू जग वीख्यात ||२३||
तेहना बांध्या जे जगी लहइ, तास तणो स्वामी कुण कहइ । तेनुं वाहन अतिबलवंत, तेणइ आंण्यु जगी जेहनो अंत ||२४||
तेहनि बंधी जे वश करइ, ते वहइलो मुगतिं संचरि (इ) | जन्म मर्ण जरा नही यांहि, अनंत सुख नर पांमइ त्याहि ||२५||
दूहा० ॥ संपइ सुख बहु पांमीइ, जो वश कीजइ कांम | सीलवंत जगी जेहवा, लीजइ तेहनां नांम ॥ २६ ॥
ढाल० ॥ चोपई ॥ (५५) ॥ शीलवंतनुं लीजइ नांम, तो मनवंछीत सीझइ कांम । सीलवंतना पूजो पाय, रीध्य व्रीध्य सुखशाता थाय ||२७|| सीलतणो जगी महीमा घणो, जग सघलो थाइ आपणो । सुर नर कीनर दानव देव, सीलवंतनी सारइ सेव ॥ २८ ॥ सीलवंत संग्रांमि चडइ, ते कोंण नर जे सांहामो लडइ । नावइ सुरो साहामो धस्यो, सीलवंतनो महीमा अस्यु ||२९||
सीलवंतना पगनुं नीर, तेणइ लेई छाटो आप शरीर । सकल रोगनो खइ जिम थाय, कष्ट कोढ कली नाहाठो जाय ||३०||
सती सुभद्रानी सुणि वात, जेहनो जग जाणइ अवदात ! कुपि चालणि तांतणि तोलि, काढी नीर ऊघाडी पोलि ॥ ३१ ॥
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