Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 89
________________ अनुसंधान - १९ दूहा० ॥ पांच अतीचार परीहरो, सांमायक सही राख्य । थीर मन वचन काया करी, सावदी वचन में भाख्य ॥ ९०॥ च्यार सांमायक चीतवो, समकीत श्रुत वली जेह । देसवरती त्रीजु कहुं, सर्ववरती जगी जेह ॥९१॥ सांमायक व्रत पालतां, बहुं जन पाम्या मांन । परत्यग पेखो केशरी, लघु जेणइ केवलन्यान ॥ ९२ ॥ सागरदत संभारीइ, कांमदेव गुणवंत । सेठि सुदरसण वंदीइ, जेणइ राख्यु थीर च्यंत ॥९३॥ चंद्रव्रतंसुक राजीओ, सांमायक व्रत धार । चीत्र पोहोर थीर थई रघु, करि काओसग नीरधार ॥ ९४ ॥ सांमायक स्युध पालता, सही लीजइ तस नांम । व्रत दसमुं हवइ संभलु, जिम सीझइ सही कांम ॥ ९५ ॥ ढाल ७३ ॥ चोपई || देसावगाशग दसमु व्रत, जे पालइ तस देह पव्यत्र । लेई वरतनिं नवि खंडीइ, पाच अतीचार तिहा छंडीइ ॥ ९६ ॥ ऊतम कुलनो ए आचार, नीमी भोमिका नर नीरधार । तिहाथी वस्त अणावइ नही, आंहांथी नवि मोकलीइ तही ॥ ९७ ॥ रूप देखाडी पोतातणुं साद करइ अती त्राइ घणुं । नाखइ काकरो थाइ छतो, कां तु कुपि पडइ देखो ॥९८ ॥ दूहा० ॥ ऊंडइ कुपि ते पडइ, जे करता व्रतभंग । भवि भवि दूखीआ ते धमइ, दूलहो स्युधगुरु संग ॥९९॥ ए व्रत दसमु दाखीडं, कछु ते शाहास्त्रवीचार | हवइ व्रत सुणि अग्यारमुं, जिम पांमइ भवपार ||८०० || Jain Education International 89 For Private & Personal Use Only · www.jainelibrary.org

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