Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 92
________________ 92 March-2002 दीनऊधार ते नवि कीओ, सी ल्यष्यमी तुझ बार्यु । अतिऊडु धन घालतां, जाईश नर्ग मझार्य ॥२२॥ तन धन यौवन कार्यमुं, संचिं स्यु सूख होयु । दीधा दिन नवी पांमीइ, रीदअ वीचारीअ जोयु ॥२३।। ढाल ७७ ॥ चोपई० ॥ पूण्य विनां नवि पांमइ कोय नर दीधांना फल तु जोय । एक नर बइसइ जो पालखी, एक ऊपाडी थाइ दूखी ॥ २४ ॥ एक नर हाथी हिंवर हार्य, एकनि नहीं एक छालुं बार्य । एक नरनि मंदीर मालीआं, एक झुपडीइं सो जालीआ ||२५|| एक नर नारी दीसइ घणी, एक नर नार्य विनां रेवणी । एक नर भोजन अमृत आहार, एक नर घइश तणो ज वीचार ॥२६|| एकनि पलंग पछेडी पाट, एकनि न मलि त्रुटी खाट । एक नर पहइरइ सालु वली, एक नरनि न मलइ कांबली ॥२७॥ एक नारी गलि मोतीहार, एकनि चीड नही नीरधार | दीधानां फल जोयु वली, सालिभद्र घरि संपद भली ॥२८॥ एक राजा एक मुली वहइ, दत्त वहुणा एम दूख सहइ । पगि दाझइ नि माथइ बलइ, रातिदिवश परमंदीर रलइ ॥२९॥ दहा० ॥ पूण्य विना परघरि रलइ, दत्त विनां दूख जोय । एम जांणी पूण्य आदरो, जिम घरि लछी होय ||३०|| संपइ सुख बहु पांमीइ, जो दीजइ नीत्य दांन । मुख्यथी मीठु बोलीइ, धरीइ जिनवर ध्यान ॥३१॥ ध्यान धरी भगवंतनुं, जीव सकल ऊगार्य । पोषध पूण्य प्रभावना, व्रत बारइ चीत धार्य ॥३२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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