Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 94
________________ 94 दूहा० ॥ गुण ग्यरुआ गुणवंतना, जे नवि बोलइ रंगि । परभवि दूखीआ ते थसइ, सरजइ दूबल अंग्य ||४४|| गुण गाइ गुणवंतना, ते सुखीआ संसार्य । परभवि सूरसूख भोगवर, जिहा बहु अपछर नार्य ॥ ४५ ॥ जो हीत वंछइ आतमा, तो परनंद्या टालि । मुख्यथी मीठु बोलीइ, भटक न दीजइ गालि ||४६ || सुगरूवचन संभारयु, करज्यु परउपगार । जईनधर्म आराधज्यु, व्रत वहइ ज्यु सिरि बार ||४७|| March-2002 ढाल ७९ ॥ राग - मेवाडो || देसी० मेगल मातो रे वनमाहिं वसइ० ॥ बार वरतनि रे जे नर सि[र वहइ] [तस] घरि जइजइ रे कार । मनह मनोर्थ ते वली तस फलइ, मंदिर मंगल च्यार || ४८ ॥ [ बार वरतनि] रे जे नर सिर वहइ । आचली० ॥ भणतां गुणतां रे संपइ सुख मलइ पोहोचइ [मनि त]णी आस । हिंवर हाथी रे पायक पालखी, लहीइ ऊच आवास । ४९ ।। बार वरतनिं० ॥ सुंदर घर्णी रे दीसइ सोभती, बहइनी बांधव जोड्य । बालिक दीसइ रे रमता बारणइ, कुटंबतणी कई कोड्य ||५०॥ बा० ॥ ग्यवरी मइहइषी रे दीसइ दूझतां, सुरतरु फलीओ रे बार्य । सकल पदारथ मुझ घरि मिं लह्या, थिर थई लछी रे नार्य ॥ ५१ ॥ बा० ॥ मनह मनोर्थ माहारइ जे हतो, ते फलिओ सही आज । श्रीजिनधर्मनिं पास पसाओलइ, मुझ सीधां सही काज ॥५२॥ बा० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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