Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 95
________________ अनुसंधान-१९ 95 दूहा० ॥ काज सकल सीधां सही, करतां वरत-वीचार । श्रीगुरुनांम पसाओलइ, मुझ फलीओ सहइकार ॥५३॥ ढाल ८० ॥ देसी० कहइणी कर्णी०॥ राग-ध्यन्यासी ॥ मूझ अंगणि सहइकार ज फलीओ, श्रीगुरुनांम पसाइजी । जे रषि मुनीवरमां अतीमोटो, वीजइसेनसुरिरायजी ॥५४|| मुझ अंगणि सहिकार ज फलीओ, श्रीगुरुचर्ण पसाइजी आचली० ॥ जेणइ अकबरनृपतणी शभामां, जीत्यु वाद वीचारीजी । शईव शन्यासी पंडीत पोढा, सोय गया त्याहा हारीजी ॥५५॥ मूझ. ॥ जइजइकार हुओ जिनशाशन, सुरीनाम सवाई जी । शाही अकबर मुष्य ए थाप्यु, तो जगमाहि वडाई जी ।।५६।।मूझ०|| तास पटि ऊग्यु एक दीनकर, सीलवंतम्हां सुरोजी । वीजयदेवसुरी नाम कहावइ, गुण छत्रेसे पुरो जी १५७|| मूझ० ।। तपातणो जेणइ गर्छ अजुआलु, लुघवइम्हां सोभागी जी । जस सिरि गुम् एहेवो जइवंतो, पूण्यराश तस जागी जी ॥ ५८ ।। मूझ० ॥ ढाल ८१ ॥ देसी० हीच्य रे हीच्य रे हईइ हीडोलडो० ॥ राग-ध्यन्यासी० ॥ पूण्य प्रगट भयु पूण्य प्रगट भयु तो मन्य मुझ मत्य एह आवी ! रास रंगिं कर्यु सकल भव हुँ तर्यु पूण्यनी कोठडी मूझह फावी ॥५९॥ पूण्य प्रगट भयु २ ॥ आंचली० ॥ सोल संवच्छरि जाणि वर्ष छासठि, कातीअवदि दिपकदाढो । रास तव नीपनो आगमि ऊपनो, सोय सुणतां तुम पूण्य गाढो ॥६०॥ पूण्य० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112