Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 90
________________ 90 ढाल ७४ ॥ चोपई ॥ अग्यारमु व्रत तुं आराधि, सुधो मारग तुं पणि साधि । ओहोरतो पोसो कीजीइ, मुगतितणां फल तो लीजीइ ॥१॥ पोसो पूण्यतणो भंडार, परभवि जातां ए आद्धार । मनस्युधिं आराधइ जेह, अनंत सुख नर पांमइ तेह ||२|| पांच अतीचार एहना यलि, संथारानि भोमि संभालि । ठंडिल पडलेही वावरो, भवीजन लोको विधि आदरो || ३ || March-2002 प्रठवी ज्यांहां जइ मातरू, पहइलु द्रीष्टिं जोईइ खरू । 'अणजांणो जसगो' कही, प्रठवीइ जइणाई सही ||४|| वार त्रणि कहीइ वोशरे, नीसही आवसही मनि धरे । कालवेलां वांदीजइ देव, पोसानि एम कीजइ सेव ॥५॥ प्रथवी पांणी तेऊ वाय, संघट एहनो नवि कीजीइ, दिवसि न्यंद्रा कीधी घणी, अवधइ संथार्यु वलि जेह, वनसपति छठी त्रसकाय । पोसानुं फल एम लीजीइ ॥ ६ ॥ संथारापोरश नवि भणी । मीछादूकड दिजइ तेह ॥७॥ पोषध वली असुर्यु करइ, पारी वहइलु घरि संचरइ । भोजननी वलि व्यंत्या करड़, कहइ तुझ काज केही परि सरइ ॥८॥ परबतिथिं पोसो नवि कीओ, मीछादूकड तेहनो दीओ । अंगि अतिचार कां तुम्यु [दिओ] पोतानो समझावो हिओ || ९ || दूहा० ॥ आप हईउं समझाविइ, कीजइ तत्त्ववीचार | पोषध पूण्य किआ व्यनां, कहइ किम पांमीश पार ॥१०॥ ए व्रत सुणि अग्यारमुं वरत सकलमांहां सार । वली व्रत बोलुं बारमुं ऊत्तमनो आचार ॥११॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112