Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-१९
वाघछालि नवि खेलीइ ए, तु मन चारे आप तो । .. शेत्रुज बाजी सोगठां ए, रमतां लागइ पाप तो ।। ६८ ।। जु म म खेलीश जुवटइ ए, होइ तुझ धननी हांण्य तो । नल दवदंती पंडवा ए, दूर्ति दूखीआं जाण्य तो ॥ ६९।। राजकथा नि स्त्रीकथा ए, देसकथा म म दाख्य तो । भगतिकथा नवि कीजीइ ए, तु मन वारी राख्य तो ॥ ७० ॥ पाप-उपदेस न दीजीए ए, देतां पूण्यनी हांण्य तो । खांडां कोश कटारडां ए, दीधई दूर्गती खाण्य तो ।। ७१ ॥ सुडी पाली पावडो ए, रांभो हल हथीआर तो । लोढी पइंणो काकसी ए, करइ जीवसंधार तो ॥ ७२ ॥ ऊषल मुसल रर्थ कह्या ए, पीलण पीसण जेह तो । जो हीत वंछड् आतमा ए, माग्या मापीश तेह तो ॥ ७३ ।। हीचोलइ नवि हीचीइ ए, जलि झीलि स्यु होय तो । पाप करंतां प्रांणीओ ए, मोक्ष न पोहोतो कोय तो ॥ ७४ ।। भिंसा घेटा बोकडा ए, कुरकुट नि मांजार तो । मलवढता नवि जोईइ ए, ए पेखि स्यु सार तो ।। ७५ ॥ चोर सतीनि बालतां ए, जोवानी सी खांत्य तो । ऊश। कर्म तीहां बांधीइ ए, तो वायु भगवंत्य तो ।। ७६ ॥ माटी कणह कपासीआ ए, नील फूलि जल जेह तो । काज विनां कां चांपीइ ए. हईइ वीचारो तेह तो ॥ ७७ ।। जल तक घी तेलनां ए, भाजन भावि ढंक्य तो । उघाडां नवि मुकीइ ए, जीन पडइ ज असंख्य तो ॥ ७८ ॥ सूडा सालि पोपटा ए, ते पंजर म म घात्य तो । बंधन सहुनि दोहेलु ए, किम जाइ दिनरात्य तो ॥७९॥
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