Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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64
March-2002
डुब घरि तेणइ आंण्यु नीर, वचन थकी नवी चुको धीर । तो तेहनी कीर्ति वीस्तरी, मुओ नही नर जीव्यो फरी ॥३६।। शईव शाशनि सेठि बंगाल, तेहनो पूत्र जे सेठि सगाल । तस घर्णी चंगोमती नार्य, सतवादी जगि दोय वीचार्य ॥३७॥ ते बेहुनी तुम्यु सुणज्यु वात, पूत्रतणो तेणइ कीधो घात । वचन थकी पणि ते नवी चल्या, नरनारी बइ बोलि पल्या ॥३८॥ ऊतम नरनी एहेवी वाच, नो हइ जुठी होइ साच । भाति पटोलइ लुढइ लीह, वचन थकी नवि चुकइ सीह ॥३९॥ नीसरिआ गज केरा दंत, ते किम पाछा पइसइ तंत । सीहतणी जगी एक ज फाल, पाछो वेगि वलइ ततकाल ॥४०॥ कुपरष नरनी वाचा असो, जिम पांणीमांहा लीटी घसी । अथवा काच बकेरी कोट, ष्यणम्हां केती देतो डोट ॥४१|| ते मुरिखनुं कस्यु वखांण, जेणइ नवी कीधु वचन प्रमाण । ते जनुनिइं कां जगी जण्यु, सकल लोकम्हा जे अवगुण्यु ॥४२॥ तेह- कोय म लेज्यु नाम, बोलो सतवादी गुणग्राम । सत वचन ऊफरूं नही सार, सतवादि घरि मंगल च्यार ॥४३॥ सतवादीनि सहु को नमइ, सतवादीनुं बोल्यु गमइ । सतवादि दुरगति नवि भमइ, सतवादि ते सीवपुरि रमइ ॥४४॥ सतवादी जेणइ नगरिं वसइ, नगरलोक ते हरषि हसइ । तेणइ नगरि नही दूत दूकाल, वरसइ मेघ नि होय सगाल ॥४५।।
दूहा० ॥ सुखशाता बहु ऊपजइ, जिहा सतवादि पाय । ध्यन जिव्यु जगी तेहगें, कवी जेहना गुण गाय ॥४६।। जीव्या ते जगि जांणीइ, अशत्य न भाषइ जेह । मृषा न मुख्यथी छंडता, स्यु जीव्या जगि तेह ॥४७।।
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