Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 71
________________ 71 अनुसंधान-१९ रहइनेमि मन-वचनि पड्युं, राजुल देखी ते हडबड्यु । माहाभट मदनि कीधो रंक, सही शरि पांम्यु सोय कलंक ।।९।। लषणा नामि जे माहासती, मन मइलइ चुकी स्युभगति । मनह वचन काया थीर नही, ते नर सुखीआ थाइ कही ॥१०॥ कुलवालुंओ मुनीवर जेह, माहातपीओ पणि कहीइ तेह । सीलखंडणा तेणइ करी, खिणम्हां दूरगति नारी वरी ॥११।। एहेवो कांमतणो अवदात, सुणज्यु सहु शभा नरनाथ । तो अबलास्यु कस्यु सनेह, जाति जे देखाडइ छेह ॥१२॥ भोज मुज परदेसी जेह, सबल वटंब्या नारिं तेह । जमदगधनि नारिं नड्यु, राय भरथरी ते रडवड्यु ॥१३॥ ब्रह्मराय घरी चुलणी जेह, पोतइ पूत्र मरावइ तेह । गउतम ऋषिनी अहीला नार्य, अंद्र भोगवइ भुवन मझार्य ॥१४॥ ए नारीनो जोय वीचार, जोता काई नवी दिसइ सार । समझ्या ते नर मुकी गया, नवि समझ्या ते खुची रह्या ॥१५।। अकल गई नरनी वली एम, जिहाथी प्रगट्या त्याहा बहु प्रेम । ऊतपति जोनी तुं आपणि, समझी मुके मती पाप्यणी ॥१६।। मातपीता नि युगि वली, श्रुणी स्युक गयां बइ मली । जग सघलु जई तिहा उपनो, नांहानो मोटो एम नीफ्नो ॥१७॥ तो ते सांथिं स्यु वलि रंग, म करो नारी केरो संग । भोग करता हंशा बहु, नरनारी ते सुणयु सहु ॥१८|| बेअंद्री पंचेद्री जेह, नव नव लाख कहीजइ तेह । मुनीष असंखि समुर्छम जाणि, भोग करतां तेहनी हांणी ॥१९॥ दूहा०॥ हाणि न करता हंसनी, सीलवंतम्हां लीही । पणि वरला जगि ते वली, जिम पसुआमां सीह ॥२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112