Book Title: Vrat Vichar Ras
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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अनुसंधान-१९
रूपमुखी जिम मयण वखांणुं, सायरम्हां जिम खीरो । कलपतरु तरुअरम्हां मोटो, जलम्हां गंगानीरो ॥८५॥ शर सघलाम्हां पो(पे)खो भाई, मानसरोवर मोटुं । श्रीकुंलम्हां मरुदेव्या मोटी, दूझाणांम्हा झोटु ॥८६॥ ष्यमावंतम्हां श्रीअरीहंत, तपसुरा अणगारा । भोगिमाहां चकवर अतीमोटो, जस रीध्य अंत न पारा ||८७|| वासदेव सुरा-मुख्य मंडु, परीग्रहइमाहा सुत सारो । तिम व्रत बारम्हां मुख्य मंडु, व्रत चोथु ज अपारो ॥८८।।
ढाल ५५ (५४) चोपई ॥ माहाव्रत केरो टालु दोष, परदारानो करि संतोष । पररमणी साथि जे रम्या, सुरनर केता नीचा नम्या |॥८९।। आगइ अंद्र अहीलास्यु रम्यु, अपजस तेहनो गगनि भम्यु । सहइ सभग तस पोतइ हवा, अंगई रोग तेहनि नवनवा ॥९०|| गुरुनी मइहइला लाव्यु चंद, कलग ई मुख पांम्यु मंद । मासि साजो एक दिन होय, विषइ थकी दूख पांम्यु सोय ॥११॥ पापी विषइ विटंबइ घj, नीर उतार्यु भ्रह्मा तणुं । चोखइ च्यंति न सक्यु रही, ध्यान थकी ते चुको सही ।।१२।। ईसिं भीली झाल्यु हाथ, तो दूख पाम्यु शंभुनाथ । बाली कामनि जोगी थयु, सकल लोकम्हां महीमा गयु ॥९३॥ रावण सरीखो राजा जेह, काम थकी दूख पांम्यु तेह । दस मस्तगनो खइ तव थयु, कनकतणो गढ लंकां गयु ॥९४॥ कईचक जो सीलिं नवी रह्या, हण्या ज्युध ते दुर्गति गया । मणिरथ राजा ते अवगुण्यु, स्त्रीकारणि तेणइ बंधव हण्यु ॥९५॥ मोटो राय अवंतीधणी, कामि ते कीधो रे वणी । नगरी कोट पडाव्यु अस्यु, वण षाधइ तस पाणी रसो ॥९६॥
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